जो पीएगा वो मरेगा…
अब ऐसे बिकिनी छाप मुद्दे पर चैनलों में दो-तीन दिन बहसें न चलें तो चैनलों का काम कैसे चले? इसी क्रम में, कोलकाता फिल्म फेस्टिवल में शाहरुख ‘इंटेलेक्चुअलाए’ कि आज के सोशल मीडिया के विघटनकारी माहौल में एक फिल्म ही सहारा है… यानी ‘पठान’ जैसी फिल्में ही सहारा हैं!
सुधीश पचौरी; अब ऐसे बिकिनी छाप मुद्दे पर चैनलों में दो-तीन दिन बहसें न चलें तो चैनलों का काम कैसे चले? इसी क्रम में, कोलकाता फिल्म फेस्टिवल में शाहरुख 'इंटेलेक्चुअलाए' कि आज के सोशल मीडिया के विघटनकारी माहौल में एक फिल्म ही सहारा है… यानी 'पठान' जैसी फिल्में ही सहारा हैं!
कथित आपत्तिजनक दृश्यों को लेकर एक एंकर बोलिन कि 'बिकिनी' से क्या ऐतराज? बिकिनी तो फिल्मों का आम पहनावा है। फिर बोलिन कि जिसे देखना है देखे, नहीं तो न देखे, दूसरों को तो देखने दे!
आजकल 'हिट' होने का फार्मूला है: 'विरोध' को बुलाओ और फिल्म चलाओ! फिर, एक दिन 'समान नागरिक संहिता' पर संसद में निजी विधेयक पेश करने वाले सांसद मीणा जी से एक शंकालु एंकर पूछता है कि कहीं 'हिंदुओं के सिविल कोड' के रूप में ही तो नहीं लागू कर देंगे? कहीं ऐसा तो न होगा कि कानून पहले बने और सर्वानुमति (कंसेंसस) बाद में आए…?
मीणाजी शांत भाव से कहते दिखते हैं: विधेयक पर बहस होगी, तो आम सहमति बनेगी! कि, फिर एक शाम, अचानक 'तवांग' के आसपास भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प ने इतनी बड़ी खबर बनाई कि बाकी सारी खबरें किनारे हो गईं!
सभी चैनलों पर रक्षा विशेषज्ञ थे, चीन विशेषज्ञ थे, देशभक्त थे, लेकिन चीन को संदेह का लाभ देने वाले भी थे। संसद में रक्षामंत्री का बयान था कि नौ दिसंबर को पीएलए ने वास्तविक नियंत्रण रेखा में घुसने की कोशिश की, जिसका भारतीय सैनिकों ने बहादुरी से जवाब दिया… चैनल बताते रहे कि 'हाथापाई' में हमारे सात सैनिकों को मामूली चोटें आईं, जबकि चीनियों को ज्यादा चोटें आईं…
इस खबर के बाद विपक्षी दल, सत्तासीनों से भी बड़े देशभक्त बन उठे। एक कहिन कि इस पर संसद में विचार हो, दूसरे बोलिन कि पीएम आकर सच बताएं, तीसरे बोलिन कि वहां क्या हुआ?सच बताएं, चौथे बोलिन कि ऐसा ही रहा तो एक दिन सियाचिन भी हाथ से निकल जाना है…
खबरों और बहसों के बीच चैनल 'हाथापाई' के वीडियो दिखाते रहे, लेकिन यह भी बताते रहे कि 'यह चैनल इस वीडियो की पुष्टि नहीं करता।' सर जी! जब कुछ भी पक्का नहीं, तो एक अपुष्ट वीडियो को बार-बार क्यों दिखा रहे हो? यह आपकी किस तरह की पत्रकारिता है?
फिर एक दिन 'हेट भाषा' के नाम हुआ। एक नेता बोलिन कि संविधान बचाना है, तो हत्या के लिए तत्पर रहना चाहिए… फिर कहिन कि हमारा मतलब था कि चुनाव में हराना चाहिए… लेकिन सत्तापक्ष हमलावर रहा कि यह तो हत्या करने के लिए उकसाना है…
इसी बीच छपरा में जहरीली शराब पीने से पचास से ऊपर लोगों की मौत की खबर जैसे ही चैनलों में छाई, त्यों ही भाजपा हमलावर हो उठी। बिहार विधानसभा में हंगामा रहा, जिसे देख नीतीश बेहद क्रुद्ध नजर आए और शायद इसी क्रोध में बोल गए कि 'जो पीएगा वो मरेगा।…' उसके बाद वही हुआ जो होना था।
एंकर तक कहने लगे कि ऐसा संवेदनहीन बयान न देखा न सुना… इधर मृतकों के परिवार बिलख रहे हैं उधर आप मृतकों को ही मौतों का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं… यह तो आपकी शराबबंदी नीति की विफलता है… तीसरे दिन विधानसभा में फिर से नीतीश जी ने 'जो पीएगा वो मरेगा' को सही ठहराया और कहा कि जहरीली शराब पीकर मरने वालों से हमदर्दी नहीं होनी चाहिए… फिर खबर आई कि जहरीली शराब से सिवान और बेगूसराय में भी कुछ लोग मरे हैं। सच! 'जो पिएगा वो मरेगा' वाली संवेदनहीनता नीतीश जी का आसानी से पीछा नहीं छोड़ने वाली!