अल्बानीज ने क्वॉड में आकर ऑस्ट्रेलिया का वादा तो निभाया लेकिन क्या वे चीन से दूरी रख पाएंगे

पूर्व प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने अपनी हार जल्द स्वीकार कर ली ताकि नए प्रधानमंत्री को क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लेने मौका मिल जाए

Update: 2022-05-26 08:15 GMT
प्रणय शर्मा।
बता दें कि ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधान मंत्री स्कॉट मॉरिसन (Ex PM Scott Morrison) ने जब से कोविड-19 महामारी की वजह बनने वाले कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच की मांग उठाई थी, तभी से ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच संबंधों में खटास आ गई थी. पिछले 9 वर्षों में अल्बानीज (PM Albanese ) के रूप में ऑस्ट्रेलिया को लेबर पार्टी से पहला प्रधानमंत्री मिला है. शपथ ग्रहण के कुछ घंटों के भीतर ही टोक्यो शिखर सम्मेलन ( QUAD summit) में आने के उनके फैसले ने क्वाड, जिसे चीन विरोधी गुट माना जाता है, के बारे में नई ऑस्ट्रेलियाई व्यवस्था की गंभीरता पर अटकलों को समाप्त कर दिया.
अमेरिका ने यह भी नोट किया पूर्व प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने अपनी हार जल्द स्वीकार कर ली ताकि नए प्रधानमंत्री को क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लेने मौका मिल जाए – यह दर्शाता है कि कंगारुओं का देश क्वॉड पर पूरा सहयोग कर रहा है. फरवरी 2008 में चीन के कड़े विरोध के बाद ऑस्ट्रेलिया ने क्वॉड से खुद को दूर कर लिया था. उस समय लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री केविन रुड सत्ता में थे. हालांकि ऑस्ट्रेलिया में इसके बाद बनीं सरकारों ने क्वॉड के साथ वापस अपने संबंध मजबूत किए, खासकर 2017 के बाद जब प्रधान मंत्री का पद सरकारों के प्रमुखों के स्तर तक जाने तक तो. वहीं हाल के चुनावों को लेकर आशंका ये भी थी कि ऑस्ट्रेलिया में लेबर पार्टी की वापसी फिर से देश की क्वॉड नीति बदल सकती है.
अल्बानीज पर चीन पर नर्म रुख रखने का आरोप लगा था
चुनाव अभियान के दौरान लिबरल गठबंधन के उम्मीदवार स्कॉट मॉरिसन ने अल्बानीज पर चीन पर नर्म रुख रखने का आरोप लगाया था और अब क्वॉड समिट में भाग लेकर उन्होंने साबित कर दिया है कि वे 'मंचूरियन उम्मीदवार' (दुश्मन ताकत द्वारा नेता) नहीं हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ अपनी बैठकों में अल्बानीज ने क्वॉड के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के बारे में आश्वस्त किया है.
क्वॉड शिखर सम्मेलन का आयोजन उस समय रखा गया, जब बाइडेन एशिया की अपनी पहली यात्रा पर थे. लेकिन ये वो समय भी है जब काबुल को तालिबान की दया पर छोड़ अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की जल्दबाजी में वापसी और यूक्रेन पर हमले को न रोक पाने जैसी घटनाओं से बाइडेन की छवि की बहुत किरकिरी भी हुई है. कई एशियाई देश इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते आर्थिक और सैन्य दबदबे से चुनौती का सामना करने के लिए अमेरिका की क्षमता के बारे में संशय में थे.
ताइवान को लेकर अमेरिका काफी संवेदनशील
वहीं बाइडेन ने कहा भी है कि अगर ताइवान पर चीन हमला करता है तो अमेरिका इसमें सैन्य रूप से शामिल हो जाएगा. अपनी यात्रा और कार्यक्रमों के दौरान बाइडेन ने व्यवसायियों और राजनीतिक नेताओं से उनकी चिंताओं के बारे में जाना और साथ ही एशिया के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता का आश्वासन भी दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति ने एशिया पैसिफिक इकॉनॉमिक फ्रेमवर्क की शुरूआत भी की जिसमें भारत समेत 13 देशों की भागीदारी है. लेकिन विशेषज्ञों का सवाल ये है कि क्या चीन के अरबों की लागत वाले बेल्ट एंड रोड इनिशेएटिव और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) में इसके बढ़ते प्रभाव के आगे इतना करना ही बहुत है?
अमेरिका ने क्वॉड को क्षेत्रीय व्यवस्था में आधारशिला बताते हुए कहा है कि इसका लक्ष्य हितों के मुद्दों पर मिलकर काम करना और सार्वजनिक उपयोग की चीजों को क्षेत्र में लाना है. अमेरिका ने यह भी कहा कि क्वॉड के सभी चार देशों की गतिविधियों का उपयोग करने से हिंद-प्रशांत में महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान किया जा सकेगा. मंगलवार को अमेरिका ने समुद्री डोमेन जागरूकता पर एक नई पहल की शुरुआत भी की है जो यह क्वॉड सदस्यों को 'नई रीयल-टाइम, एकीकृत लागत प्रभावी समुद्री डोमेन तस्वीर' प्रदान करेगा. यह देशों को उनके क्षेत्रीय जल में और उनके विशेष आर्थिक क्षेत्रों (ईईजेड) में हो रही गतिविधियों के बारे में जानने में भी मदद करेगा.
अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, इस तरह यह हिंद-प्रशांत के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों – प्रशांत द्वीप समूह, दक्षिण पूर्व एशिया और हिंद महासागर को एकीकृत करेगा. इसकी मदद से डार्क शिपिंग और अन्य सामरिक-स्तर की गतिविधियों, मसलन समुद्र में कोई मीटिंग आदि पर भी नजर रखी जा सकेगी. इसके साथ ही यह जलवायु और मानवीय घटनाओं पर प्रतिक्रियाओं की जानकारी मुहैया कराएगा और मत्स्य पालन के काम को भी सुरक्षा देगा.
AUKUS को लेकर अल्बनीज उत्साहित
इसके उलट अल्बनीज ने ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के बीच AUKUS सुरक्षा समझौते का वादा किया है, जिसके तहत निकट भविष्य में कई परमाणु पनडुब्बी बेड़ों की परिकल्पना की गई है. उन्होंने शिनजियांग में मानवाधिकारों के हनन की आलोचना की और हांगकांग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भी अपना समर्थन दिया.
अल्बानीज ने इस तरह दो निशाने साधने का प्रयास किया – एक चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति के सामने ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा पुख्ता करने का और दूसरा चीन के प्रति नरम रवैया रखने को लेकर आलोचकों को जवाब देने का. हालांकि अब ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि चीन के प्रति ऑस्ट्रेलिया की नीति को मौलिक रूप से बदले बिना, वह चीन विरोधी बयानबाजी में कटौती कर सकते हैं. इसके साथ ही अल्बानीज जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग की तलाशने के बहाने चीन के साथ दोबारा राजनयिक जुड़ाव भी कायम कर सकते हैं.
दिसंबर 1972 में तत्कालीन-ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री गफ व्हिटलाम और तत्कालीन चीनी प्रधान मंत्री झोउ एनलाई की ओर से दोनों देशों के संबंधों के सामान्यीकरण की जो प्रक्रिया शुरू की थी, इस साल दिसंबर में उसकी 50वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. हालांकि सामान्यीकरण की इस प्रक्रिया को शुरू करने का आधार लगभग उसी अवधि के दौरान अमेरिका के साथ किया गया ऐसा ही अनुबंध भी था. लेकिन मौजूदा स्थिति में अमेरिका चीन को अपनी सबसे बड़ी 'भू-रणनीतिक चुनौती' के रूप में देखता है और बीजिंग से भिड़ने के लिए ऑस्ट्रेलिया जैसे भागीदारों के साथ अपने संबंध मजबूत करना चाहता है. वहीं शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने एशिया के कई देशों के खिलाफ अपनी नीतियां काफी आक्रामक रखी हैं.
व्यापार की दृष्टि से चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा भागीदार
सत्ता परिवर्तन के साथ ही विशेषज्ञों को यह लग रहा है कि ऑस्ट्रेलिया के चीन के प्रति रुख को बदलने का ये उपयुक्त मौका है. ज्यादा मत इसी ओर बढ़ रहे हैं कि चीन से जुड़े मु्द्दों पर सख्ती को कम करते हुए अल्बानीज बीजिंग के साथ फिर से जुड़ने की कोशिश करें. दोनों ही परिदृश्यों पर जोर देते हुए पूर्व ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री गैरेथ इवांस ने कहा है कि हम चाटुकारिता और शत्रुता के बीच एक बीच का रास्ता निकालने में विफल रहे हैं.
व्यापार की दृष्टि से चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा भागीदार है और ऑस्ट्रेलिया के निर्यात का 30 प्रतिशत सामान चीन आता है – बेशक यह संख्या अमेरिका या यूरोपीय संघ से कहीं ज्यादा है. ऐसे में चीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों ने ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और महामारी के बाद इसकी सुधार गति को भी खासा कम कर दिया है.
अतीत में ऑस्ट्रेलिया की लेबर प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने अमेरिका से अपनी दोस्ती बरकरार रखते हुए चीन के साथ भी मजबूत संबंध बना लिए थे. 2011 में, उन्होंने कैनबरा में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तब मेजबानी की, जब उन्होंने अमेरिका को 'एशिया के लिए धुरी' बनाने की घोषणा की और डार्विन में अमेरिकी नौसैनिकों को तैनात किया था. इसके बाद, गिलार्ड ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर चीन के हुआवेई को राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड नेटवर्क के निर्माण में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया था. हालांकि, 2013 में बीजिंग की यात्रा के दौरान उन्होंने एक कदम आगे बढ़ाते हुए चीन और ऑस्ट्रेलिया के संबंधों को 'रणनीतिक साझेदारी' में बदल दिया.
चीन के इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस के एक विशेषज्ञ का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया में एक लेबर सरकार के तहत, दोनों देशों के लोगों के बीच व्यापक संवाद और सामाजिक स्तर पर आदान-प्रदान से चीन-ऑस्ट्रेलियाई संबंधों में सुधार हो सकता है. ऑस्ट्रेलिया के नए प्रधानमंत्री के लिए अमेरिका के साथ मजबूत संतुलित संबंध रखना और साथ ही चीन के साथ क्षतिग्रस्त संबंधों की मरम्मत करने की एक महत्वपूर्ण, मगर कठिन चुनौती है.
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