गांधी परिवार के नेतृत्व में लगातार कमजोर होती कांग्रेस खुद के साथ ही भारतीय लोकतंत्र को भी क्षति पहुंचा रही है

कांग्रेस सरीखे दल का रसातल में जाना ठीक नहीं और अगर

Update: 2022-02-12 15:51 GMT
संजय गुप्त। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह कांग्रेस और विशेष रूप से राहुल गांधी के निराधार आरोपों का सिलसिलेवार तरीके और तथ्यों के जरिये खोखलापन उजागर किया, वह जितना देश के लिए आवश्यक था, उतना ही खुद कांग्रेस के लिए भी। एक अर्से से राहुल की राजनीति मुख्य रूप से प्रधानमंत्री के प्रति उनकी नफरत पर आधारित है। वह मोदी सरकार पर चुनिंदा उद्योगपतियों के लिए काम करने का आरोप लगाने के साथ यह भी कह रहे हैं कि वह अमीरों और गरीबों के बीच खाई बढ़ा रही है। उनका यह भी आरोप है कि मोदी सरकार मनमाने फैसले लेकर देश के संघीय ढांचे को क्षति पहुंचा रही है। प्रधानमंत्री आम तौर पर ऐसे मिथ्या आरोपों की अनदेखी करते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में मुखर होकर न केवल कांग्रेस की बोलती बंद की, बल्कि राहुल के खोखली सोच के समर्थक बुद्धिजीवियों का झूठ भी उजागर किया। प्रधानमंत्री ने यह संदेश भी दिया कि कांग्रेस सरीखे दल का रसातल में जाना ठीक नहीं और अगर उसका यही रंग-ढंग रहा तो अगले सौ साल तक उसे सत्ता से बाहर रहना पड़ सकता है।
मोदी ने दिखाया आईना
प्रधानमंत्री ने यह कहकर राहुल गांधी को आईना ही दिखाया कि कांग्रेस कैसे जनता से दूर होते चले जाने के कारण ज्यादातर राज्यों से गायब हो गई है। कांग्रेस को 1962 में आखिरी बार तमिलनाडु में सरकार गठन का मौका मिला था। उत्तर प्रदेश में 1989 में और बिहार में 1990 में। खुद उसके समय में बने तेलंगाना ने भी उसे नहीं अपनाया। कई राज्यों में तो कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल भी नहीं रह गई है। जिस उत्तर प्रदेश में वह वापसी का सपना देख रही, वहां उसकी ऐसी हैसियत ही नहीं कि कोई मजबूत दल उससे गठबंधन करता। संसद में अपने संबोधन के दौरान मोदी ने राहुल का नाम तो नहीं लिया, लेकिन यह साफ कर दिया कि वह किस तरह झूठ के सहारे राजनीति कर रहे हैं। राहुल इन दिनों यह कहने में लगे हुए हैं कि मोदी राजा की तरह व्यवहार कर रहे हैं। इस पर प्रधानमंत्री ने उन्हें बताया कि कांग्रेस ने अपने राज में कैसा सामंती सोच दिखाया था। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ मंगेशकर को आल इंडिया रेडियो पर सावरकर की एक कविता पढ़ने के कारण आठ दिनों में ही नौकरी से निकाल दिया गया था। इसी तरह गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी और प्रोफेसर धर्मपाल को इसलिए जेल में डाल दिया गया था, क्योंकि उन्होंने नेहरू की आलोचना की थी। मोदी ने कांग्रेस को यह भी स्मरण कराया कि किस तरह प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले से महंगाई के लिए कोरियाई युद्ध को जिम्मेदार बताया था।
आत्मघाती गोल करते राहुल
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने एक ऐसी बात भी कह दी, जिसकी कांग्रेस को भारी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि संविधान में भारत को राष्ट्र नहीं, बल्कि राज्यों का संघ मात्र कहा गया है। प्रधानमंत्री ने उन्हें जवाब दिया कि कांग्रेस का नाम ही इंडियन नेशनल कांग्रेस है और राहुल के दर्शन के मुताबिक तो उसे नेशनल की जगह फेडरेशन कर लेना चाहिए। प्रधानमंत्री ने यह भी याद दिलाया कि कांग्रेस ने कैसे अपने शासनकाल में सौ से अधिक बार राज्य सरकारों को छोटी-छोटी बातों पर बर्खास्त किया।
राहुल गांधी का राजनीतिक चिंतन यही बताता है कि वह वामपंथी विचारधारा में पूरी तरह डूब चुके हैं और आज के भारत की आकांक्षाओं की समझ नहीं रखते। शायद इसी कारण कांग्रेस मुफ्तखोरी की राजनीति को अपना रही है और यह जानते हुए भी सरकारी नौकरियों पर जोर दे रही कि केवल उनके जरिये बेरोजगारी दूर करना संभव नहीं।
भाजपा के शासनकाल में देश में गरीबी बढ़ने का आरोप लगाने के पहले राहुल को यह बताना चाहिए कि लगभग 50 साल पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का जो नारा दिया था, उसका क्या हुआ? नकारात्मकता से ग्रस्त राहुल यह नहीं देख पा रहे कि पक्के घर, शौचालय, उज्ज्वला जैसी योजनाएं गरीबों के कल्याण के लिए ही हैं और उन्हीं के कारण जहां मोदी को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है, वहीं कांग्रेस को लगभग पूरे देश ने नकार दिया है। लगता है कांग्रेस जो खुद नहीं कर पाई, वह मोदी सरकार में भी होते हुए नहीं देखना चाहती।
कांग्रेस और उसके जैसे दलों की राजनीति न केवल गरीबों को गरीब बनाए रखने पर आधारित दिखती है, बल्कि निर्धन तबकों की आत्मनिर्भर बनने की आकांक्षा की अनदेखी भी करती है। ऐसी राजनीति तब की जा रही है, जब पूरी दुनिया यह समझ चुकी है कि निर्धन आबादी का उत्थान तब होता है जब वह स्वावलंबी बनती है और कारोबारी गतिविधियां तेज होती हैं। प्रधानमंत्री इसी कारण सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर बल दे रहे हैं। इस आवश्यकता की पूर्ति ही राष्ट्र को सशक्त करने के साथ आम जनता का भला करेगी।
दीवार पर लिखी इबारत को समझे कांग्रेस
प्रधानमंत्री की खरी बातों से भले ही राहुल की आंखें न खुलें, लेकिन कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेता दीवार पर लिखी इबारत पढ़-समझ रहे हैं। समस्या यह है कि कांग्रेस गांधी परिवार की चाटुकारिता में इतनी डूबी है कि अपना भविष्य भी नहीं देख पा रही है। जो मुट्ठी भर कांग्रेसी नेता सच कहने का साहस रखते हैं, उन्हें गांधी परिवार हाशिये पर लाने में देर नहीं लगाता। भारतीय लोकतंत्र की भलाई के लिए यह आवश्यक है कि भाजपा के अतिरिक्त एक अन्य सक्षम राष्ट्रीय दल हो। आंतरिक लोकतंत्र को महत्व देने वाला कोई दल ही इस आवश्यकता को पूरा कर सकता है। कांग्रेस समेत क्षेत्रीय दलों को इस पर चिंतन-मनन करना चाहिए कि वे आंतरिक लोकतंत्र को अपनाने के बजाय परिवारवाद को बढ़ावा क्यों दे रहे हैं? आलोचना विपक्ष का अधिकार है, लेकिन इसके नाम पर अंधविरोध वाली राजनीति की आदत तो उसे और कमजोर ही करेगी। कांग्रेसजनों को यह समझना होगा कि गांधी परिवार के नेतृत्व में लगातार कमजोर होती और अतार्किक रवैया अपनाती कांग्रेस खुद के साथ भारतीय लोकतंत्र को भी नुकसान पहुंचा रही है। बेहतर हो कि कांग्रेसी नेता प्रधानमंत्री के संबोधन के मर्म को समझें और अपनी पार्टी को सही राह पर लाएं। यह कांग्रेस के भी हित में है और देश के भी।
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