Ukraine War: युद्ध में यूक्रेन ने जो सिखाया है
रूस में यह क्षमता है कि वह नाटो की सैन्य क्षमता को ध्वस्त कर सके। लिहाजा यह युद्ध अभी लंबे समय तक चलने वाला है।
आधुनिक विश्व में किसी राष्ट्र की शक्ति उसकी सैन्य शक्ति में नहीं, बल्कि उसकी आर्थिक ताकत और उसके सॉफ्ट पावर-यानी उसके जीवन मूल्यों और संस्कृति में है। अगर सैन्य शक्ति की बात करें, तो भी आधुनिक युद्ध में आमने-सामने की वैसी लड़ाई नहीं होती, जैसी पहले होती थी। आज के युद्ध में रणनीतिक व्यूह रचना की ज्यादा बड़ी भूमिका है, जिसके तहत लंबी दूरी के प्रक्षेपास्त्र छोड़े जाते हैं, और जिसमें तकनीक का महत्व बहुत अधिक होता है। और इन आधुनिक युद्धों में जीत भी ऐसे नेतृत्व पर निर्भर करती है, जो स्मार्ट और तमाम सूचनाओं से लैस हो।
मैं यह नहीं कह रहा कि आधुनिक युद्ध वीडियो गेम जैसे होते हैं। अगर आपको आधुनिक और स्मार्ट युद्ध के बारे में जानना है, तो मैं आपको कीव की आजादी के लिए चल रहे युद्ध के बारे में इलिया पोनोमारेन्को के ब्योरे को देखने की गुजारिश करूंगा। युद्ध जीतने की तरह पहले की तरह शक्ति और साहस की जरूरत आज भी है, लेकिन ताल ठोकने या बमबारी करने की वैसी आवश्यकता अब नहीं रह गई है। सवाल उठ सकता है कि सैन्य शक्ति फिर है क्या। आपको बता दूं कि मैं रक्षा विशेषज्ञ नहीं हूं। लेकिन मैं व्यावहारिक गणित के बारे में कमोबेश जानता हूं-और आज के युद्ध किसी न किसी रूप में अंकगणित की तरह ही हैं।
यूक्रेन पर हमले से पहले मैं सैन्य इतिहासकार फिलिप्स ओ' ब्रायन का प्रशंसक था। दूसरे विश्वयुद्ध पर वर्ष 2015 में आई उनकी किताब, हाउ द वॉर वाज वोन की पहली ही पंक्ति थी, 'दूसरे विश्वयुद्ध में कोई भी लड़ाई निर्णायक नहीं थी।' जो वह कहना चाहते थे, वह यह था कि वह लड़ाई मुख्यत: अलग-अलग झड़पों के जरिये विपक्ष को कमजोर करने की कवायद थी, और उसमें कोई भी लड़ाई ऐसी नहीं थी, जिसमें शक्ति संतुलन किसी एक तरफ झुका हो, बावजूद इसके कि युद्ध के खासकर आखिरी चरण में बड़ी ताकतें घातक हथियारों का इस्तेमाल कर रही थीं।
ओ' उन कुछ टिप्पणीकारों में से हैं, जिन्होंने शुरुआत में ही कह दिया था कि रूस द्वारा युद्ध के कुछ दिनों के भीतर यूक्रेन पर जीत हासिल करना संभव नहीं है। बल्कि उनकी भविष्यवाणी तो यह थी कि इस युद्ध में भी दोनों पक्ष छोटी-छोटी लड़ाइयों के जरिये एक दूसरे को कमजोर करने की कोशिश करेंगे-और इस युद्ध में यूक्रेन के जीतने की भी संभावना है।
अगर आप इस युद्ध से पहले के रूस और यूक्रेन के रक्षा बजट की तुलना करें, तो उन विश्लेषकों के अनुमान को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे, जो यह कह रहे थे कि युद्ध शुरू होने के कुछ दिनों के भीतर ही रूस यूक्रेन पर कब्जा कर लेगा। लेकिन युद्ध शुरू होने के कुछ ही समय बाद निर्णायक जीत हासिल कर लेना उतना आसान नहीं है, जितना कि कमरे के अंदर बैठकर युद्ध नीति पर बात करने वाले जनरल समझते हैं। दरअसल रूसी युद्धक टैंकों को यूक्रेन के एंटीटैंक मिसाइलों ने जिस तरह बेअसर कर दिया, उससे रूस की सैन्य ताकत प्रभावित हुई। ऐसा लगता है कि पुतिन के सैन्य जनरलों को मोर्चे पर उतरने से पहले व्यूह रचना की गंभीर तैयारी पहले कर लेनी चाहिए थी।
समझने की बात यह भी है कि यूक्रेन ने जैसे ही रूस के शुरुआती आक्रमण को बेअसर किया, उसके बाद यह रूस और यूक्रेन के बीच का सामान्य युद्ध नहीं रह गया। बेशक रूस के खिलाफ मोर्चे पर यूक्रेन को अकेले ही लड़ना-मरना पड़ रहा है, लेकिन यह भी सच है कि यूक्रेन यह युद्ध सिर्फ अपनी सैन्य क्षमता पर नहीं लड़ रहा। चूंकि यूक्रेन ने इस युद्ध को तानाशाही हमले के खिलाफ लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई के रूप में पेश किया है, इस कारण उसे पश्चिम से हथियारों की भारी मदद मिल रही है। और जब आप यूक्रेन को मिल रही सैन्य मदद के ब्योरे देखते हैं, तो रूस की सैन्य ताकत उसके सामने कमतर दिखाई देती है।
तथ्य यह भी है कि रूसी सैन्य शक्ति अपनी वैश्विक छवि की तुलना में कमतर साबित हुई है। एक तरफ तो नाटो की सैन्य तकनीक बेहद ताकतवर साबित हुई है, जिसके तहत अधिक दूरी से भी रूसी ठिकानों को निशाना बनाना संभव हुआ है। जाहिर है, नाटो देशों से हथियार और सूचनाओं का यूक्रेन को लाभ मिला है। दूसरी ओर, यूक्रेन अपने सीमित संसाधनों का जितना बेहतर सैन्य उपयोग कर रहा है, वह भी रेखांकित करने लायक है।
ओ' ब्रायन से एक और चीज जो मैंने सीखी, वह यह है कि आधुनिक युद्ध में सैन्य उपकरणों को झोंक देने का नुकसान होता है। रूस ने यूक्रेन पर हमले के दौरान अपने टैंकों के काफिले को झोंक दिया। लेकिन कीव पर कब्जे की कोशिश में उसके अनेक टैंक नष्ट हो गए, और द स्टडी ऑफ इंस्टीट्यूट ऑफ वॉर का मानना है कि युद्ध की शुरुआत में ही रूस को भारी नुकसान हो गया।
अभी चल रहे इस युद्ध का एक निष्कर्ष यह है कि मौजूदा दौर में आर्थिक ताकत सैन्य ताकत से ज्यादा प्रभावी है। दूसरे विश्वयुद्ध में नाजी जर्मनी का पराभव आखिरकार तब हुआ था, जब मित्र राष्ट्रों के युद्धक विमानों ने जर्मनी पर बमबारी कर उसकी सैन्य क्षमता ध्वस्त कर दी थी। न तो यूक्रेन रूस के खिलाफ ऐसा कर सकता है, न ही रूस में यह क्षमता है कि वह नाटो की सैन्य क्षमता को ध्वस्त कर सके। लिहाजा यह युद्ध अभी लंबे समय तक चलने वाला है।
सोर्स: अमर उजाला