Vijay Gargविजय गर्ग: देशभर में विकराल होते वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव की एक और भयावह तस्वीर सामने आई है। एक नए अध्ययन में बताया गया है कि हवा में प्रति घन मीटर में पीएम 2.5 प्रदूषक सूक्ष्म कण का वार्षिक स्तर प्रति 10 माइक्रोग्राम की वृद्धि के संपर्क में होने से भारत में मृत्युदर में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह अध्ययन प्रतिष्ठित शोध पत्रिका लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित किया गया है। इसमें बताया गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अनुशंसित वार्षिक औसत 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक पीएम 2.5 प्रदूषण स्तर के वातावरण में लंबे समय तक रहने से संभावित रूप से भारत में प्रति वर्ष 15 लाख मौतें होती हैं।
अध्ययन निष्कर्षो में यह भी बताया गया कि भारत में लगभग पूरी आबादी (140 करोड़ लोग ) डब्ल्यूएचओ के द्वारा तय अनुशंसित पीएम 2.5 की सांद्रता स्तर से अधिक प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते हैं। अशोक विश्वविद्यालय (हरियाणा) के सेंटर फार हेल्थ एनालिटिक्स रिसर्च एंड ट्रेंड्स (चार्ट) के शोधकर्ता डाक्टर सुगंती जगनाथन ने बताया, भारत में वार्षिक पीएम 2.5 का उच्च स्तर देख गया है, जिससे मृत्युदर का बोझ बढ़ रहा है। यह स्थिति प्रदूषण को लेकर चर्चित रहने वाले शहरों तक ही सीमित नहीं है। इसलिए यह निष्कर्ष केवल संकेतात्मक तौर पर नहीं, बल्कि व्यवस्थित तरीके से इसका समाधान खोजने की आवश्यकता का सिग्नल है।
अध्ययन में पाया गया है कि वायु प्रदूषण के निचले स्तर पर भी अधिक जोखिम है। यह देशभर में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने की आवश्यकता को इंगित करता है। पिछले अध्ययनों के विपरीत, इस अध्ययन में भारत के लिए बनाए गए एक बेहतरीन स्पेटियोटेम्पोरल माडल से पीएम 2.5 एक्सपोजर और भारत के सभी जिलों में रिपोर्ट की गई। वार्षिक मृत्युदर का इस्तेमाल किया गया। अध्ययन अवधि ( 2009 से 2019) के दौरान सभी मौतों में से 25 प्रतिशत (प्रति वर्ष लगभग 15 लाख) मौतों को डब्ल्यूएचओ के मानक से अधिक वार्षिक पीएम 2.5 जोखिम के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। भारतीय राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों से ऊपर पीएम 2.5 के वार्षिक जोखिम के कारण लगभग 30 हजार वार्षिक मौतें भी होती हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब