ठाकरे-मोदी की प्राइवेट मीटिंग : बीजेपी-शिवसेना के बीच अभी भी आल इज़ नॉट वेल!

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Maharashtra CM Uddhav Thackeray) मंगलवार को नयी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

Update: 2021-06-09 13:37 GMT

अजय झा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Maharashtra CM Uddhav Thackeray) मंगलवार को नयी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) से उनके 7 लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री निवास में मिले, अपने दोनों सहयोगी दलों, एनसीपी (NCP) और कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के नेताओं अजीत पवार (Ajit Pawar) और अशोक चव्हाण (Ashok Chavan) के साथ और फिर अकेले में. पहली मीटिंग का एजेंडा था मोदी सरकार से महाराष्ट्र सरकार की एक लम्बी मांगों की सूची पर समर्थन के बारे में चर्चा. किसी मुख्यमंत्री का प्रधानमंत्री से मिलना, वह भी तब जब उनकी सरकार मुसीबतों में घिरती दिख रही हो, आम बात है. पर सबसे दिलचस्प था ठाकरे का मोदी से अकेले में मिलना. ख़बरों के मुताबिक दोनों नेताओं की अकेले में बैठक लगभग आधे घंटे चली. प्राइवेट मीटिंग के बारे में पूछे जाने पर ठाकरे का सीधा सा जवाब था कि वह नवाज़ शरीफ से तो नहीं मिले. ठाकरे का कहना था कि उनके बीच राजनीतिक दूरी ज़रूर आयी है पर व्यक्तिगत रिश्ते बरकार हैं.

वहीं दूसरी तरफ ठाकरे के नजदीकी संजय राउत ने मोदी की बालासाहेब ठाकरे से घनिष्ट रिश्तों की बात की याद दिलाई. याद आती है 2009 में आयी आमिर खान की मूवी 3 इडियट्स की. ना ना, 3 इडियट्स से मेरा तात्पर्य ठाकरे, पवार और चव्हाण से कतई नहीं है. बस उस सिनेमा का एक गाना याद आ गया, आल इज़ वेल… ठाकरे या राउत तो यह गाना नहीं गाते दिखे, पर उनके कहने का मतलब था कि आपसी रिश्तों में आल इज़ वेल.
अकेले में मोदी और ठाकरे के बीच क्या चर्चा हुई
ठाकरे ने यह भी कहा कि उनकी मोदी के साथ अकेले में किसी भी तरह की राजनीतिक चर्चा नहीं हुई. चलो एक बार के लिए मान लेते हैं उनकी बात, तो फिर आधे घंटे तक वह मोदी से उनके परिवार का हालचाल पूछ रहे थे या फिर दिल्ली की गर्मी के बारे में चर्चा चल रही थी? ठाकरे को मुख्यमंत्री बने डेढ़ साल हो चुका है. जैसा शुरू में लगता था कि ठाकरे अनुभवहीन हैं और राजनीति के दावपेच नहीं जानते हैं, अब तक गलत साबित हो चुका है. इसमें कोई शक नहीं कि ठाकरे सरकार इन दिनों मुसीबत में घिरी पड़ी है. एनसीपी और कांग्रेस से मिलकर ठाकरे ने सरकार तो बना ली पर जिस तरह एनसीपी अपने जाने-पहचाने अंदाज़ में भ्रष्टाचार में लिप्त हो गयी, वह ठाकरे के लिए चिंता का विषय है. भले ही ठाकरे का इसमें कोई रोल नहीं हो लेकिन सब कुछ उनकी नाक के नीचे हो रहा है और उनकी छवि कहीं ना कहीं इससे धूमिल भी हो रही है. वहीं आरक्षण के मामले में मराठा आन्दोलन ठाकरे के गले की हड्डी बन गयी है. कोर्ट ने यह कहते हुए कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता, ठाकरे सरकार को संकट में डाल दिया है. आन्दोलन अगले कुछ दिनों में शुरू होने वाला है. इन सब पर तो जब वह अपने सहयोगी दल के मंत्रियों के साथ मिले तब चर्चा हुयी होगी, अकले में तो नहीं.
क्या ठाकरे फिर से बीजेपी के साथ आना चाहते हैं
तो क्या ठाकरे एनसीपी और कांग्रेस के साथ जा कर पछता रहे हैं? संभव है. शिवसेना और बीजेपी का साथ चोली दामन का था. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत प्राप्त हुआ था, पर वावजूद इसके कि शिवसेना को बीजेपी के 104 सीटों के मुकाबले 56 सीटें ही मिली थी, मुख्यमंत्री पद पर दोनों दलों में ठन गयी. ठाकरे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे और बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी. तो क्या ठाकरे मोदी से अकले में इस सम्भावना की तलाश कर रहे थे कि क्या बीजेपी उनके साथ आएगी?
भले ही शिवसेना और बीजेपी एक ही विचारधारा से जुड़े हों और मोदी और बालासाहेब ठाकरे के घनिष्ट सम्बन्ध रहे हों, पर अगर बीजेपी को उद्धव ठाकरे को ही मुख्यमंत्री स्वीकार करना होता तो बीजेपी पहले ही यह कर चुकी होती. अगर ठाकरे ने इस विषय में मोदी से बात की तो वह अपना और मोदी का समय जाया कर रहे थे. लगता नहीं है कि बीजेपी मुख्यमंत्री पद के आलावा किसी और फॉर्मूले पर बात भी करेगी. और जब महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार खतरे में हो, उसके खिलाफ जनता का विरोध बढ़ता जा रहा हो तो, तो प्रमुख विपक्षी दल के रूप में बीजेपी के लिए यही सबसे बेहतर रास्ता होगा कि वह ठाकरे सरकार के गिरने की प्रतीक्षा करे और अगले चुनाव की तैयारी करती रहे.
इस लिहाज से बीजेपी एक और सम्भावना से दूर ही रहेगी अगर ठाकरे की मंशा रही हो, और इस बारे में उनकी मोदी से चर्चा हुयी हो कि अगर वह एनसीपी और कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ देते हैं तो क्या बीजेपी शिवसेना सरकार का बाहर से समर्थन करेगी? इतना तो तय है कि मोदी और ठाकरे के बीच मुंबई की बारिश और दिल्ली की गर्मी के बारे के चर्चा नहीं हुयी होगी. चर्चा राजनीतिक ही रही होगा. और जिस तरह से ठाकरे ने यह कहा की वह नवाज़ शरीफ से तो नहीं मिले हैं, कहीं ना कहीं या दिखाता है कि उन्होंने जो भी बात की हो, मोदी ने शायद मना कर दिया. वरना नवाज़ शरीफ का जिक्र क्यों? यह साफ-साफ मोदी के ऊपर कटाक्ष था.
बात 2015 की है, मोदी अफगानिस्तान से लौट रहे थे और बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के उनका जहाज लाहौर में उतरा और वह नवाज़ शरीफ को जो उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, उन्हें जन्मदिन की बधाई देने पहुंच गए. नवाज़ शरीफ का ज़िक्र साफ़ दर्शाता है कि ठाकरे को मोदी से अकेले में मिल कर वह नहीं मिला जिसकी उन्हें उम्मीद रही हो.
बहरहाल अकेले में दोनों नेताओं ने क्या बात की इस बारे में सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है. संभव है कि मोदी से प्राइवेट मीटिंग करके ठाकरे ने एनसीपी और कांग्रेस को डराने की कोशिश की हो कि अगर दोनों पार्टियां इसी तरह से उनकी मुसीबतें बढ़ाते रहे तो वह बीजेपी के साथ फिर से हाथ मिलाने को तैयार हैं. एनसीपी और कांग्रेस महाराष्ट्र में सत्ता से दूर नहीं होना चाहेगी. पर इतना तो समझा जा सकता है कि बीजेपी और शिवसेना के बीच अभी भी आल इस नॉट वेल. एक और बात, उद्धव ठाकरे जनता और मीडिया को इडियट ना समझे क्योंकि ऐसा हो ही नहीं सकता कि दो नेता जब अकेले में मिले हों तो राजनीतिक बातें ना हुई हो.
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