ग्रीन और क्लीन एनर्जी में निहित है ऊर्जा क्षेत्र का भविष्य
ग्रीन एनर्जी पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत
बीते दिनों देश के कई राज्यों में कोयले की किल्लत के चलते बिजली उत्पादन और उसकी आपूर्ति प्रभावित हुई. फिलहाल हालात सामान्य हो रहे हैं लेकिन 'कोयला संकट' अपने पीछे एक बड़ा सवाल छोड़कर जा रहा है कि ऐसा दोबारा और भी बड़े पैमाने पर हुआ तो क्या होगा? जबकि आज वस्तुस्थिति यह है कि दुनिया के किसी भी देश की संपन्नता उसके ऊर्जा के साधनों पर निर्भर करती है. जिस देश के पास ऊर्जा उत्पादन के जितने अधिक साधन हैं, वह देश और वहाँ के लोग उतनी ही तेज रफ्तार से तरक्की करते हैं.
ग्रीन एनर्जी पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत
भारत में बिजली के उत्पादन का लगभग 70 फीसदी हिस्सा कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों से ही पैदा होता है. कोयले के प्राकृतिक भंडार सीमित हैं और एक अनुमान के मुताबिक लगभग सौ-डेढ़ सौ वर्षों के भीतर कोयला वैश्विक ऊर्जा पटल से अदृश्य हो जाएगा. हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जलवायु परिवर्तन को रोकना पूरी दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. कोयले से प्रति मेगावाट घंटा ऊर्जा पैदा करने पर लगभग 33 किलो कार्बन डाईऑक्साइड निकलती है.
जीवाश्म ईंधनों (जिसमें कोयला भी शामिल है) के अंधाधुंध प्रयोग और औद्योगिक गतिविधियों के कारण कार्बन उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे में हमें कोयले से अलग ग्रीन एनर्जी की ओर ज्यादा से ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा क्योंकि भविष्य में कोयले का प्राकृतिक स्रोत निश्चित रूप से खत्म हो जाएगा और हमें ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए भी कोयला और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों का विकल्प ढूंढना होगा.
हरित और टिकाऊ भविष्य के लिए ग्रीन एनर्जी का महत्व बढ़ रहा है. ग्रीन एनर्जी ऊर्जा के ऐसे स्रोत हैं जो धरती की सेहत और मानव की सेहत दोनों के लिए ही ज्यादा हानिकारक नहीं हैं. इसके उदाहरण हैं- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, जल ऊर्जा आदि. परमाणु ऊर्जा को भी ग्रीन एनर्जी का एक शक्तिशाली स्रोत मानने का चलन इन दिनों बढ़ा है, हालांकि इसको लेकर अभी भी वैश्विक स्तर पर विवाद है कि क्या परमाणु ऊर्जा वास्तव में एक ग्रीन एनर्जी स्रोत है.
आसान नहीं है ग्रीन एनर्जी की राह
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम वादों और दावों के बावजूद वैश्विक कार्बन उत्सर्जन नहीं कम हुआ है. कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए ग्रीन एनर्जी और ऊर्जा के ऐसे स्रोतों को बढ़ावा देना जरूरी है जो जीवाश्म ईंधन आधारित न हों. ऐसे स्रोतों में नाभिकीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा प्रमुख हैं जिनका उपयोग वर्तमान में बिजली बनाने के लिए किया जा जा रहा है, लेकिन इनका मौजूदा उत्पादन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
निश्चित रूप से साल-दर-साल ग्रीन एनर्जी का इस्तेमाल बढ़ रहा है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसके साथ ही वैश्विक ऊर्जा खपत भी बढ़ रही है. ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए महज ग्रीन एनर्जी आधारित स्रोत काफी नहीं हैं, इसलिए दुनिया भर के देश कोयला और पेट्रोलियम की उत्पादन मात्रा में भी बढ़ोत्तरी कर रहें हैं.
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि भारत में बिजली के उत्पादन का लगभग 70 फीसदी हिस्सा कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों से ही होता है और भारत चीन के बाद कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है. ऐसे में भारत के लिए कोयला बहुत जरूरी है और फिलहाल हम इसका उपयोग बंद नहीं कर सकते. इस बात की पूरी संभावना है कि राष्ट्र के सतत विकास के लिए आगामी कुछेक दशकों तक कोयला ही ऊर्जा उत्पादन का स्रोत रहेगा. पूरी दुनिया की तरह भारत भी कार्बन उत्सर्जन घटाने में जुटा हुआ है.
फिलहाल ग्रीन एनर्जी के जरिए भारत धीरे-धीरे कोयले और पेट्रोलियम के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से हटाने और कार्बन उत्सर्जन को घटाने पर काम कर रहा है. कार्बन उत्सर्जन की स्थिति पर निगरानी रखने वाली स्वतंत्र संस्था 'क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर' के मुताबिक भारत में 2030 तक कार्बन उत्सर्जन 2005 के स्तर का आधा हो जाएगा, जोकि ग्रीन एनर्जी के प्रोत्साहन की वजह से ही मुमकिन होगा.
ऊर्जा के एक प्रभावी विकल्प के रूप में उभर रहा है ग्रीन हाइड्रोजन
देश के नीति निर्माता यह समझ चुके हैं 'ग्रीन हाइड्रोजन' भारत को ग्रीन एनर्जी की ओर ले जा सकता है, साथ ही यह देश में कार्बन उत्सर्जन को घटाने में भी काफी मददगार साबित हो सकता है. वैसे भी अगर ग्रीन एनर्जी के मौजूदा दो प्रमुख स्रोतों (सौर और पवन ऊर्जा) की बात करें तो ये उद्योग-धंधों में इस्तेमाल होने वाले भारी मशीनों और ट्रेन जैसे बड़े यातायात साधनों को पर्याप्त ऊर्जा मुहैया कराने में असमर्थ हैं, जबकि ब्रिटेन और जर्मनी में ग्रीन हाइड्रोजन का प्रयोग भारी यंत्रों और बड़े यातायात साधनों में बड़े स्तर पर इस्तेमाल शुरू हो चुका है.
ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिए ग्रीन हाइड्रोजन द्वारा ऊर्जा उत्पादन काफी फायदेमंद हो सकता है और यह निकट भविष्य में देश को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का भी काम करेगा. गौरतलब है कि इसके तहत पानी को सौर ऊर्जा द्वारा हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करके ऊर्जा प्राप्त किया जाता है.
हालांकि ग्रीन हाइड्रोजन की राह में भी चुनौतियाँ कम नहीं हैं. इस गैस का भंडारण भी मुश्किल है, लिहाजा ग्रीन अमोनिया को इसका और बेहतर विकल्प माना जा रहा है. और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए ऊर्जा के समस्त स्रोत कार्बन रहित होने चाहिए, जोकि बड़ी चुनौती है. उम्मीद है कि इस अड़चन को दूर करने में जल्द ही कामयाबी मिल सकती है.
ग्रीन एनर्जी में ही निहित है ऊर्जा क्षेत्र का भविष्य
भारत में ऊर्जा उत्पादन के लिए ईंधन की जितनी मांग है, उसका ज़्यादातर हिसा हम दूसरे देशों से आयात करते हैं, जिसके लिए देश को सालाना 160 अरब डॉलर खर्च करने पड़ते हैं. ऊर्जा उत्पादन में भी आत्मनिर्भरता के लिए ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देना जरूरी है. भारत में एक नई हरित क्रांति की शुरुआत करना जरूरी है. जहां पुरानी हरित क्रांति ने तो भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया था. वहीं अब इस नई हरित क्रांति से भारत को ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने में सहायता मिलेगी.
दुनिया भर में ऊर्जा की मांग दिन-ब-दिन बढ़ रही है और बिजली पर हमारी बढ़ती निर्भरता के कारण भविष्य में ऊर्जा की खपत और भी बढ़ेगी. मगर इतनी ऊर्जा आएगी कहां से? यह तो हम सब जानते हैं कि धरती पर कोयले और पेट्रोलियम के भंडार सीमित हैं. ये भंडार ज़्यादा दिनों तक हमारी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकते. और इनसे प्रदूषण भी होता है. वैज्ञानिक लंबे अर्से से ऊर्जा के ऐसे स्रोतों की तलाश में जुटे हुए हैं, जो पर्यावरण को बगैर नुकसान पहुंचाए हमारी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम हों.
वैज्ञानिकों का मानना है कि ऊर्जा की बेतहाशा मांग की पूर्ति ग्रीन एनर्जी के विभिन्न विकल्पों के जरिए पूरा किया जा सकता है. लोगों के बेहतर स्वास्थ्य, कोयले और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता खत्म करने के लिए, जलवायु परिवर्तन तथा विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं को रोकने और कार्बन उत्सर्जन को कम करके धरती की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अब ग्रीन एनर्जी ही भविष्य का इकलौता विकल्प रह गया है. अस्तु!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
प्रदीप, तकनीक विशेषज्ञ
उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव खलीलपट्टी, जिला-बस्ती में 19 फरवरी 1997 में जन्मे प्रदीप एक साइन्स ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनके लगभग 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.