पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
शाखों से फूल टूटकर राहों में आ गए और पूरा रास्ता खुशनुमा हो गया...।' ऐसा सोचना अब एक सपना है। बाहर निकलकर देखें तो पाएंगे चारों ओर शोर, उपद्रव और भ्रष्टाचार है। एक से बचो तो दूसरे का थपेड़ा पड़ ही जाता है। बाकी सब पर तो व्यवस्था का नियंत्रण है, लेकिन शोर पर कुछ काम हम कर सकते हैं और करना चाहिए। शोर पर काबू पाना हो तो पहले ध्वनि को समझें।
ध्वनि और शोर में अंतर है। हमारे भीतर एक ध्वनि है अनाहत, जो योग से सुनाई देती है। योग के जरिए यदि भीतर की इस ध्वनि को ठीक से सुन लिया जाए तो बाहर का शोर तकलीफ नहीं पहुंचाएगा। दुनिया में खूब शोर के साथ गाया जाने वाला एक साहित्य है सुंदरकांड।
लेकिन इसे भी ध्यान से पढ़ें और समझें तो आधे में हनुमानजी की लीला है, बाकी में रामजी का चरित्र। सुंदरकांड की कथा और हनुमत-चरित समझाता है शांति आपके भीतर है। शून्य अपने भीतर उतरने से मिलेगा। तो क्यों न उस ध्वनि को सुना जाए जो बाहर के शोर से बचाकर गहरी शांति में ले जाएगी...।