कोरोना से मरने वालों के आश्रितों को समुचित मुआवजा देने की व्यवस्था करे सरकार

कोरोना महामारी से प्राण त्यागने वालों को सरकार की ओर से मुआवजा दिए जाने के प्रविधान पर बहस जारी है।

Update: 2021-07-03 05:14 GMT

संजय पोखरियाल| कोरोना महामारी से प्राण त्यागने वालों को सरकार की ओर से मुआवजा दिए जाने के प्रविधान पर बहस जारी है। न्यायालय में दायर संबंधित याचिका में आश्रितों को चार लाख रुपये देने की मांग की गई, तो अदालत ने सरकार से इस पर उसका रुख जानना चाहा। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि इस तरह का भुगतान राज्यों के पास उपलब्ध 'स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड' से होता है। लेकिन अगर राज्यों को हर मौत के लिए चार लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया गया, तो उनका पूरा फंड खत्म हो जाएगा। इससे अन्य आपदाओं से लड़ पाना कठिन हो जाएगा।

सरकार का इस बारे में कहना है कि मुआवजा देने से कोरोना के खिलाफ लड़ाई और स्वास्थ्य पर किए जा रहे खर्च पर असर पड़ सकता है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में राज्यों को 22,184 करोड़ रुपये स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फंड में दिए गए। इसका एक बड़ा हिस्सा कोरोना से लड़ने में खर्च हो रहा है। केंद्र ने 1.75 लाख करोड़ रुपये का प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज घोषित किया है। इसमें गरीबों को राशन के अलावा वृद्ध, दिव्यांग, असमर्थ महिलाओं को सीधे पैसे देने जैसी कई बातें शामिल हैं।
बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय ने सभी बातों का संज्ञान लेते हुए इसे सरकार का उत्तरदायित्व मानते हुए मुआवजा देने का आदेश दिया है। लेकिन न्यायालय ने इतनी छूट अवश्य दी है कि सरकार मुआवजा राशि अपने हिसाब से तय कर सकती है। इसके लिए छह हफ्ते के भीतर दिशानिर्देश जारी करने होंगे। अब सरकार के समक्ष यह चुनौती है कि सामंजस्य के साथ सही मानक तैयार किया जाए, जिससे कोई पीड़ित परिवार मुआवजे से वंचित न हो और सरकार को ज्यादा वित्तीय दबाव का सामना भी न करना पड़े।
यह कहना सही है कि सरकारी मुआवजे मात्र से उन लोगों की जिंदगी आसान नहीं हो जाती है, जिन्होंने अपना भरण-पोषण करने वाला सदस्य खो दिया है। सरकार द्वारा मुआवजे का प्रविधान इसलिए किया जाता है, ताकि परिवार के बचे हुए लोगों को संभलने और नए ढंग से जीवन शुरू करने में आसानी हो। यह तय है कि कोरोना की वजह से अपने सदस्य खो चुके परिवार के लोगों को कुछ दिन तक संभालने की जिम्मेदारी से सरकार कभी मुंह नहीं मोड़ेगी। सरकार अपने पिछले कई निर्णयों से यह साबित कर चुकी है कि वह लोककल्याण के लिए कितनी संवेदनशील है और वास्तव में सरकार की यह छवि दिखाती है कि किसी सरकार का जनहितकारी और लोककल्याणकारी रूप क्या होता है। पिछले दिनों कोरोना से अपने माता-पिता को खोने वाले सभी बच्चों को 'पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन' योजना के तहत सहायता देने की घोषणा की गई। इन सभी निर्णयों से सरकार की लोक हितकारी भावनाएं साफ झलकती है।
वैसे समग्रता में देखा जाए तो मृतकों के मुआवजे को लेकर न केवल केंद्र, बल्कि राज्य सरकारों की अन्यमनस्कता कायम है। अगर उत्तर प्रदेश और बंगाल की बात की जाए, तो पिछले पंचायत और विधानसभा चुनावों में सैकड़ों कर्मचारी कोरोना संक्रमित हुए और अपनी जान गंवा बैठे। किंतु सरकार की ओर से उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिल सका है। इस बीच मध्य प्रदेश में कोरोना से मरने वालों के परिवार को प्रदेश सरकार ने एक लाख रुपये मुआवजा राशि देने की घोषणा की थी। कर्नाटक सरकार ने बीपीएल परिवार में कोरोना से मौत पर एक लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की थी। वहीं बिहार सरकार पहले से ही कोरोना मृतकों के आश्रित स्वजनों को चार लाख रुपये का मुआवजा राशि दे रही है। ऐसे में गौर करने वाली बात यह है कि अपेक्षाकृत कम बजट वाली बिहार सरकार बतौर मुआवजा चार लाख रुपये दे सकती है, तो दूसरे राज्य और कम से कम केंद्र सरकार को इससे ज्यादा ही मुआवजा तय करना चाहिए।
वैसे बिहार सरकार की मुआवजा नीति में एक बड़ी कमी चिंता पैदा करने वाली है। बिहार सरकार का निर्णय है कि अगर किसी बिहारवासी यानी बिहार के नागरिक की राज्य से बाहर मौत होती है, तो ऐसी दशा में बिहार सरकार उसे किसी प्रकार का मुआवजा नहीं देगी। सरकार की ओर से कोरोना संक्रमण से मौत पर मिलने वाली चार लाख रुपये की मुआवजा राशि केवल उन्हीं लोगों को मिलेगी, जिनकी मौत बिहार के अस्पतालों या बिहार की सीमा के अंदर हुई हो। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बिहार का कोई व्यक्ति अपने राज्य से बाहर इलाज कराने के लिए क्यों जाता है? अगर वह बिहार में रहता और कोरोना से मौत होती तो उसके परिवार को मुआवजा जरूर मिलता। अगर कोई व्यक्ति इलाज के लिए राज्य से बाहर गया तो कहीं न कहीं यह बात साबित होती है कि राज्य की चिकित्सा व्यवस्था जर्जर थी। अब सवाल है कि इस जर्जर व्यवस्था के लिए सरकार जिम्मेदार है या वहां के नागरिक? अगर सरकार को जिम्मेदार माना जाए तो वह प्रत्येक व्यक्ति मुआवजे का हकदार है, जिसकी मौत बिहार राज्य से बाहर हुई है।
खैर, अब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इतना तो तय हो गया है कि भविष्य में पीड़ित स्वजनों को कुछ राहत जरूर मिलेगी। वैसे न्यायालय के आदेश के बाद उन्हीं लोगों को मुआवजा मिल सकेगा, जिनके मृत्यु प्रमाण-पत्र पर मौत का कारण 'कोरोना' दर्ज होगा। हालांकि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि बहुत सारे वैसे लोगों के स्वजन इस मुआवजे को हासिल करने के लिए अपना दावा नहीं पेश कर पाएंगे, जिनके परिवार में किसी ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया था। मृत्यु प्रमाणपत्र की इसमें अहम भूमिका होगी, जिसमें संबंधित कारण दर्ज होना आसान नहीं। इसलिए, इस मामले में सरकार से बहुत सुसंगत तरीके से दिशानिर्देश तय करने की अपेक्षा की जाती है। मुआवजा तय करते और देते समय ध्यान रखना होगा कि किसी के साथ अन्याय न होने पाए।


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