धार्मिक सहिष्णुता का इम्तेहान
हिन्दोस्तान का पुख्ता इतिहास यह है कि सन् 1197 से पहले यह कमोबेश धार्मिक सहिष्णुता का ही प्रतिपादन करने वाला देश
Aditya Chopra
हिन्दोस्तान का पुख्ता इतिहास यह है कि सन् 1197 से पहले यह कमोबेश धार्मिक सहिष्णुता का ही प्रतिपादन करने वाला देश था हालांकि सन् 712 में अरब के आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम ने सिन्ध के हिन्दू 'राजा दाहिर' को परास्त कर इस रियासत में रहने वाली हिन्दू व बौद्ध प्रजा का मजहब के आधार पर उत्पीड़न करके उनसे 'जजिया' वसूलना शुरू कर दिया था। इसके बावजूद 12वीं शताब्दी के खत्म होते-होते अफगानिस्तान के रास्ते से भारत पर मुस्लिम आक्रमण होते रहे जिनका माकूल जवाब यहां के हिन्दू राजा देते रहे जिनमें सबसे ऊंचा नाम मेवाड़ के राणा 'बप्पा रावल' का है जिन्होंने विभिन्न हिन्दू राजाओं के सहयोग से अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तर-पश्चिम सीमान्त तक किया और मुस्लिम लुटेरे आक्रान्ताओं को समय-समय पर भारी मार लगाई। बप्पा रावल ने मेवाड़ साम्राज्य में 38 दुर्गों का निर्माण किया और उदयपुर के समीप ही कुम्भलगढ़ का अभेद्य दुर्ग भी बनवाया।
बप्पा रावल महान योद्धा होने के साथ ही संगीत शास्त्र के भी मर्मज्ञ थे। सन् 728 से 753 तक पूरे उत्तर-पश्चिमी भारत पर राज करने वाले महान बप्पा रावल का इतिहास अंग्रेज व कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने नैपथ्य में रखने का प्रयास किया क्योंकि उन्होंने मुस्लिम आक्रान्ताओं से अफगानिस्तान का इलाका भी छीन कर उन्हें ईरान तक धकेेलने में सफलता प्राप्त की थी और गजनी का शासक अपने भतीजे को बना कर वहां से वापस मेवाड़ लौटते हुए हर सौ मील पर एक हजार सैनिकों की एक छावनी स्थापित कर दी थी। पाकिस्तान का रावलपिंडी शहर बप्पा रावल ने ही एक सैनिक छावनी के तौर पर बसाया था। इसके बाद 1191 तक मुस्लिम आक्रान्ताओं की हिम्मत भारत पर राज करने की नहीं हुई थी परन्तु 1191 तक गजनी का शासन मुस्लिम सुल्तानों के हाथ में जा चुका था जिसकी वजह से मुहम्मद गौरी ने दिल्ली के सम्राट पृथ्वी राज चौहान को चुनौती देनी शुरू कर दी थी। 1191 में मुहम्मद गौरी अपनी फौज लेकर हरियाणा स्थित तराइन तक आ गया था जहां पृथ्वी राज चौहान ने उसे बुरी तरह परास्त किया और जख्मी गौरी वापस गजनी चला गया मगर अगले ही वर्ष 1192 में वह फिर तराइन के मैदान में फौज लेकर आ गया और इस युद्ध में पृथ्वी राज चौहान परास्त हुए। इसके बाद से ही दिल्ली में सुल्तानी राज शुरू होने पर धार्मिक असहिष्णुता का दौर शुरू हुआ और इस प्रकार शुरू हुआ कि इस देश के कदीमी निवासी ही सुल्तान के इस्लाम धर्म के मातहत जजिया चुका कर अपना धर्म बचाने के लिए मजबूर हुए।
रियाया में हिन्दू-मुस्लिम का भेद यहीं से शुरू हुआ जो 19वीं सदी तक मुगल साम्राज्य के ढहने तक चालू रहा और इसका फायदा अंग्रेजों ने 1857 के बाद इस देश का शासन चलाने में जमकर किया जिसकी परिणिती 1947 में भारत के दो हिस्सों में बंटने से हुई। मगर 12वीं शताब्दी के बाद भारत से बौद्धों का सफाया करने में मुस्लिम सुल्तानों ने इसलिए सफलता प्रप्त की क्योंकि बौद्ध धर्म के संघ प्रमुख विहारों में रहा करते थे और उनका कत्ल कर देना बहुत आसान होता था। जबकि हिन्दू धर्म के पूजा-पाठी व धर्मोपदेशक गृहस्थ ही होते थे जिनकी पहचान करना सरल काम नहीं होता था। यह कर्म वंशानुगत तरीके से होता था जबकि बौद्ध धर्म में भिक्षु बनने के लिए विहार में प्रवास करके इस मत में दीक्षित होना पड़ता था। कहने का मतलब यह है कि धार्मिक सहिष्णुता भारत के ताने-बाने में बसी हुई थी (हालांकि मौर्य वंश के बाद 185 ईसा पूर्व पुष्यमित्र शुंग का शासन होने पर बौद्धों के साथ अत्याचार किया गया मगर प्रथम ईस्वी से पूर्व ही कुषाण वंश का शासन शुरू होने पर इसके महाप्रतापी सम्राट कनिष्क ने पुनः बौद्ध धर्म की खोई प्रतिष्ठा को स्थापित कर दिया था)। इसके बाद गुप्त वंश का शासन शुरू होने पर पुनः वैष्णव या सनातन अथवा हिन्दू धर्म की पताका ऊंची फहरने लगी जो 12वीं शताब्दी तक कमोबेश जारी रही। बेशक सन् 1000 के आसपास महमूद गजनवी ने गुजरात के सोमनाथ मन्दिर को 16 से अधिक बार लूटा मगर वह मूल रूप से एक लुटेरा था और मन्दिर से धन सम्पत्ति लूट कर ले जाता था। वह 'गउओं' को आगे रख कर गुजरात के स्थानीय राजाओं से युद्ध लड़ता था और लूटपाट करके चला जाता था।
1192 से भारत में शुरू हुए सुल्तानी राज के बाद धार्मिक असहिष्णुता का नंगा नाच इस प्रकार शुरू हुआ कि गद्दी पर बैठा सुल्तान मुल्ला, मौलवियों या काजियों अथवा उलेमाओं को खुश करने के लिए हिन्दुओं के किसी भी विख्यात मन्दिर को तहस-नहस कर देता था। इसका सबसे बड़ा उदाहरण फिरोजशाह तुगलक है 1366 के आसपास जब बंगाल के मुस्लिम शासक को न हरा सका तो उसने लौटते हुए जग्गन्नाथ पुरी के मन्दिर पर हमला कर दिया और वहां प्रतिष्ठित देव प्रतिमाओं को समुद्र में फेंक दिया। अतः जो लोग कहते हैं कि भारत केवल अंग्रेजों के शासनकाल में दो सौ वर्ष तक ही गुलाम रहा, वे गलती पर हैं।
भारत पूरे 800 वर्षों तक गुलाम रहा। मुसलमान शासक युद्ध के जरिये जो भी रियासत जीतते थे उसके बाद वहां की रियाया का कत्लेआम करते थे और स्त्रियों को गुलाम बना कर उनका शोषण करते थे। यह इतिहास इसी कारण लिखा है जिससे भारत में सही अर्थों में धार्मिक सहिष्णुता का वातावरण बने और भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी यह न समझे कि केवल उसका ही मजहब पाकीजा है।
हमें इतिहास को बदलना नहीं है बल्कि उससे सबक लेते हुए आगे बढ़ना है और हर मुसलमान को रोशन ख्याल होते हुए तरक्की करनी है। मजहब से पहले आज के हिन्दोस्तान में संविधान आता है और इसमें लिखा हुआ है कि मजहब किसी भी भारतीय नागरिक का निजी मामला है। अतः श्रीमती नूपुर शर्मा को जिस तरह फांसी पर लटकाने की ताईद इत्तेहादे मुसलमीन के सांसद इम्तियाज जलील ने उनके पैगम्बर हजरत मोहम्मद के बारे में की गई टिप्पणी पर की है वह जलील के खिलाफ ही कानूनी कार्रवाई करने की तवक्कों रखती है। सवाल लाजिमी तौर पर बनता है कि नुपूर शर्मा के मामले में धार्मिक सहिष्णुता का ढोल बजाने वाली ब्रिगेड के 'मुकादम' किस कौने में सोये हुए हैं।