कृषि सुधारों पर अड़ियल रुख अपनाए हुए किसान नेताओं के दबाव में सरकार को हरगिज नहीं आना चाहिए

किसान संगठनों को विभिन्न विपक्षी दलों की ओर से यह कहने की कोशिश तो खूब की जा रही है

Update: 2020-12-10 02:54 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कुछ किसान संगठनों को आगे कर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा कर रहे विभिन्न विपक्षी दलों की ओर से यह कहने की कोशिश तो खूब की जा रही है कि नए कृषि कानून किसान विरोधी हैं, लेकिन वे यह साबित करने में नाकाम हैं कि आखिर ये कानून देश के किसानों के लिए अहितकारी कैसे हैं। चूंकि उनके पास इस सवाल का कोई सीधा जवाब नहीं इसलिए वे यह माहौल बनाने में लगे हुए हैं कि मोदी सरकार किसान विरोधी है और पूंजीपतियों के हित में जनविरोधी नीतियां लागू करने में जुटी हुई है। क्या वास्तव में ऐसा है? क्या एक के बाद एक राज्यों के चुनावी नतीजे विपक्षी दलों के दावों को ध्वस्त नहीं करते?


हाल में बिहार विधानसभा चुनाव के साथ-साथ मध्य प्रदेश एवं अन्य राज्यों के उपचुनावों के नतीजे तो यही कह रहे हैं कि आम जनता का मोदी सरकार के प्रति भरोसा बढ़ता चला जा रहा है। इस बढ़ते भरोसे को गत दिवस राजस्थान के पंचायत और जिला परिषद चुनाव के नतीजे भी रेखांकित कर रहे हैं। इन चुनावों में भाजपा को उल्लेखनीय सफलता हासिल हुई। यह सफलता एक ऐसे समय हासिल हुई जब कृषि कानूनों के खिलाफ हल्ला मचा हुआ था। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पंचायत चुनावों में ग्रामीण आबादी की अच्छी-खासी भागीदारी होती है।


बेहतर हो कि विपक्ष चुनिंदा किसान संगठनों को बरगलाने के बजाय दीवार पर लिखी इस इबारत को पढ़ने का काम करे कि उसके दुष्प्रचार का आम जनता पर कहीं कोई असर नहीं पड़ रहा है। यह समझ आता है कि विपक्षी दलों को मोदी सरकार रास नहीं आ रही है, लेकिन यदि वे यह सोच रहे हैं कि दुष्प्रचार के सहारे जनता को बरगलाकर अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति करने में सक्षम हो जाएंगे तो यह होने वाला नहीं है। दुष्प्रचार की राजनीति अधिक समय तक नहीं चलती। यदि विपक्षी दलों ने अपने तौर-तरीके में बदलाव नहीं किए तो उन्हें और अधिक शिकस्त का सामना करना पड़ सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्षी दल यह जानते हुए भी विभिन्न क्षेत्रों में सुधारों का विरोध कर रहे हैं कि उन्हें और अधिक टाला नहीं जा सकता। कृषि क्षेत्र में सुधार के कदम उठाने में तो पहले ही बहुत देर हो चुकी है।

यदि विपक्ष और किसानों को बरगलाने में जुटे स्वयंभू संगठनों के दुराग्रह के कारण कृषि सुधारों को लागू करने में और अधिक देर होती है तो इससे देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था को नुकसान उठाना पड़ सकता है। चूंकि कृषि क्षेत्र में सुधारों के लिए और अधिक इंतजार नहीं किया जा सकता इसलिए यही उचित है कि सरकार अड़ियल रुख अपनाए हुए किसान संगठनों और दलों के दबाव में हरगिज न आए।


 


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