ब्रिटेन के नुकसान का सौदा

ब्रेग्जिट करार होने के बाद बना शुरुआती उत्साह और राहत का माहौल जैसे- जैसे शांत हो रहा है,

Update: 2020-12-29 08:11 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ब्रेग्जिट करार होने के बाद बना शुरुआती उत्साह और राहत का माहौल जैसे- जैसे शांत हो रहा है, ये हकीकत घर करने लगी है कि ये सौदा असल में ब्रिटेन के लिए खासे नुकसान का है। ब्रिटेन के बजट उत्तरदायित्व कार्यालय ने पहले ही कहा था कि ब्रिटेन के कुल उत्पादन में ब्रेग्जिट की वजह से 4 फीसदी तक की गिरावट आएगी। यूरोपीय मार्केट और कस्टम क्षेत्र से अलग होने का मतलब है कि ब्रिटिश कंपनियों की लागत बढ़ जाएगी। इससे चीजें महंगी होंगी। इसका असर रोजगार पर भी पड़ेगा। फिर समझौते की एक और खामी यह है कि इसमें ज्यादातर सहमति उत्पादित वस्तुओं के कारोबार को लेकर बनी है। इसमें सर्विस इंडस्ट्रीज के लिए ज्यादा प्रावधान नहीं हैं। जबकि सेवा क्षेत्र का ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान है। ब्रिटेन के इंस्टीट्यूट फॉर फिस्कल स्टडीज के अनुमान के मुताबिक ब्रेग्जिट के परिणामस्वरूप ब्रिटिश के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में दो फीसदी की गिरावट आएगी, जबकि मुद्रास्फीति 3.5 प्रतिशत बढ़ेगी। कुल अनुमान यह लगाया गया है कि ब्रेग्जिट और कोरोना महामारी का साझा नतीजा देश में निवेश में 30 फीसदी तक गिरावट के रूप में सामने आएगा। सबसे बड़े सिंगल मार्केट से अलग हो जाने के कारण ब्रिटेन अब पहले की तरह निवेशकों के लिए आकर्षक स्थान नहीं रह जाएगा। इसीलिए ये राय जताई गई है कि ब्रिटेन ने एक ऐसा कदम उठाया है, जो लंबी अवधि में उसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाएगा। यानी भले मौजूदा भावनात्मक माहौल में भल ब्रिटेन के ज्यादातर लोग उत्सव मना रहे हों, लेकिन ब्रेग्जिट से सचमुच देश का हित भी सधेगा, ऐसा नहीं है।


ब्रेग्जिट समझौते को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अपनी बड़ी जीत के रूप में पेश किया है। यह स्वाभाविक है। पिछले साल हाउस ऑफ कॉमन्स के चुनाव में इसी मुद्दे पर उन्हें भारी बहुमत मिला था। अब अनुमान लगाया जा रहा है कि ब्रेग्जिट करार 31 दिसंबर की समयसीमा से पहले संपन्न कर लेने से उनकी लोकप्रियता में इजाफा होगा, जो कोरोना महामारी से निपटने में उनकी सरकार की नाकामी की वजह से घटती जा रही थी। पिछले साल के चुनाव में लेबर पार्टी ने चुनाव जीतने पर ब्रेग्जिट के मुद्दे पर नया जनमत संग्रह कराने का वादा किया था। समझा जाता है कि इसकी वजह से उसे भारी नुकसान हुआ। इससे भी जन भावना का संकेत मिला था। मगर अब यह साफ हो रहा है कि इस समझौते से ब्रिटेन को भारी नुकसान होगा।


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