आधा पौना चाहा, क्योंकि जान बची तो लाखों पाए। और इन लाखों के मुआविज़े के लिए इन अमीरज़ादों के सामने चिरौरी करना आसान हो जाएगा। पूरी तरह मर गए तो उनके वंशज इन कदमत्त नायकों से यह चिरौरी करेंगे। जी हां, चिरौरी में भी वंशवाद चलता है। पीढ़ी दर पीढ़ी बीएमडब्ल्यू कारें इसी तरह फुटपाथ वासियों को कुचलती हुई निकल जाती हैं, लेकिन बाकी बचे आक्रांत लोगों में चीखो-पुकार नहीं, विनय मान रहता है। 'देखिए आप तो मालिक हैं, कलमुहे अंग्रेज़ देश छोड़ गए, यह स्वामित्व आपके हवाले कर गए। हम जानते हैं साहिब जो राजा है वह राजा रहेगा, जो रंक है वह रंक रहेगा।' इस देश में रंक की मजऱ्ी तो ईवीएम मशीनें भी नहीं चलने देती। इसलिए रंक गदगद भाव से झुके हुए हैं और वंशगत राजाओं से नई जि़ंदगी के सपने भी भीख मांग रहे हैं। उनके पास गदगद भाव में रहने के सिवा कोई और विकल्प ही क्या है? यहां आपको भूख लगे तो देश भक्ति का गायन इस भूख को मिटा देता है। बरसों बीत गए, रोज़गार दफ्तरों की खिड़कियां खटखटाते हुए।
ये खिड़कियां कभी नहीं खुलती। खुलती हैं तो उनमें से अजनबी, ऊबे और निरपेक्ष चेहरे नज़र आते हैं, जिनका दर्द है जि़ंदगी की पायदान में तरक्की की एक और सीढ़ी चढ़ जाना। महंगाई भत्ते की किस्त के लिए परेशान होना। आपको सेवा का अधिकार मिला है, इनको न बताइएगा। क्योंकि इन दफ्तरों में जो आसामी खाली हो जाती है, रिटायर होने से, बदली होने से या इस दुनिया में फानी से कूच कर जाने के बाद भी उसे भरा नहीं जाता। क्योंकि सरकार का खज़ाना खाली है, बजट घाटा खत्म नहीं होता और जीएसटी के केंद्रीय खज़ाने से उन्हें पूरा हिस्सा नहीं मिलता। अब भला खाली आसामियां कैसे भरी जाएं? आसामियां भरेंगी नहीं तो आपको सेवा का अधिकार कैसे दे दिया जाएगा? खिड़की के पीछे बैठे अधिकारी ने आपसे बात कर ली यही क्या कम है। अब जीना है तो अपने अंदर गदगद हो जाने का भाव पैदा कर लो। हर बार की तरह इस बार यह कम्बख्त बारिश भी कैसी आई। पहले तो बरसी नहीं, आप इंतजार करते चले और खेत अपने लिए परती परिकथा लिखते गए। बाज़ारों में दुकानदारों के चेहरों पर लिखा है 'यह मंदीग्रस्त है'। कल कारखानों की चिमनियां अब पूरा दिन धुआं नहीं उगल पाती। काम मांगते हुए हाथ मनरेगा से विनय करते हैं कि पूरा बरस नहीं तो सौ दिन ही काम दे दो। लेकिन उनकी विनय फिलहाल फर्जी कार्डो के मकड़जाल में उलझी है। उनके पास विकल्प क्या है? वह गदगद भाव से दिनों में बदलने का इंतज़ार कर रहे हैं।
सुरेश सेठ
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