ट्विटर का आत्म-समर्पण
इस साल जब ट्विटर ने डॉनल्ड ट्रंप को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हार के बाद प्रतिबंधित किया
twitters surrender modi government इसीलिए बनी इस धारणा में दम है कि पिछले दिनों भारत सरकार के साथ चले टकराव के बाद आखिरकार ट्विटर ने समर्पण कर दिया है। उसने सरकार के मनमाफिक अधिकारी नियुक्त कर दिए हैँ। इस तरह विपक्ष के संवाद करने के बचे एकमात्र माध्यम के भी संकुचित होने की शुरुआत हो गई है।
इस साल जब ट्विटर ने डॉनल्ड ट्रंप को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हार के बाद प्रतिबंधित किया, तो बहुत से लोगों ने उसे लोकतंत्र के प्रति कंपनी की निष्ठा का सबूत माना। फेसबुक ने भी ऐसी कार्रवाई की, तो उसे अमेरिकी कंपनियों की मूलभूत आस्था के रूप में देखा गया। हालांकि उसके पहले उसी फेसबुक और ट्विटर पर ट्रंप समर्थक गोलबंदी में सहायक बनने के आरोप थे। उस समय एक अध्ययन से ये सामने आया था कि जहां अमेरिका में फेसबुक ने अपने एल्गोरिद्म की धुर दक्षिणपंथी सेटिंग की हुई है, वहीं जर्मनी में उसकी सेटिंग वहां की चांसलर अंगेला मैर्केल के अपेक्षाकृत उदार नजरिए के अनुरूप है। इसीलिए इन कंपनियों के ऐसे चरित्र से वाकिफ अमेरिका के प्रगतिशील टीकाकारों ने भी ट्रंप के खिलाफ इन कंपनियों के कदम की आलोचना की थी। ये बात कही गई थी कि कारोबारी कंपनियां लोकतंत्र की शर्तें तय करें, यह अमान्य है। इस बहस से जाहिर यह हुआ कि इन कंपनियों की अपने मुनाफे के अलावा कोई और निष्ठा नहीं है। इसलिए वे सत्ता तंत्र की सोच के मुताबिक अपनी रणनीति बनाती हैँ।
इसीलिए भारत में अगर फेसबुक के बाद अब ट्विटर भी वर्तमान सरकार की मंशा के मुताबिक काम करता दिख रहा है, इसमें कोई हैरत की बात नहीं है। इससे अचरज सिर्फ उन्हें हुआ है, जो अमेरिका को ड्रीम लैंड और अमेरिकी कंपनियों को सदिच्छा की भावना से संचालित समझते हैँ। बहरहाल, अपने देश मे हकीकत यह है कि ट्विटर ने एक वैसे 'अपराध' के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी और फिर पूरी कांग्रेस पार्टी के ट्विटर हैंडल्स को ब्लॉक कर दिया (जिसे भारी विरोध के बाद अब अलब्लॉक किया जा चुका है), जो वहां आम रहा है। अब ये सामने है कि कई भाजपा नेताओं ने भी अतीत में बलात्कार पीड़िता के परिवार की पहचान ट्विटर पर सार्वजनिक की थी। लेकिन ट्विटर के वे कथित नियम कारगर नहीं हुए, जिनकी दुहाई देकर उसने कांग्रेस नेताओं पर कार्रवाई की। इसीलिए बनी इस धारणा में दम है कि पिछले दिनों भारत सरकार के साथ चले टकराव के बाद आखिरकार ट्विटर ने समर्पण कर दिया है। उसने सरकार के मनमाफिक अधिकारी यहां नियुक्त कर दिए हैँ। रही बात नियमों की तो उसकी जरूरत के मुताबिक व्याख्या करना आखिर उन्हीं अधिकारों के दायरे में है। इस तरह देश में विपक्ष के संवाद करने के बचे एकमात्र माध्यम यानी सोशल मीडिया के भी संकुचित होने की शुरुआत हो गई है।
By NI Editorial