यूपी विधानसभा चुनाव : क्या ध्रुवीकरण की कोशिशों के बीच पुराने फार्मूले से कामयाब हो पाएगी कांग्रेस?

क्या ध्रुवीकरण की कोशिशों के बीच पुराने फार्मूले से कामयाब हो पाएगी कांग्रेस?

Update: 2022-01-30 10:21 GMT

यूसुफ़ अंसारी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Up assembly Election) में अपने वजूद को बचाने के लिए लड़ती कांग्रेस (Congress) नए तौर-तरीकों की राजनीति के बीच में पुराने फार्मूले पर लौट आई है. इस चुनाव में कांग्रेस अपने परंपरागत वोट बैंक ब्राह्मण, दलित और मुसलमान के साथ महिलाओं के सहारे अपना वजूद बचाने की कोशिशों में जुटी है. प्रदेश की 255 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी कांग्रेस ने अब एक आंकड़े जारी करके यह बताने की कोशिश की है कि समाज के किस हिस्से को उसने कितना प्रतिनिधित्व दिया है. कांग्रेस के उम्मीदवारों का जातिगत आधार पर ये विश्लेषण अपनी जड़ों पर जमे रहकर नए जातीय समीकरण ( New caste equation) बनाने की उसकी कश्मकश को सामने लाता है.कांग्रेस की तरफ से बाक़ायदा आंकड़े जारी करके बताया गया है कि उसके 255 उम्मीदवारों की लिस्ट में सबसे ज्यादा 40% टिकट महिलाओं को दिए गए हैं.

कांग्रेस की अब तक जारी की गईं उम्मीदवारों की फेहरिस्त में कुल 104 महिलाएं और 151 पुरुष हैं. कांग्रेस ने सामान्य, पिछड़ा, दलित और मुसलमान जैसे हर वर्ग से महिला उम्मीदवार उतारे हैं. महिलाओं के बाद कांग्रेस ने पिछड़ों पर बड़ा दांव खेला है. पिछड़े वर्गों को कुल मिलाकर 70 टिकट दिए गए हैं. पिछड़ों के बाद सबसे ज्यादा 57 दलित और 49 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं. कांग्रेस ने अनुसूचित जनजाति का भी एक उम्मीदवार मैदान में उतारा. यह पहला मौका है जब कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट का जातीय आधार पर इतना बारीक विश्लेषण किया. ख़ास बात यह है कि कांग्रेस ने पिछड़े वर्गों और दलितों में बहुत कम आबादी वाली जातियों के उम्मीदवारों को भी चुनाव लड़ने का मौक़ा दिया है.
ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश
आज़ादी के बाद से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित ही रहे.
इस चुनाव में प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने महिलाओं को 40% हिस्सेदारी देने के नाम पर पार्टी के इस परंपरागत वोट बैंक में उन्हें अलग से शामिल करने की कोशिश की है. कांग्रेस शुरू से ही ब्राह्मणों को तरजीह देती रहीं. यूं कहा जा सकता है कि ब्राह्मण हमेशा से कांग्रेस का आधार वोट रहा है. यही वजह है कि जब तक कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहे मुख्यमंत्री पद के अलावा अहम पदों पर भी ब्राह्मणों का ही वर्चस्व रहा है. प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत से लेकर कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी तक सभी ब्राह्मण मुख्यमंत्री कांग्रेस ने ही दिए हैं. पिछले कई साल से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का राजनीति के हाशिए पर चले जाना एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. कांग्रेस में लगातार ब्राह्मणों को कांग्रेस की कमान देने की मांग उठती रही है.
प्रियंका गांधी ने ब्राह्मण के हाथ में कमान तो नहीं दी लेकिन टिकटों में उन्हें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी देकर यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस ब्राह्मणों को तरजीह देने का मोह छोड़ नहीं पा रही है.
सवर्णों का वर्चस्व
कांग्रेस के उम्मीदवारों के जातिगत विश्लेषण से पता चलता है कि एक अकेली जाति के सबसे ज्यादा उम्मीदवार ब्राह्मण ही हैं. कांग्रेस के अब तक घोषित हुए 255 उम्मीदवारों में से 40 ब्राह्मण हैं. ये 15.70% हिस्सेदारी है जबकि प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी बमुश्किल तमाम 5-6% होगी. दूसरे नंबर पर कांग्रेस ने राजपूतों यानि ठाकुरों को तरजीह दी है। कांग्रेस की लिस्ट में 28 राजपूत उम्मीदवार हैं. यह 11% हिस्सेदारी है। 8 उम्मीदवार वैश्य यानी बनिया हैं. इनकी हिस्सेदारी 3.1% है. इनके अलावा कांग्रेस ने सामान्य वर्ग में खत्री, सिख,. भूमिहार और कायस्थों को दो-दो टिकट दिए हैं. इनके अलावा एक पंजाबी और एक ईसाई को भी उम्मीदवार बनाया है. इस तरह कांग्रेस की लिस्ट में सवर्णों का वर्चस्व साफ तौर पर दिखता है. सभी सवर्ण जातियों को मिलाकर कांग्रेस ने कुल 85 उम्मीदवार उतारे हैं. कांग्रेस ने ईसाई उम्मीदवार को भी सामान्य जाति में रखा है. इसस लिहाज़ से इनकी तादाद 86 हो जाती है.
मुसलमानों में पसमांदा की भी सुध
कांग्रेस ने मुसलमानों को अभी तक उनकी आबादी के अनुपात में टिकट दिए हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में 19.26% मुसलमान हैं. कांग्रेस के 255 उम्मीदवारों का लिस्ट में 49 मुसलमान हैं. ये 19.2% हिस्सेदारी है. कांग्रेस पर पसमांदा यानि पिछड़े वर्गों के मुसलमानों की अनदेखी का आरोप लगता रहा है. इस बार कांग्रेस ने ये शिकायत दूर करने की कोशिश की है. कांग्रेस ने पहली लिस्ट में 19 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. इनमे से 9 पसमांदा तबके यानि पिछड़े वर्गों से थे. कुल 49 मुस्लिम उम्मीदवारों में से कितने पिछड़े वर्गों से हैं, इसका खुलासा कांग्रेस ने नहीं किया है. अपने विश्लेषण में कांग्रेस ने अगड़े और पिछड़े वर्गों के मुसलमानों को एक साथ ही रखा है. सिर्फ़ ये बताया है कि इनमें पिछड़े वर्गों के मुस्लिम उम्मीदवार भी शामिल हैं. पसमांदा तबके यानि पिछड़े वर्गों के मुसलमानों को टिकटों में तरजीह देकर प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की पुरानी ग़ल्तियों को सुधारने की कोशिश की है.
छोटी दलित जातियों को तवज्जो
कांग्रेस ने आरक्षित सीटों पर भी दलितों में सबसे बड़ी जाटव जाति के अलावा बाकी छोटी जातियों को भी प्रतिनिधित्व देने की पूरी कोशिश की है. हालांकि उसकी लिस्ट में सबसे ज्यादा 26 दलित उम्मीदवार जाटव हैं‌. ये हिस्सेदारी 10.20% है. दलितों में कांग्रेस ने दूसरे नंबर पर पासी समुदाय को तरजीह दी है. इस जाति के 13 उम्मीदवार कांग्रेस ने उतारे हैं. उनकी हिस्सेदारी 5.2% है. तीसरे स्थान पर धोबी बिरादरी आती है. इनके 7 उम्मीदवार हैं और इनकी हिस्सेदारी 2.7% है पांच उम्मीदवार वाल्मीकि हैं और इनकी हिस्सेदारी 2% है. कोरी बिरादरी से तीन उम्मीदवार हैं. इनकी हिस्सेदारी 1.2% है. धनगड़, खटीक और शंखवार जैसी कम आबादी वाली जातियों का भी एक-एक उम्मीदवार कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा हैं. इनके अलावा अनुसूचित जनजाति में आने वाली गोंड का एक उम्मीदवार कांग्रेस की लिस्ट में शामिल है. कांग्रेस की ये कोशिश दलितों में जाटवों का वर्चस्व तोड़ने की तो नहीं लगती लेकिन वो बेहद कमज़ोर तबकों को आगे लाने की कोशिश करती ज़रूर दिख रही है.
पिछड़े वर्गों पर बड़ा दांव
उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछले तीन दशकों से पिछड़ी और दलित जातियों का वर्चस्व बना हुआ है. पिछड़ा वर्ग कभी भी कांग्रेस के प्राथमिकता सूची में नहीं रहा. लेकिन इस बार कांग्रेस ने पिछड़ों पर बड़ा दांव खेला है. पिछड़े वर्गों से कांग्रेस ने 70 उम्मीदवार उतारे हैं. अभी तक की कांग्रेस की जारी 255 उम्मीदवारों की लिस्ट में ये 24.5% हिस्सेदारी है. आबादी के हिसाब से देखें तो कांग्रेस के टिकटों में पिछड़ों की हिस्सेदारी उनकी आबादी 43% से काफी कम है. पिछड़ी जातियों में कांग्रेस ने 13 कुर्मी, 8-8 यादव और जाट, पांच निषाद तो 4-4 लोधी और गुर्जर उम्मीदवार उतारे हैं. अति पिछड़ी समझी जाने वाली सैनी और कश्यप जातियों के कांग्रेस ने तीन तीन उम्मीदवार उतारे हैं. दो-दो उम्मीदवार जायसवाल, पाल, शाक्य और प्रजापति जाति से हैं. बघेल, गिरी, कांडू, बनिया, कुशवाहा और कांबोज जैसी बहुत ही कम आबादी वाली जातियों से भी एक-एक उम्मीदवार कांग्रेस ने उतारा है. इस तरह कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट में पिछड़े वर्गों की 18 जातियों को प्रतिनिधित्व दिया है.
उत्तर प्रदेश में पिछले तीन दशकों में कांग्रेस के की दिग्गज नेता प्रभारी महासचिव रहे हैं. इनमें सुशील कुमार शिंदे से लेकर दिग्विजय सिंह और ग़ुलाम नबी आज़ाद तक शामिल रहे हैं. इन्होंने भी कांग्रेस को ज़िंदा करने के लिए हर मुमकिन कोशिश की. तरहतरह के प्रयोग किए. लेकिन सब नाकाम रहे. प्रियंका गांधी वाड्रा बतौर प्रभारी महासचिव पिछले ढाई साल से कांग्रेस को जिंदा करने की हर मुमकिन कोशिश कर रही हैं. उनका दावा पार्टी संगठन को मज़बूत करने और कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने का है. लेकिन पार्टी छोड़कर जाने वाले कई कद्दावर नेताओं और उम्मीदवार उनके इस दावे की हवा निकाल रहे हैं.
हां प्रियंका गांधी ने चुनाव में महिला कार्ड खेलकर एक नया महिला वोट बैंक बनाने की जरूर कोशिश की है. लेकिन अहम सवाल यह है कि चुनावों में ध्रुवीकरण की लगातार हो रही कोशिशों के बीच कांग्रेस पुराने फॉर्मूले पर लौटकर क्या चुनावों में अपनी मज़बूत मौजूदगी दर्ज करा पाएगी?
Tags:    

Similar News

-->