साहा के साथ कोई ज्यादती नहीं हुई, अगर वो खुद के गिरेबां में झांके

बल्लेबाज ऋद्धिमान साहा को टेस्ट क्रिकेट में अपना पहला अर्धशतक लगाने के लिए 10 पारियों का इंतजार करना पड़ा था

Update: 2022-02-22 12:33 GMT
बंगाल के विकेटकीपर बल्लेबाज ऋद्धिमान साहा (Wriddhiman Saha) को टेस्ट क्रिकेट में अपना पहला अर्धशतक लगाने के लिए 10 पारियों का इंतजार करना पड़ा था. आखिरी 18 पारियों में वो भी करीब 3 साल में साहा के बल्ले से सिर्फ एक अर्धशतक निकला है. इसके बावजूद भी साहा को लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है. आज के दौर में जहां उम्दा से उम्दा विकेटकीपर के चयन के लिए पहली प्राथमिकता जहां उनकी बल्लेबाजी योग्यता होती है, साहा को खुद को भाग्यशाली मानना चाहिए कि इस दौर में भी वो भारत के लिए 40 मैच खेल गए. करीब 38 साल के साहा को वाकई में अगर ये लगता है कि वो टेस्ट क्रिकेट में ऋषभ पंत को पछाड़कर प्लेइंग-11 में शामिल हो सकते हैं, तो उन्हें सही में राहुल द्रविड़ (Rahul Dravid) जैसे कोच की ही जरूरत थी, जो उन्हें सही तरीके से ये बता सकता है कि हकीकत क्या है.
साहा का दावा है कि द्रविड़ ने उन्हें संन्यास लेने को कहा, जिस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा. लेकिन रविवार रात को जब टीम इंडिया (Team India) के कोच ने शालीनता से प्रेस काॅन्फ्रेंस में साहा के सवाल पर अपनी राय रखी तो ये लगा कि वाकई में इससे बेहतर तरीका तो कुछ और नहीं हो सकता था. अब आप खुद को बीसीसीआई (BCCI) के जगह पर रखिए और खिलाड़ियों के रवैये पर गौर करें. हरभजन सिंह को जब सीधे-सीधे नहीं कहा गया कि उनकी टीम में जगह नहीं बनती है तब भी वो 5 साल तक इंतजार करते रहे और जब रिटायर हुए तो मन में खटास थी. वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, इरफान पठान, सुरेश रैना और गौतम गंभीर सरीखे ना जाने कितने खिलाड़ी थे, जो कभी भी इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पाए कि आखिरी के 2-3 सालों में उनके खेल में गिरावट आ चुकी थी. कोरोनाकाल के दौरान जब ये सारे खिलाड़ी सोशल मीडिया में जरूर से ज्यादा सक्रिय हुए तो हर किसी का ये मानना था कि बोर्ड को और चयनकर्ताओं को हमेशा खिलाड़ियों के भविष्य और रिटायरमेंट को लेकर खुलकर बात करनी चाहिए. और अब जब द्रविड़ ने खुलकर बात की तो आप देखिये कि कैसे साहा ने प्रतिक्रिया दी. अंजिक्य रहाणे को पहले से ही ये आभास हो चुका था कि श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट सीरीज (India vs Sri Lanka) में उन्हें मौका नहीं मिलेगा तो उन्होंने पूर्व मुख्य कोच रवि शास्त्री (Ravi Shastri) पर परोक्ष तरीके से निशाना साधा. कहने का मतलब ये है कि अगर कोच और चयनकर्ता किसी खिलाड़ी से खुलकर उनके करियर और भविष्य में बात करें तो भी परेशानी और ना करें तो भी परेशानी.
साहा के बारे में एक और बड़ी आलोचना ये होती है कि पिछले एक दशक में 40 टेस्ट खेल चुके साहा की आपको एक भी सीरीज याद नहीं आएगी, जहां उन्होंने यादगार खेल दिखाया हो. आलोचक तो ये भी दावा करते हैं जब भी विदेश में मुश्किल टेस्ट मैच रहें हो साहा या तो चोटिल हो जाते हैं या फिर किसी वजह से खेल नहीं पाते हैं. ऑस्ट्रेलिया में एडिलेड टेस्ट में 36 रन पर ऑलआउट होने वाली टीम इंडिया जब पूरी तरह हताश हो चुकी तो टीम में नई ऊर्जा लाने के लिए साहा की जगह पंत का चयन हुआ और उसके बाद जो कुछ हुआ वो इतिहास का हिस्सा है. क्रिकेट तो इसी रफ्तार से चलता है. सैय्यद किरमानी तो अपने दौर के लाजवाब विकेटकीपर थे और वर्ल्ड कप जिताने में उनका योगदान भी शानदार था, लेकिन उनकी आज भी इस बात का मलाल है कि वो 100 टेस्ट नहीं खेल पाए जबकि 2 दशक बाद हंसते-हसंते धोनी ने 100 टेस्ट खेलने के मौके पर ध्यान तक नहीं दिया और टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया. किरण मोरे के खेल में गिरावट आयी तो अचानक से ही नयन मोंगिया ने उनकी जगह ले ली. साहा जिस दौर में खेले उस दौर में टीम इंडिया के पास पार्थिव पटेल और दिनेश कार्तिक जैसे विकेटकीपर भी थे, जिन्हें 40 मैच नहीं मिले. ये दोनों विकेटकीपर आईपीएल में काफी कामयाब भी थे, जबकि साहा ने चुनिंदा मौकों पर ही आईपीएल में कमाल दिखाया. इस बार भी अगर आईपीएल में 10 की बजाए सिर्फ 8 टीमें खेल रहीं होती तो साहा को पत्ता इस टूर्नामेंट से भी साफ हो जाता.
आने वाले करीब डेढ़ साल में टीम इंडिया को कोई भी मुश्किल विदेशी दौरे पर टेस्ट सीरीज नहीं खेलनी है और यही सही समय है कि भविष्य को ध्यान में रखते हुए पंत के साथ एक और विकल्प तैयार रखा जाए. वनडे और टी20 क्रिकेट में टीम इंडिया के पास ईशान किशन (Ishan Kishan) से लेकर संजू सैमसन (Sanju Samson) तक के विकल्प मौजूद हैं, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में तो फिलहाल सिर्फ केएस भारत का ही विकल्प हैं. ऐसे में अगर आने वाले 15 महीनों में जहां टीम इंडिया को 8 टेस्ट मैच उप-महाद्वीप में खेलने हैं तो क्यों ना भविष्य के चेहरों को आजमाया जाए. और ऐसा तो नहीं है कि इसके लिए साहा को टारगेट किया गया है. इशांत शर्मा का उदाहरण देखिये. कपिल देव के बाद 100 से अधिक टेस्ट खेलें हैं, लेकिन आज टीम इंडिया के पास एक से बढ़कर एक शानदार गेंदबाज मौजूद हैं, तो इतने अनुभवी खिलाड़ी को बेंच पर बैठने की शर्मिंदगी क्यों उठानी पड़े? यही हाल रहाणे और पुजारा के साथ हो रहा है. पिछले 2 सालों से दोनों संघर्ष के दौर से गुजर रहें हैं तो ऐसे में अभी श्रेय्यस अय्यर और शुभमन गिल को मौका ना मिले तो कब मिलेगा.
कुल मिलाकर देखा जाय तो द्रविड़ ने अपने शालीन जवाब से एक बार फिर साहा को शायद ये मौका दिया है कि वो यथार्थ को समझें और एक परिपक्व पेशेवर की तरह खेल की इस सच्चाई का सामना करें.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
 
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
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