श्रीलंका में हालात बेकाबू
भीषण आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका में सोमवार को हालात संभालने की गरज से प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद से इस्तीफा तो दे दिया, लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि इससे स्थितियां संभालने में खास मदद मिलेगी।
नवभारत टाइम्स: भीषण आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका में सोमवार को हालात संभालने की गरज से प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद से इस्तीफा तो दे दिया, लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि इससे स्थितियां संभालने में खास मदद मिलेगी। उनके इस्तीफा देने से पहले ही वहां विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुके थे। सोमवार को कोलंबो और अन्य शहरों में हुई हिंसा में सत्तारूढ़ दल के एक सांसद सहित पांच लोगों के मारे जाने और 200 से अधिक के घायल होने की खबर थी। प्रदर्शनकारी जगह-जगह सत्तारूढ़ दल से जुड़े नेताओं के घरों को निशाना बना रहे हैं। पिछले करीब 20 वर्षों से श्रीलंकाई राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखने वाले राजपक्षे परिवार के खिलाफ लोगों का गुस्सा आसमान छू रहा है। अभी भी जब प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे इस्तीफा दे चुके हैं, राष्ट्रपति पद पर उनके छोटे भाई गोटबाया राजपक्षे ही विराजमान हैं और प्रदर्शनकारी उनके भी इस्तीफे की मांग पर अड़े हुए हैं। इसमें दो राय नहीं कि मौजूदा आर्थिक संकट के लिए सिर्फ राजपक्षे सरकार और उसकी नीतियां ही जिम्मेदार नहीं हैं। बेशक उसकी नीतियों ने इस संकट की पृष्ठभूमि तैयार की, लेकिन हालात को बेकाबू बनाने में कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध जैसे कारकों की अहम भूमिका रही, जिस पर श्रीलंका सरकार का कोई वश नहीं था। लेकिन पिछले करीब डेढ़ महीने यानी अप्रैल की शुरुआत से आर्थिक संकट नए फेज में चला गया, जब श्रीलंका के आम लोगों का धैर्य जवाब दे गया और ईंधन के बेतहाशा बढ़ते दाम, बिजली कटौती और जरूरी वस्तुओं की किल्लत से परेशान लोग सड़कों पर निकल आए।
इस अवस्था में भी राजपक्षे सरकार जनभावनाओं का आकलन करने में नाकाम रही। चाहे कैबिनेट से इस्तीफा दिलाने का सवाल हो या खुद प्रधानमंत्री के पद छोड़ने का, हर फैसला इतनी देर से देर से लिया गया कि उसका कोई सकारात्मक असर होने की संभावना खत्म हो गई। सोमवार की ही बात करें तो सुबह सरकार समर्थकों की एक रैली हुई, जिसके बाद सरकार के खिलाफ शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हथियारबंद समूहों ने हमले शुरू कर दिए। यानी सरकार समर्थकों का एक हिस्सा अब भी यह समझ रहा था कि डरा-धमका कर और मारपीट कर सरकार विरोधी प्रदर्शनों पर काबू पा लिया जाएगा। इस प्रयास ने हालात और खराब कर दिए। आगे स्थितियां जो भी मोड़ लें, यह तो हो ही गया है कि कल तक राजपक्षे सरकार का इस्तीफा मांग रहे लोग अब महिंदा राजपक्षे की गिरफ्तारी की मांग करने लगे हैं। बहरहाल राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे अभी भी राष्ट्रीय सरकार के गठन का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि विपक्ष सहयोग के लिए अभी भी तैयार नहीं है। दिवालियापन के कगार पर खड़े देश के लिए यह स्थिति और विकट हो जाती है। आईएमएफ से बेलआउट पैकेज को लेकर बातचीत चल रही है, लेकिन सड़कों पर आम लोगों का लगातार प्रदर्शन और राजनीतिक अस्थिरता की यह स्थिति वित्तीय संकट से निकलने की कोशिशों का आगे बढ़ना और मुश्किल बना रही है।