बेलगाम महंगाई
पिछले कुछ समय से लगातार जिस तरह पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है,
पिछले कुछ समय से लगातार जिस तरह पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है, उसे देखते हुए यह आशंका पहले ही जताई जा रही थी कि इसका असर बाजार में मौजूद सभी जरूरत के सामान पर पड़ेगा ही। अब खुदरा महंगाई का जो ताजा आंकड़ा आया है, उससे साफ है कि न सिर्फ पेट्रोल और डीजल की कीमतें लोगों की पहुंच से धीरे-धीरे दूर होती जा रही हैं, बल्कि खाने-पीने के सामान की खरीदारी को लेकर भी बहुतों को सोचना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि कच्चे तेल और विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में इजाफे की वजह से थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई की दर मई में बढ़ कर रेकार्ड उच्च स्तर 12.94 फीसद पर पहुंच गई। जबकि सिर्फ साल भर पहले मुद्रास्फीति शून्य से 3.37 फीसद नीचे थी। इसके साथ-साथ खाने-पीने के सामान की कीमतें भी तेजी से बढ़ी हैं। खासतौर पर रोजमर्रा के खाने-पीने में उपयोग की सबसे जरूरी चीजों के दाम भी बेलगाम होते जा रहे हैं। सच यह है कि इस साल बीते कुछ महीनों से थोक और खुदरा महंगाई की रफ्तार में जिस तरह की तेजी आई है, उसने आम लोगों के माथे पर शिकन पैदा कर दी है।
सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति की दर दो फीसद की कमी या वृद्धि के साथ चार फीसद पर कायम रखने की जिम्मेदारी दी हुई है। यह व्यवस्था मुख्य रूप से देश की आबादी के उस हिस्से की फिक्र में है, जिसकी थाली पर बाजार भाव का सीधा असर पड़ता है। लेकिन ऐसा लगता है कि चार फीसद का यह आंकड़ा अब महज औपचारिक दस्तावेजों तक सिमट कर रह गया है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि खुदरा महंगाई दर मई में उछल कर 6.3 फीसद पर पहुंच गई।
सवाल है कि जिस दौर में कम से कम रोजमर्रा की सबसे जरूरी चीजों की कीमतों को नियंत्रण में रखने की जरूरत है, वैसे में आखिर वे कौन-सी नीतियां लागू हो रही हैं, जिनमें महंगाई पर लगाम लगने के बजाय इसमें और ज्यादा इजाफा होता जा रहा है! एक ओर, पेट्रोल का दाम कई राज्यों में सौ रुपए प्रति लीटर से पार कर चुका है तो डीजल भी इसके करीब है। वहीं खाने-पीने की लगभग सभी वस्तुओं की कीमतों में बेलगाम बढ़ोतरी ने आम लोगों के सामने बहुस्तरीय चुनौती खड़ी कर दी है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि पिछले लगभग डेढ़ साल से ज्यादातर लोग गंभीर आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे हैं। खासतौर पर समाज का वैसा तबका, जो असंगठित क्षेत्र में रोजगार या दिहाड़ी के भरोसे अपनी रोजी-रोटी चलाता है, उसके सामने जिंदगी के लिए बुनियादी जरूरतें पूरी करना भी एक बड़ी चुनौती हो गई है। पूर्णबंदी के चलते लंबे समय से रोजगार के ज्यादातर ठौर या तो ठप पड़े हुए हैं या फिर किसी तरह घिसटते हुए चल रहे हैं।
वेतन, मजदूरी या किसी तरह के आर्थिक आय के अभाव में बहुत सारे लोग केवल खाने-पीने की सबसे जरूरी चीजें ही खरीद पाते हैं। इनमें से भी बहुतों को तो पेट भरने के लिए भी दूसरों की मदद पर निर्भर होना पड़ा है। यहां तक कि मध्यवर्ग की क्रयशक्ति भी पहले की अपेक्षा काफी कमजोर हुई है। ऐसी स्थिति में महंगाई की चौतरफा मार झेलना सबके लिए आसान नहीं है। जाहिर है, अब यह सरकार पर निर्भर है कि वह बाजार में महंगाई के स्तर को कम करने से लेकर लोगों की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए क्या करती है।