दूसरों का दिल जीतने के लिए इंसान होना जरूरी है, जो मशीनें कभी नहीं बन सकेंगी

ओपिनियन

Update: 2022-03-21 08:00 GMT
एन. रघुरामन का कॉलम: 
मैं जितनी यात्राएं कर रहा हूं, उतना ही इस बात का अहसास हो रहा है कि मशीनें या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कभी भी हम मनुष्यों की जगह नहीं ले सकतीं। इसके समर्थन में एक अनुभव बताता हूं। स्पाइसजेट एयरवेज 3440 ने शनिवार दोपहर अपने निर्धारित समय से पहले मुंबई से ग्वालियर के लिए उड़ान भरी। 2.40 घंटे लंबी उड़ान कभी-कभार यात्रा करने वालों के लिए चिंता का विषय थी।
ऐसे में दो नौजवान क्रू-मेंबरों ने अपने उदार व्यवहार-त्वरित सेवाओं से असहज यात्रियों को अच्छा महसूस कराया। वहीं फ्लाइट कैप्टेन आधार चौधरी यात्रियों को नई सूचनाओं से अपडेट करते रहे। वे न सिर्फ अच्छे पायलट थे, बल्कि उनके शब्दों का चयन भी बढ़िया था। उन्होंने क्रू-मेंबरों को भी अच्छी मेज़बानी के लिए शुक्रिया कहा। बहुत कम सीनियर्स इस तरह खुलकर जूनियर की सराहना करते हैं, इसलिए मुझे अच्छा लगा।
आखिरकार, वे तय समय से 45 मिनट पूर्व ग्वालियर एयरपोर्ट पर विमान उतारने में सफल रहे। दोपहर के 3.55 हो रहे थे और बाहर तापमान 32 डिग्री सेल्सियस था। फ्रंट सीट पर मेरे साथ दो और यात्री थे, जिनकी उम्र एक-दूसरे से पूरी तरह विपरीत थी। एक व्हीलचेयर पर निर्भर 81 वर्ष के यात्री थे, वहीं दूसरा यात्री महज 18 दिनों का नवजात शिशु था। शायद डिलीवरी के बाद मां और बच्चा पिता के साथ घर लौट रहे थे।
पूरी उड़ान में पिता उसे छाती से लगाए चहलकदमी करते रहे थे। जब विमान के दरवाजे खुले तो कैप्टेन ने क्रू से कहा कि अभी यात्रियों को उतरने न दें, क्योंकि हैदराबाद से एक दूसरी फ्लाइट अभी-अभी लैंड हुई थी। जब तक वह फ्लाइट अपनी तय जगह पर पार्क नहीं हो जाती और इंजिन बंद नहीं हो जाते, तब तक यात्रियों को रन-वे पर 100 फीट भी चलने की अनुमति नहीं दी जाती।
यह सुरक्षा-कारणों से करते हैं, क्योंकि विमान के पंखे जख्मी कर सकते हैं। चूंकि दरवाजे खुल गए थे, इसलिए यात्री तुरंत सीटों से उठ खड़े हुए और दरवाजे के पास चले आए। बुजुर्ग सज्जन सबसे पहले उतरने की प्रतीक्षा कर रहे थे, जिनके बाद नवजात शिशु और उसके माता-पिता की बारी थी। तभी पार्किंग एरिया में प्रतीक्षा कर रहे ग्राउंड-स्टाफ ने कुछ ऐसा किया, जिसने उस खुशनुमा यात्रा का मजा किरकिरा कर दिया।
उन्होंने यात्रियों से उतरने को कहा और जब वे उतर गए, तो उन्हें तब तक रुकने को कहा जब तक कि दूसरा विमान पूरी तरह रुक नहीं जाता। 32 डिग्री तापमान में 18 दिन का शिशु रोने लगा। 81 साल के बुजुर्ग भी व्हीलचेयर पर बैठते ही लगभग चीखकर उठ खड़े हुए, क्योंकि वह बहुत गर्म थी। शायद विमान आने से पहले वह घंटों धूप में रखी थी। इस अमानवीय व्यवहार के लिए दूसरे यात्री एयरलाइन-स्टाफ पर चिल्लाने लगे।
ग्राउंड स्टाफ को ऐसा इसलिए करना पड़ा था, क्योंकि उनके पास विमान को साफ करके अगली यात्रा के लिए तैयार करने की खातिर केवल आधे घंटे का समय था। थोड़ी बहस के बाद यात्रियों को टर्मिनल बिल्डिंग में जाने दिया गया। ऐसा दूसरे विमान के रुकने से पहले किया गया, जो नियमों के विरुद्ध था।
जो नवजात विमान में चुपचाप रहा, वह टर्मिनल बिल्डिंग पहुंचने तक पूरे समय रोता रहा। अब आप ही बताएं अगर हम इंसान के बजाय मशीन की तरह बिना भावनाओं के काम करेंगे, तो जाहिर है हम कभी नहीं समझेंगे कि नवजात शिशु और व्हीलचेयर को कड़ी धूप में नहीं रखना चाहिए। ऐसे तो हम अंतत: ग्राहकों को नाराज ही करेंगे।
फंडा यह है कि अगर दूसरों का दिल जीतना चाहते हैं और एक सफल बिजनेस चलाना चाहते हैं तो उसके लिए मनुष्य होना ज्यादा जरूरी है। और यकीन करिए, मशीनें कभी भी मनुष्यों की भावनाओं की नकल नहीं कर सकती हैं।
Tags:    

Similar News

-->