आम आदमी की रोजी-रोटी का सवाल!
महामारी की तीसरी लहर विकराल रूप धारण कर चुकी है। दिल्ली, महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों में जिस तरह से पाबंदियां लागू की जा रही हैं। उससे एक बार फिर अर्थतंत्र प्रभावित हो रहा है।
महामारी की तीसरी लहर विकराल रूप धारण कर चुकी है। दिल्ली, महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों में जिस तरह से पाबंदियां लागू की जा रही हैं। उससे एक बार फिर अर्थतंत्र प्रभावित हो रहा है। सरकार के सामने इस समय बड़ी चुनौती यही है कि किसी न किसी तरह आर्थिक गतिविधियां ठप्प न हो। ऐसे समय में जब देश की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी की दूसरी लहर से हुई क्षति से पूरी तरह उबर नहीं पाई थी कि तीसरी लहर के कारण सारी उम्मीदें धूमिल हो गई हैं। महंगाई के आंकड़े परेशान करने वाले हैं। पिछले दो वर्षों से महामारी से हर व्यक्ति की आय घटी है, करोड़ों लोगों की नौकरियां छिन चुकी हैं। पर्यटन एवं सेवा क्षेत्र से जुड़े लोग दूसरी लहर की विदाई की उम्मीद कर रहे थे। पर्यटक स्थलों पर लोगों की भीड़ उम्मीद बंधा रही थी। पर्वतीय पर्यटक स्थलों पर बर्फबारी से पर्यटकों के आकर्षित होने के सपने संजाये जा रहे थे। पर्यटक पहुंचे भी लेकिन कोरोना केसों का अचानक दोगुनी रफ्तार पकड़ लेने से पर्यटन क्षेत्र फिर से प्रभावित हो चुका है। फैक्टरी उत्पादन में वृद्धि गिरकर 9 माह में सबसे कम रही है। सभी क्षेत्रों के आंकड़े केन्द्र सरकार के लिए चेतावनी भी है और सचेतक भी। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि बजट पेश करने से पहले और बजट में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जाने चाहिएं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आंकड़े बताते हैं कि खुदरा मुद्रास्फीति दर दिसम्बर में पांच माह के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि महंगाई के दौर में सरकार की नीतियां काफी संवेदनशील हैं। सरकार की ओर से आम आदमी को राहत पहुंचाने की हर सम्भव कोशिश की गई है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार कोरोना को लेकर उच्चस्तरीय बैठकों में स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं। राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बातचीत कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में कोरोना से लड़ाई के लिए कई मंत्र दिए हैं। उन्होंने कहा कि कड़ी मेहनत ही एकमात्र रास्ता है और जीत ही हमारा विकल्प है। नए वैरियंट ओमीक्रॉन के बावजूद महामारी से निपटने के लिए टीकाकरण सबसे शक्तिशाली तरीका है। हमें हर तैयारी हर प्रकार से आगे रखने की जरूरत है। ओमीक्रॉन से निपटने के साथ-साथ हमें भविष्य के किसी भी वैरियंट के लिए अभी से तैयारी शुरू करने की जरूरत है। सबसे महत्वपूर्ण बात जो प्रधानमंत्री ने कही कि अर्थव्यवस्था की गति बनाए रखने के लिए बेहतर होगा िक लोकल कंटेनमेंट पर ज्यादा ध्यान दिया जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों का अर्थ यही है कि महामारी काल में लोगों की आजीविका के स्रोत कैसे सुरक्षित रखे जाएं। दिल्ली, मुम्बई सहित अन्य छोटे-बड़े शहरों की समस्या यही है कि सड़कों पर होने वाली भीड़ से निपटना आसान नहीं है। लाखों लोगों के सामने सबसे बड़ी विवशता रोजाना कमाने-खाने की होती है। लाखों की संख्या में लोग छोटे उद्योग, फैक्टरियों में काम करते हैं। रेहड़ी-पटरी, दुकानदारों के लिए मुश्किल यह है कि इस तरह की पाबंदियां उनकी कमाई का जरिया बंद कर देती हैं। अभी तक दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगर पूर्ण लाकडाउन से बच रहे हैं। ज्यादातर राज्यों ने अभी केवल नाइट कर्फ्यू ही लगाया है। समस्या उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गाेवा जैसे राज्यों की भी है जहां चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। चुनावों के दिनों में भीड़ पर काबू करना बड़ी चुनौती है। धार्मिक मेलों में लाखों की भीड़ जमा हो रही है। ऐसे में संक्रमण फैलने से कौन रोक सकता है। दिल्ली में तो निजी दफ्तरों को बंद करने का फैसला किया गया। होटलों, रेस्तरांओं में बैठकर भोजन करना प्रतिबंधित कर दिया गया है। लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि पाबंदियों के चलते गहरी सामाजिक विसंगतियां न पैदा हो जाएं। पिछले दो वर्षों में देश आर्थिक तंगी झेलने को अभिशप्त रहा है। रोजगार के लिहाज से इस समय स्थिति काफी नाजुक है। संपादकीय :74 साल का इंसानी अलगावमनोहर लाल सरकार जनता की कसौटी पर खरीजनरल नरवणे की खरी खरीवोडाफोन आइडिया को सरकार की संजीवनीचुनावों से पहले गिरगिटी रंगवाह क्वाली का आनंद ही आनंदअब यह साफ है कि महामारी जल्द खत्म होने वाली नहीं। हमें कोरोना के साथ ही जीना है। बेहतर यही होगा कि जिन क्षेत्रों में कोरोना का प्रभाव ज्यादा है या जो कंटोनमेंट जोन हैं, उनमें पाबंदियों को सख्ती से लागू किया जाए। ऐसे व्यावहारिक कदम उठाए जाएं कि जीवन भी चलता रहे और लोगों की रोजी-रोटी के जरिये भी बने रहें। सरकारों का कोई भी फैसला लोगों को निर्मम होने का एहसास न दिलाए इसके लिए जनता को भी अपनी जिम्मेदारी का पता होना चाहिए। अगर बाजारों में भीड़ इसी तरह उमड़ती रही और लोग मास्क लगाए बिना घूमते रहे तो फिर पाबंदियों का कोई औचित्य नजर नहीं आता। राज्य सरकारों को भी टेस्टिंग, ट्रेकिंग और ट्रीटमेंट की व्यवस्था को बेहतर बनाने और पाबंदियों की दीर्घकालीन नीतियां बनानी होंगी। लोगों को भी किसी तनाव में आकर सतर्कता से रहना होगा। अगर लोग सहयोग नहीं करेंगे तो फिर आम आदमी की रोजी-रोटी नहीं बचेगी और जीवन यापन ही मुश्किल में पड़ जाएगा। जब तक तीसरी लहर की विदाई नहीं होती तब तक बेवजह घरों से बाहर नहीं निकलें।