अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में है सृजन बस बंदिशें तोड़ने की इच्छा होनी चाहिए

किसी कारणवश सपने में जाग गया। अब किसी रात नींद में ही उसे कविता पूरी कर लेने के बाद अपराध बोध से मुक्ति मिलेगी

Update: 2021-10-11 11:41 GMT

जयप्रकाश चौकसे का कॉलम: 

नोबेल शांति पुरस्कार, पत्रकार मारिया रेसा और दिमित्री मुराटोव को दिया गया है, जिनके साथियों को मार दिया गया था। क्योंकि वे रूस के पुतिन की आलोचना कर रहे थे। गौरतलब है कि पत्रकारिता को गणतंत्र व्यवस्था का चौथा स्तंभ माना जाता है। कहीं-कहीं यह स्तंभ दरक रहा है। आम आदमी रोजी-रोटी कमाने में इतना उलझ गया है कि वह सत्य जानना ही नहीं चाहता।


तंजानिया जैसे छोटे देश के उपन्यासकार को भी पुरस्कार मिला है। सृजन का संबंध देश के आकार से नहीं है। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा है। इससे भी अधिक यह है कि बंदिशें तोड़ने की इच्छा होनी चाहिए। पत्रकार राजेंद्र माथुर ने आपातकाल की आलोचना लगातार की। कुछ वर्ष पश्चात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजेंद्र माथुर से परामर्श लेने लगीं।

ज्ञातव्य है कि 'वॉटरगेट स्कैंडल' ने अमेरिका की राजनीति में भूकंप ला दिया था। बहरहाल, मनोविज्ञान के विशेषज्ञ से कोई बात छुपाई नहीं जा सकती। सारी बातें जानने के बाद ही वह उपचार कर सकता है। चिकित्सा के किसी भी क्षेत्र में डॉक्टर मरीज की बातें उजागर नहीं करता। अनिद्रा से पीड़ित एक व्यक्ति की सारी बातें जानने के बाद डॉक्टर ने कहा कि यह व्यक्ति सपने में एक कविता लिख रहा था।

किसी कारणवश सपने में जाग गया। अब किसी रात नींद में ही उसे कविता पूरी कर लेने के बाद अपराध बोध से मुक्ति मिलेगी। उस व्यक्ति का कहना है कि उसने अपने जीवन में कभी कविता लिखी ही नहीं। इस यथार्थ के बावजूद उसे स्वप्न की अधूरी कविता को पूरी करने का परामर्श दिया जा रहा है। बहुत सी बीमारियां अवचेतन में अधूरी रही कविता के कारण होती हैं। अवचेतन की नदी में कोई मोड़ नहीं होते हैं जिस पर कोई बांध नहीं बनाया जा सकता है।

इस नदी के किनारे कोई घाट नहीं बना होता। इसमें तो डूब कर ही पार जाना होता है, जैसा ये पक्तियां बयां करती हैं कि 'ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है ...।' गौरतलब है कि शांति पुरस्कार किसी नेता को नहीं दिया गया है। बल्कि पत्रकारों को इससे नवाजा गया है, जो जंग, दुर्घटनाओं और अन्याय का विवरण सारे संसार को देते हैं।

यह तथ्य भी कबीर की उलटबांसी की तरह है कि अनेक देशों के पास अणु बम है, जिस कारण शांति बनी हुई है। भय द्वारा उत्पन्न शांति का कोई महत्व नहीं है। सच्ची शांति, आपसी समझदारी और एक-दूसरे के प्रति विश्वास होने पर ही स्थापित हो सकती है। सबसे अहम यह है कि मनुष्य, मनुष्य को समझे और उसका इस्तेमाल प्यादों की तरह ना करे। जीवन शतरंज की बिसात नहीं है।

अपने को मनुष्य साबित करने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। फिल्म 'जॉली एलएलबी-2' में एक आदमी को अपने वजूद को साबित करना है, तो जज साहब चिढ़कर उसे 7 दिन जेल में बंद करने का आदेश देते हैं। वह आदमी वकील को धन्यवाद देता है कि अब जेल में उसका नाम दर्ज किया जाएगा, गोया कि उसको मनुष्य होने का प्रमाण अब व्यवस्था द्वारा जारी किया जाएगा।

इस तरह वह अपनी जीत का जश्न मना रहा है। शरतचंद्र ने अपनी प्रारंभिक रचनाएं, रंगून से लिखकर प्रकाशित होने के लिए भेजीं। उन कथाओं में उन्होंने अपनी पहचान उजागर नहीं की थी। पाठकों को लगा कि ये महान रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाएं हैं। खबर मिलते ही रवींद्रनाथ टैगोर ने इसका खंडन किया।

इसके बहुत समय बाद शरतचंद्र का वजूद सरेआम स्वीकारा गया। वर्तमान में आधार कार्ड, मतदाता कार्ड के साथ अब नागरिकता कार्ड भी जारी किया जाएगा। वह दिन दूर नहीं जब नाम और परिचय की झंझट से मुक्ति मिल जाएगी और मनुष्य की पहचान नंबर से होगी। स्कूल का शिक्षक हाजिरी लेता है, क्या नंबर 13 उपस्थित है? छात्र खामोश रहता है, क्योंकि उसके दिमाग में ठूंसा गया है कि अंक 13 अशुभ है।


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