दशानन की दस बातें
रामलीला देखकर देर रात घर लौट रहा था। सामने सड़क पर देखा तो एक विशालकाय आदमी मेरी ओर चला आ रहा था
रामलीला देखकर देर रात घर लौट रहा था। सामने सड़क पर देखा तो एक विशालकाय आदमी मेरी ओर चला आ रहा था। ज्योंही मेरे पास आया तो एक पल को मैं डर गया, लेकिन अगले ही क्षण में संभल गया। मैं पहचान गया कि यह और कोई नहीं दशानन रावण है। मुझे देखकर ठहाका लगाया और बोला -''पहचाना, मैं कौन हूं?'' मैं बोला -''आप रावण हैं। कैसे, आज रोड पर आवाराओं की तरह घूम रहे हो?'' रावण बोला -''सर्वत्र मेरा राज है। मैं राज्य के हाल-चाल जानने पैदल ही निकला हूं।'' ''लेकिन आपके प्रहरी?'' मैंने पूछा। ''रावण को किसी प्रकार के प्रहरियों की आवश्यकता नहीं होती। मैं हर मुसीबत से अकेला लड़ सकता हूं।'' रावण ने जवाब दिया। मैंने कहा -''सर, सब जगह अराजकता है, अमन चैन है नहीं। महंगाई सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है। इसलिए आपका राज्य आपके मनोनुकूल चल रहा है।'' रावण मेरे मुंह से यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने फिर हंसकर ठहाका लगाया और बोला -''लेकिन बरखुरदार, इतनी रात गए तुम कहां घूम रहे हो? यह तो नींद का वक्त है।'' ''सर मैं रामलीला देखकर आ रहा हूं। आज वहां रावण वध का दृश्यांकन था। किस तरह भगवान राम ने तुम्हारा वध किया था।'' मेरी इस बात पर वह फिर हंसा और बोला -''लेकिन मैं तो तुम्हारे सामने जिंदा खड़ा हूं। रावण राज्य में रामलीला देखने से फायदा क्या है?'' ''सर, मैं एक सदाचारी आध्यात्मिक पुरुष हूं। रामलीला मैं हर वर्ष देखता हूं। दुराचारी का अंत देखकर मुझे लगता है कि अच्छाई अभी जिंदा है।'' रावण दहाड़ा -''बच्चू, यह भाषा मत बोलो और यह भी मत भूलो कि तुम रावण के सामने निहत्थे खडे़ हो। जाओ अपने दड़बे में और सो जाओ।