कोविड और उससे बचाव के बारे में धीरे-धीरे कई नई बातें सामने आ रही हैं। जैसे कई अध्ययनों से यह पता चला है कि दांतों और मसूड़ों की सफाई व उनके स्वास्थ्य का कोरोना संक्रमण से गहरा रिश्ता है। इस तरह के अध्ययन एक साल पहले से ही आने लगे थे, जिनसे यह मालूम चलता था कि मुंह की सफाई और आम माउथवाश के इस्तेमाल से कोरोना से बचाव हो सकता है। पिछले एक साल में कई और प्रमाण सामने आए हैं, जो मुंह व दांतों के स्वास्थ्य और कोरोना के बीच रिश्ते को स्पष्ट करते हैं। एक ताजा अध्ययन बताता है कि खराब मसूडे़ और दांतों की वजह से कोविड संक्रमण की आशंका 8.8 प्रतिशत बढ़ जाती है, जबकि अस्पताल में भर्ती होने की आशंका 2.5 फीसदी और मरीज के वेंटिलेटर पर जाने की आशंका 4.5 प्रतिशत बढ़ जाती है। अगर मरीजों के मुंह और दांतों की सफाई का ध्यान रखा जाए, तो कोरोना के बाद होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में भी कमी हो सकती है। ब्लैक फंगस या म्यूकरमाइकोसिस से बचाव में भी इसकी बड़ी भूमिका है, क्योंकि यह बीमारी भी आम तौर पर मुंह में ही जड़ जमाती है।
मुंह की सफाई और कोरोना संक्रमण के बीच रिश्ते का मुख्य कारण यही है कि कोरोना वायरस मुंह और नाक के रास्ते ही शरीर में प्रवेश करता है। आज से करीब बीस साल पहले सार्स नामक जो घातक बीमारी फैली थी, उसी के वायरस का कुछ बदला हुआ रूप यह वायरस है। इसीलिए इसका वैज्ञानिक नाम सार्स कोव-2 रखा गया है। मूल सार्स वायरस और इस वायरस में एक फर्क यह है कि सार्स वायरस शरीर में घुसते ही सीधे फेफड़ों पर वार करता था। इससे वह ज्यादा घातक हो गया था। उसके लगभग दस प्रतिशत मरीजों की जान बचाई नहीं जा सकी। लेकिन इसी वजह से वह ज्यादा फैल नहीं पाया, क्योंकि उसके मरीज में संक्रमण होते ही फौरन लक्षण दिखाई देने लगते थे और उसे समूह से अलग कर सकना संभव होता था । इसके उलट मौजूदा कोरोना संक्रमण का वायरस शरीर में घुसकर कछ दिन मुंह, नाक और गले में रहता है, इन दिनों में या तो कोई लक्षण नहीं दिखता या हल्के लक्षण होते हैं। ज्यादातर मरीजों में तो वायरस का फैलाव यहीं तक सीमित रहता है और मरीज ठीक हो जाता है। लेकिन कुछ मरीजों में संक्रमण फेफड़ों तक पहुंचता है और गंभीर लक्षण हो जाते हैं। सार्स कोव-2 के इस गुण की वजह से गंभीर बीमारी और मृत्यु का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है, लेकिन बहुत ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं, क्योंकि जब तक इसके लक्षण प्रकट होते हैं, तब तक मरीज अपने आसपास के कई लोगों को संक्रमित कर चुका होता है। मुंह की सफाई या गरारे करने के पीछे तर्क यही है कि इससे वायरस को मुंह और गले के स्तर पर ही रोका जा सकता है और वह फेफड़ों तक नहीं पहुंच पाता। अगर मसूड़े खराब हों, तो उनकी सूक्ष्म रक्त वाहिनियों के जरिये कोरोना वायरस रक्त प्रवाह में पहुंच जाता है और उससे फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं। इसी तरह, बीमार हो जाने के बाद जब शरीर का प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है, तब मुंह और दांतों की देखभाल किसी अन्य बीमारी के आक्रमण से भी रक्षा कर सकती है। कोरोना न भी हो, तब भी मुंह और दांतों की सफाई एक अच्छी आदत है, पर इन दिनों तो इससे एक बड़ा अतिरिक्त लाभ मिल सकता है।