महंगी दरों पर ठहरना व खाना भी पसंद कर सकती है, लेकिन क्या इतना खर्च करके सैलानी को सुकून मिल जाएगा या भीड़ के भरोसे ही हिमाचल के पर्यटक स्थल अपना संतुलन रख पाएंगे। सबसे अधिक अभद्रता का प्रदर्शन तो पर्यटन केंद्रों की सफाई, जल स्रोतों के करीब गंदगी और महंगी टैक्सी संचालन के जरिए होता है। पर्यटक को हम आखिर दिखाना और महसूस क्या कराना चाहते हैं। बेशक इस बार कुछ ग्रीष्मोत्सव शुरू हुए हैं, लेकिन क्या इनके जरिए हम पर्यटन मनोरंजन की किसी अवधारणा में काम कर रहे हैं या केवल प्रशासनिक प्रदर्शन में इन्हें सरकार के प्रदर्शन का दस्तावेज बना रहे हैं। जो भी हो, पर्यटन हिमाचल के संकल्प, साधना और सेवा के रूप में सामने नहीं आ रहा, बल्कि यहां भी कमाई एक परिस्थिति है, जो केवल होटलों की बुकिंग के आंकड़ों में दर्ज हो रही है।
यानी पर्यटन की ओवरक्राउडिंग ही हिमाचल की आर्थिक बेहतरी बन रही है। किसी को यह फिक्र नहीं है कि ऐसे पर्यटन की कीमत आम नागरिक को ही चुकानी पड़ेगी। हर पर्यटक सीजन हिमाचली जनता पर कई तरह के वित्तीय, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा व्यावहारिक दबाव लेकर आता है। सारी परिवहन व्यवस्था चौपट हो जाती है तथा आम नागरिक की सुविधाओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है। मसलन बिजली व जलापूर्ति हर बार पर्यटन सीजन के दौरान थक कर असहाय प्रतीत होती है, लेकिन हमारी योजनाएं यह अनुमान लगाने में असफल हैं कि किस तरह इस तरह की गतिविधियां आगे चलकर अपनी मांग बढ़ाएंगी। एक अच्छा पर्यटक सीजन हिमाचल की आर्थिकी को इतना संबल दे जाता है कि साल के पैमाने भर जाते हैं, लेकिन इसकी लागत में नागरिक सुविधाएं तथा उनके संतुलन बिगड़ जाते हैं। ऐसे में प्रमुख पर्यटक स्थलों में सीजन के दौरान आम नागरिक की सुविधाओं के अलावा उसकी सामान्य गतिविधियों की सुरक्षा के इंतजाम तथा भविष्य में ऐसे विकल्प तराशने होंगे, ताकि इन पर कोई खलल न पड़े। पर्यटक सीजन की योजना, विभागीय समन्वय तथा प्रशासनिक व्यवस्था के अलावा यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि इस दौरान ब्रांड हिमाचल सशक्त हो तथा आम नागरिक तथा पर्यटक किसी तरह की अव्यवस्था के शिकार न हों। पर्यटन को लेकर वार्षिक योजनाओं के प्रारूप में हर नई चुनौती व बढ़ते आगमन के आंकड़ों को लेकर गंभीरता से विचार करना होगा।