इनमें से मुख्य समाधान यह है कि तंबाकू और शराब के सेवन को जितना कम किया जाएगा, उतना ही रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि अन्य कारण भी हैं, जैसे एचपीवी 16 यौन संक्रमण वायरस, मुख की सफाई का अभाव, जंक फूड का अधिक व फल-सब्जी का कम सेवन, पर ये सब कारण दूसरी श्रेणी के हैं व अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण हैं। इन सभी पर ध्यान देना चाहिए, पर सबसे बड़ा समाधान है कि तंबाकू और शराब के सेवन में तेजी से कमी लाई जाए। तंबाकू के विभिन्न रूप हानिकारक हैं, परंतु मुख कैंसर के कारण के रूप में गुटखे के उपयोग को कम करना विशेष तौर पर महत्वपूर्ण है। गुटखे में तंबाकू सहित कई पदार्थ होते हैं। इसके स्वास्थ्य से जुड़े खतरों पर एक अदालत ने खाद्य मानकों पर केंद्रीय समिति से जांच करवाई, तो समिति ने गुटखे के स्वास्थ्य संबंधी गंभीर संकटों को सही मानते हुए इस पर प्रतिबंध की संस्तुति की। कुछ राज्यों की सरकारों ने अपने-अपने ढंग से प्रतिबंध लगाए, पर यह करोड़ों का व्यवसाय बन चुका है। अतः इसमें कठिनाई आई व बिक्री जारी रखने के रास्ते निकाल लिए गए।
एक रास्ता यह था कि तंबाकू व अन्य पदार्थों को अलग-अलग पाउचों में बेचा जाए। इस तरह बिक्री जारी रखी गई व सेवन बढ़ता गया। गुटखे में तंबाकू, प्रोसेस्ड चूना, कत्था, सुपारी, मिठास-ताजगी-सुगंध के पदार्थ होते हैं व इसके साथ तीखापन बढ़ाने के लिए अनेक हानिकारक पदार्थ मिलाने के आरोप लगते रहे हैं। इसे खाकर थूकने से गंदगी व स्वास्थ्य समस्याएं अलग से बढ़ती हैं। मुंह के कैंसर के अतिरिक्त गुटखे से अनेक दर्दनाक स्थितियां व स्वास्थ्य समस्याएं भी जुड़ी हैं, जैसे ओरल सब-म्यूकस, फिब्रोसिस। इस स्थिति में मुंह खोलने की क्षमता निरंतर कम होती जाती है व अंत में ऐसी स्थिति आ सकती है कि कुछ पीने के लिए मात्र एक पाइप ही कठिनाई से मुंह में डाली जा सकती है। शराब, तंबाकू व गुटखे के सेवन में कमी होने से मुख के कैंसर में कमी होने के साथ अनेक अन्य स्वास्थ्य लाभ व सामाजिक-आर्थिक लाभ भी प्राप्त होंगे, यह भी ध्यान में रखने से इस प्रयास का महत्व और बढ़ जाता है।
यदि बचाव पर जोर न देकर इलाज पर जोर दिया जाए, तो यह बहुत महंगा पड़ता है। टाटा मेमोरियल सेंटर ने हाल ही में पता लगाया कि एक वर्ष में मुख कैंसर के इलाज पर हमारे देश में कितना खर्च होता है, तो बहुत चौकाने वाला आंकड़ा मिला कि इस पर 2,386 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। यदि इस रोग की आरंभिक स्थिति में पहचान व इलाज हो जाए, तो इलाज पर अपेक्षाकृत कम खर्च आता है, पर हमारे देश में इसके अधिकांश मरीज रोग बढ़ जाने पर ही इलाज के लिए पहुंचते हैं। सबसे अधिक ध्यान बचाव के उपायों पर ही देना चाहिए। इस बारे में जन चेतना बढ़ाने के लिए एक अभियान की तरह शराब व तंबाकू व गुटखों के सेवन में कमी लाने का प्रयास करना चाहिए। मुख-स्वच्छता पर अधिक ध्यान देना चाहिए। संतुलित भोजन व इसमें भी प्रचुर मात्रा में सब्जी व फल के सेवन पर ध्यान देना चाहिए। जो खर्च तंबाकू व शराब पर होता है, वह फल व सब्जी पर किया जाए, तो इस बीमारी में बहुत सारी कमी अपने आप आ जाएगी।
क्रेडिट बाय अमर उजाला