श्रद्दांजलि बप्पी लाहिरी: 'चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा न कहना'
संगीत की दुनिया के लिहाज़ से 2022 की फरवरी, ब्लैक फरवरी के रूप में याद की जाएगी
संगीत की दुनिया के लिहाज़ से 2022 की फरवरी, ब्लैक फरवरी के रूप में याद की जाएगी. नौ दिन पहले ही स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अंतिम हिचकी ली थी और अब 15 फरवरी को बप्पी लाहिरी ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया. डिस्को किंग बप्पी दा का ओरिजनल नाम अलोकेश लाहिड़ी है, लेकिन फिल्मी दुनिया में वो बप्पी लाहिरी के नाम से जाने जाते थे.
बेशक बप्पी दा की मूल पहचान उनका संगीत ही था, लेकिन आंखों पे लगे गॉगल, गले में पहनी सोने की चैन और अंगुलियों में सजी हीरे की अंगूठियों से भी उन्हें कम नहीं जाना जाता था. उनका हुलिया देखकर नहीं लगता कि 'किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है' (फिल्म एतबार) जैसी संजीदा गज़ल और 'चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना कभी अलविदा ना कहना' जैसे संजीदा गीत का कंपोज़र यही शख्स है.
उनकी लाइफस्टाइल पर 'आई एम अ डिस्को डांसर' (फिल्म डिस्को डांसर) और 'जलता है जिया मेरा भीगी भीगी रातों में' जैसे गीत ही फिट बैठते थे. उनकी यही खूबी उन्हें वर्सटाईल कंपोज़र की श्रेणी में रखती है.
बप्पी दा के बारे में सबसे ज्यादा पूछा जाने वाला सवाल यही है कि 'आखिर वे इतना सारा सोना और हीरे जवाहरात पहनते ही क्यों थे ?' अमेरिकन पॉप स्टार एल्विस प्रेसली का नाम आपने सुना होगा, वे अपने हर कंसर्ट के दौरान सोने की चैन पहना करते थे. बप्पी दा प्रेसली से प्रभावित होकर ही सोना पहनते थे. ऐसा उन्होंने खुद एक साक्षात्कार में कहा था. वो इसे अपने लिए लकी भी मानते थे. वैसे भी बॉलीवुड में टोटकों पर यकीन के लिए बहुत मशहूर रहा है. बहरहाल.
बप्पी को संगीत विरासत में मिला. जलपाईगुड़ी (वेस्ट बंगाल) में जन्मे बप्पी के माता-पिता बंसारी लाहिड़ी और अरपेश लाहिड़ी दौनों ही बंगाली सिंगर और म्युजि़शियन थे. अपनी इकलौती औलाद को उन्होंने संगीत की दुनिया से छोटी सी उम्र में परिचित करा दिया था. तीन साल की उम्र में ही उन्होंने बप्पी की तबले से दोस्ती करवा दी. इस तबले वादन के साथ बप्पी दा ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पेरेंट्स से ही ली. ये अलग बात है कि फिल्मी संगीतकार बनने की प्रेरणा उन्हें सचिन देव बर्मन से मिली.
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही उन्होंने बर्मन दा के गानों को सुनना और गाना-गुनगुनाना शुरू कर दिया था. बप्पी लाहिरी की पहली फिल्म बंगाली मूवी 'दादू' (1972) थी और 'नन्हा शिकारी' (1973) उनकी पहली हिंदी फिल्म थी. लेकिन उनकी किस्मत जगाने का श्रेय निर्माता ताहिर हुसैन को जाता है जिनकी फिल्म 'जख्मी' (1975) ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया. "आओ तुम्हें चांद पे ले जाएं' और 'जलता है जिया' गीत के अलावा एक यूनिक काम भी इस फिल्म में बप्पी के नाम है.
'नथिंग इज इम्पासिबिल' गीत उन्होंने किशोर और रफी दौनों को साथ तो गवाया ही उनकी आवाज़ में अपनी आवाज भी मिलाते हुए खुद भी गाया. बताते दें बप्पी बहुत अच्छे गायक भी थे. अभी 2020 में उन्होंने श्रद्धा कपूर और टाईगर श्राफ की फिल्म 'बाग़ी 3' के लिए पापुलर नंबर 'भंकस' गाया. जिसे तनिष्क बागची ने कंपोज़ किया था. गायक के रूप यह उनकी अंतिम फिल्म थी. गायक के रूप में उन्होंन्रे दूसरे संगीतकारों के साथ भी खूब काम किया.
बप्पी की पहचान डिस्को स्टाइल और रॉक संगीत कम्पोज़र की है. अपना मनपसंद संगीत रचने का मौका उन्हें 1982 में 'डिस्को डांसर' से मिला जिसकी संगीत की धुनों पर दूसरे बंगाली बाबू मिथुन चक्रवर्ती थिरकते और 'आई एम ए डिस्को डांसर' गाते हुए नज़र आए. इसी साल अमिताभ बच्चन और स्मिता पाटिल बरसात के पानी में आग लगाते नज़र आए जब उन्होंने बप्पी दा की धुन पर 'आज रपट जाएं तो हमें ना उठईयो' गीत परदे पर गाया.
फिर आई अमिताभ की ही 'शराबी' (1984) जिसमें उन्होंने किशोर से दो अलग मूड के गाने गवाए. 'मंजि़लें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह' और 'दे दे प्यार दे, प्यार दे रे'. फिर 'साहेब' (1985) में उनका गीत 'यार बिना चैन कहां रे' ने धूम मचाई.
1975 में माइकल जैक्सन का शो जब मुंबई हुआ तो उन्होंने जिस इकलौते संगीतकार को अपने शो में बुलाया वो हिंदी संगीत में पॉप म्युजि़क का तड़का लगाने वाले बप्पी लाहिरी ही थे. बॉलीवुड में पॉप संगीत की एंट्री कराने वाले बप्पी को अपने इस प्रयोग के लिए आलोचना का शिकार भी होना पड़ा.
1973 से शुरू हुए बॉलीवुड के संगीत सफर की शुरूआत करने वाले बप्पी दा ने अपने कैरियर में आपकी खातिर, सुरक्षा, लहू के दो रंग, वारदात, ज्योति, हिम्मतवाला, कसम पैदा करने वाले की, गिरफ्तार, एडवेंचर ऑफ टाइगर, डांस डांस, आग ही आग, कमांडो, गुरू, नाकाबंदी, आज का अर्जुन और घायल जैसी फिल्मों में न सिर्फ संगीत दिया बल्कि अनेक फिल्मों में पार्श्व गायन भी किया. हिंदी के अलावा उन्होंने बंगाली, तमिल, तेलगु, कन्नड़ और गुजराती फिल्मों में भी संगीत दिया.
शराबी फिल्म के लिए बेस्ट म्युजि़क का फिल्म फेयर अवार्ड मिला और बाद में फिल्म फेयर के लाइफ टाइम अवार्ड से भी उन्हें नवाज़ा गया. 'ओ ला ओ लाला' (डर्टी पिक्चर) के लिए बेस्ट आइटम सांग का मिर्ची म्युजि़क अवार्ड भी मिला.
बता दें नसीर, विद्या और इमरान हाशमी की हिट फिल्म 'डर्टी पिक्चर में यह गाना बप्पी ने श्रेया घोषाल के साथ गाया था और यह साल 2011 का हिट आइटम नंबर था. इस गाने को परदे पर साकार नसीरूद्दीन शाह और विद्या बालन ने किया था. विशाल-शेखर ने इसे कंपोज़ किया था.
लाहिरी के गीत 'थोड़ा रेशम लगता है' (फिल्म ज्योति) के कुछ भाग को अमेरिकी सिंगर आर एण्ड बी द्वारा अपने गीत 'एडिक्टिव' (2002) में शामिल किया गया था. इसके चलते कॉपी राइट धारक म्युजि़क कंपनी सारेगामा इंडिया ने इसे जारी करने वाली कंपनी इंटरस्कोप रिकार्ड्स और मूल कंपनी यूनिवर्सल म्युजि़क ग्रूप पर मुकदमा भी दायर किया था. 500 डॉलर के इस मुकदमे के बाद लॉस एंजिलिस की एक संघीय अदालत ने गाने की सीडी की बिक्री पर रोक लगाते हुए फैसला सुनाया था. फैसले में कहा गया कि यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक कि लाहिरी को गाने में क्रेडिट नहीं दे दी जाती.
बप्पी लाहिरी ने राजनीति में भी हाथ आजमाए हैं. 2014 में जब मोदी लहर चल रही थी और बहुत सारे सेलिब्रिटीज़ भाजपा ज्वाइन कर रहे थे तब लाहिरी भी भाजपा के दरवाजे राजनीति में शामिल हो गए. उन्होंने 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा. लेकिन यहां उनका जादू नहीं चला और वो श्रीरामपुर लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी से मात खा गए.
संगीत की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने वाले 69 बप्पी लाहिरी ने मंगलवार और बुधवार की दरम्यानी रात ग्यारह बजे मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांसें ली. वे पिछले कुछ समय से बीमार थे. अपने पीछे पत्नी और एक बेटा-बेटी को छोड़ गए हैं. बप्पी भले ही संगीत की दुनिया को अलविदा कह गए हैं लेकिन अपने पीछे संगीत की अलग तरह की विरासत छोड़ गए हैं.
उनके गीत-संगीत हवाओं में हमेशा गूंजते रहेंगे ओर अपनी अलग तरह की खुश्बू से संगीत की फिज़ाओं को महकाते रहेंगे. उम्मीद की जाना चाहिए बप्पी दा के प्रशंसक उनके गीत संगीत को वैसे ही अपनी यादों में हमेशा के लिए संजोकर रखेंगे, जैसा वे अपने एक गीत में कह गए हैं 'चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा न कहना'
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है
शकील खान फिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.