एक जैसे केस में दो अदालतों का विपरीत फैसला, POCSO कहां लगेगा कौन बताएगा?
POCSO एक्ट कब लगाया जाए कब नहीं इस पर महाराष्ट्र (Maharashtra) की दो अदालतों का रुख एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत है
POCSO एक्ट कब लगाया जाए कब नहीं इस पर महाराष्ट्र (Maharashtra) की दो अदालतों का रुख एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत है. जहां एक ने आरोपी पक्ष की ओर झुकते हुए अपना फैसला दिया था, वहीं दूसरे ने बच्चों के ऊपर हो रहे यौन अपराधों (Sexual Offenses) को सहजता से लिया और बच्चियों के समर्थन में फैसला देने का निर्णय लिया.
आपको याद होगा पिछले महीने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने एक केस में फैसला दिया था कि 12 साल से कम उम्र की बच्ची का ब्रेस्ट छूना POCSO कानून के अंतर्गत नहीं आएगा. हाईकोर्ट के इस टिप्पणी पर देश में काफी विवाद हुआ था. लोगों का मानना था कि इससे बच्चों के साथ यौन अपराधों के मामले और बढ़ जाएंगे. अदालत ने POCSO एक्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि कपड़े के ऊपर से ब्रेस्ट टच करना इस एक्ट में नहीं आएगा जब तक कि 'स्किन टू स्किन' कॉन्टैक्ट न हो.
अब इस विवादास्पद फैसले के बाद ऐसे ही एक केस में मुंबई की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने बच्ची के समर्थन में फैसला देते हुए कहा है कि इस तरह का केस पूरी तरह से यौन उत्पीड़न का मामला है और इसमें POCSO की धारा 7 के तहत मुकदमा दर्ज होना चाहिए.
क्या है POCSO की धारा 7?
POCSO एक्ट बच्चों के यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी जैसे मामलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल होने वाला एक कानून है और इसमें धारा 7 यौन अपराधों को परिभाषित करती है. धारा 7 कहती है, "कोई भी सेक्सुअल भावना से अगर किसी बच्चे के योनि, लिंग, गुदा और स्तन को छूता है या फिर किसी बच्चे को कोई व्यक्ति अपने या दूसरे के शरीर के इन हिस्सों को छूने पर मजबूर करता है तो यह यौन उत्पीड़न का मामला होगा.
मजिस्ट्रेट अदालत ने कहा इस तरह के मामले POCSO के अंतर्गत आते हैं
POCSO मामले में मजिस्ट्रेट ने अपना फैसला देते हुए कहा कि किसी महिला के पीछे के निजी हिस्से को छूना जब यौन उत्पीड़न का मामला हो सकता है तो एक बच्ची के साथ ऐसा होने पर हम उसे यौन उत्पीड़न क्यों नहीं मान सकते. मजिस्ट्रेट ने 'केपीएस गिल' मामले को याद करते हुए बताया कि उस केस में भी ऐसा ही मामला था जिसमें यौन उत्पीड़न माना गया था तो इस बच्ची के साथ हुए अपराध को भी यौन उत्पीड़न कि नजर से ही देखा जाना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ ऐसे ही एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख बिल्कुल अलग था. हाईकोर्ट का कहना था कि जबतक 'स्किन टू स्किन' कॉन्टैक्ट नहीं होता तब तक ऐसा मामला POCSO के अंतर्गत नहीं आएगा बल्कि इसे छेड़छाड़ की तरह से देखा जाएगा.
खैर, हमें POCSO के मामलों को गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि यह बच्चों के साथ हो रहे यौन अपराधों से जुड़ा है. इन मामलों में गलत फैसले समाज में और कानून में गलत मिसाल कायम करेंगे.