संसद में हंगामा नहीं है समस्या का समाधान: केंद्र-राज्यों के बीच वार्ता की पहल से बढ़ते पेट्रोलियम पदार्थों के दाम हो सकते हैं कम
राजनीतिक दलों का काम किसी समस्या को लेकर संसद में हंगामा करना नहीं, बल्कि उसका सही समाधान खोजना है।
संसद के बजट सत्र का दूसरा हिस्सा जबसे शुरू हुआ है, तबसे दोनों सदनों में हंगामा जारी है। इस हंगामे के बीच दोनों सदनों की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। कहना कठिन है कि आगे संसद में कामकाज सही तरह हो सकेगा या नहीं? वैसे ढंग से कामकाज होने के आसार कम ही हैं, क्योंकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और राजनीतिक दलों का ध्यान उन्हीं पर केंद्रित है। संसद में हंगामे का कारण है पेट्रोल और डीजल के मूल्यों में वृद्धि। विपक्ष चाहता है कि इस मूल्य वृद्धि पर संसद में बहस हो, लेकिन सत्तापक्ष का तर्क है कि पेट्रोलियम पदार्थों के दाम तो बाजार के हिसाब से बढ़ रहे हैं। इस तरह के तर्कों से काम चलने वाला नहीं है। नि:संदेह विपक्ष इससे अनभिज्ञ नहीं कि पेट्रोल-डीजल के दाम क्यों बढ़ रहे हैं, लेकिन शायद इस मामले में उसकी दिलचस्पी केंद्र सरकार को जवाबदेह ठहराने की है। इसकी अनदेखी करने का कोई मतलब नहीं कि यदि पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स लगाकर केंद्र सरकार राजस्व जुटा रही है तो यही काम राज्य सरकारें भी कर रही हैं। यदि विपक्षी दलों को महंगे होते पेट्रोल-डीजल से परेशान आम जनता की सचमुच फिक्र है तो फिर उन्हें यह पहल करनी चाहिए कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बातचीत की पहल हो। ऐसी किसी बातचीत से ही इस पर कोई सहमति बन सकती है कि केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोलियम पदार्थों पर अपने-अपने हिस्से का कितना टैक्स कैसे कम करें, जिससे उनके राजस्व में अधिक कमी भी न आए और जनता को राहत भी मिले।