प्रौद्योगिकी और विकसित भारत का सपना

इसके अलावा, ध्वनि से अधिक गति वाले यान महाद्वीपों के आर-पार उड़ेंगे। जीनोमिक तथा जैव-प्रौद्योगिकीय शोध द्वारा मानव जीवन को और दीर्घ बनाया जा सकेगा।

Update: 2022-12-16 05:04 GMT

निरंकार सिंह: इसके अलावा, ध्वनि से अधिक गति वाले यान महाद्वीपों के आर-पार उड़ेंगे। जीनोमिक तथा जैव-प्रौद्योगिकीय शोध द्वारा मानव जीवन को और दीर्घ बनाया जा सकेगा।

किसी भी देश के विकास में वैज्ञानिक और तकनीकी विकास की प्रमुख भूमिका होती है। दुनिया में आज वही देश आगे बढ़ सकता है, जहां नई खोजों, तकनीक का आविष्कार और पुरानी तकनीक का लगातार उन्नयन होता रहे। इसलिए भारत को विकसित देश बनने के लिए अभी कई मंजिलें पार करनी होंगी। आज दुनिया में एक नई तरह की जंग चल रही है।

आर्थिक मोर्चे पर चल रही यह जंग उच्च तकनीक के माध्यम से बाजार की ताकतों को अपने नियंत्रण में लाने के लिए कौशल रूपी हथियार के इस्तेमाल से लड़ी जा रही है। इस जंग में अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देश शामिल हैं। इस जंग की प्रेरक शक्ति है एक खास किस्म के सिद्धांत पर आधारित ज्यादा से ज्यादा दौलत पैदा करना।

आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि एक राष्ट्र के रूप में पीछे से लड़ी जा रही इस जंग में कैसे कामयाब हों? आर्थिक और सैनिक प्रभुत्व को दांवपेच से हासिल करके आज राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी ही विकास की कुंजी और प्रेरक बन सकती है। इसलिए हमें अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में राष्ट्रीय संपत्ति उत्पन्न करके अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को बढ़ाते रहना होगा।

इसके लिए तकनीक को लगातार विकसित करते रहना होगा। अगर देश का नेतृत्व ईमानदार और उसका लक्ष्य सही हो तो यह सब संभव है। भारत का विकास भी उसकी प्रौद्योगिकीय क्षमता के विकास पर निर्भर होगा। उम्मीद की किरण यह है कि एक साल के भीतर कोरोना का टीका बना कर भारत ने अपनी नई क्षमता परिचय दिया है। यह मानव जाति की सुरक्षा के लिए भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों की बहुत बड़ी कामयाबी है। यह दुनिया भर के वैज्ञानिकों के आपसी सहयोग से संभव हो सका है।

देश के परमाणु प्रतिष्ठानों ने परमाणु बिजली घर बनाने, न्यूक्लियर मेडिसिन विकसित करने तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए कृषि संबंधी बीजों का नाभिकीय उपचार करने की क्षमता हासिल कर ली है। भारत में परमाणु विज्ञान की उत्पत्ति के दो दशक के अंदर न्यूक्लिर मेडिसिन, कृषि उत्पादों के संरक्षण के लिए परमाणु उपचार, परमाणु अस्त्रों का निर्माण कर लिया गया।

पिछले कुछ वर्षों में रक्षा शोध ने मुख्य युद्धक टैंकों, उन्नत मिसाइल प्रणालियों, हल्के लड़ाकू विमानों, इलेक्ट्रानिक युद्ध-प्रणालियों तथा विभिन्न बख्तरबंद यानों की डिजाइनिंग, विकास तथा उत्पादन को प्रेरित किया है। यह उन्नति दर्शाती है कि आज भारत के पास कई उन्नत प्रौद्योगिकीय प्रणालियां हैं। फिर भी, भारत एक विकासशील देश है।

प्रौद्योगिकी के कई आयाम हैं। देश की आवश्यकता के अनुसार भू-राजनीति प्रौद्योगिकी के अनुकूलन को प्रोत्साहित कर सकती है, जो आर्थिक संपन्नता को प्रेरित और राष्ट्रीय सुरक्षा को और सशक्त बना सकता है। मसलन, रासायनिक इंजीनियरिंग में प्रगति ने अधिक उत्पादन के लिए उवर्रकों का निर्माण किया, पर रासायनिक अस्त्रों के उत्पादन में भी योगदान दिया। इसी प्रकार, पर्यावरणीय शोध के लिए विकसित की गई राकेट प्रौद्योगिकी ने दूर संवेदन (रिमोट सेंसिंग) तथा संचार के लिए उपग्रहों के प्रक्षेपण में मदद की, जो आर्थिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

इसी प्रौद्योगिकी ने विशिष्ट रक्षा क्षमताओं वाले मिसाइलों के विकास को भी प्रेरित किया, जो देश की सुरक्षा प्रदान करते हैं। उड्डयन प्रौद्योगिकी में प्रगति ने लड़ाकू तथा बमवर्षक विमानों, साथ ही यात्री जेट के निर्माण को संभव बनाया है। इन्होंने प्राकृतिक आपदा से प्रभावित लोगों तक त्वरित मदद पहुंचाने में भी सहयोग किया है।

आने वाले वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पन्न बौद्धिक उत्पाद तथा प्रणालियों, जैव-प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी द्वारा लोगों का जीवन अधिक संवर्धित होगा। इसके अलावा, ध्वनि से अधिक गति वाले यान महाद्वीपों के आर-पार उड़ेंगे। जीनोमिक तथा जैव-प्रौद्योगिकीय शोध द्वारा मानव जीवन को और दीर्घ बनाया जा सकेगा। इससे भी अधिक संभावनाएं टीके के क्षेत्र में हैं। यह भारत के लिए एक वरदान होगा, जहां लाखों पोलियो तथा हेपेटाइटिस-बी के शिकार हो जाते हैं। विभिन्न परिवहन प्रणालियों, चिकित्सीय उपकरणों तथा ऐरोस्पेस प्रणालियों, जैसे माइक्रो सेटेलाइट, मिनी आरपीवी आदि की नियंत्रण प्रणालियों के रूप में नैनो-टेक्नोलाजी मानव प्रयोग में आएगी।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग पांच नए मिशन शुरू कर रहा है, जो भविष्य में देश के विकास की रूपरेखा निर्धारित करने में उपयोगी हो सकते हैं। इनमें इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन, क्वांटम साइंस ऐंड टेक्नोलाजी मिशन, मेथेनाल मिशन और मैपिंग इंडिया मिशन शामिल हैं। इनके अलावा, साइबर फिजिकल सिस्टम्स मिशन को पिछले साल ही मंजूरी दी जा चुकी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 'भविष्य की बढ़ती प्रौद्योगिकी जरूरतों को पूरा करने, अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन, देश के विभिन्न क्षेत्रों की सटीक मैपिंग और भविष्य के अत्याधुनिक कंप्यूटिंग प्रणालियों के विकास में ये मिशन उपयोगी हो सकते हैं।'

भविष्य की परिवहन जरूरतों के देखते हुए पांच हजार करोड़ रुपए की लागत से इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन शुरू किया जा रहा है। इसके अंतर्गत इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास से जुड़े विभिन्न घटकों पर आधारित शोध और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। 2025 तक दुनिया भर में लिथियम बैटरी चलन से बाहर होने लगेंगी। ऐसे में, नए तत्त्व विकसित करने होंगे। हाइड्रोजन र्इंधन सेल, नई रासायनिक संरचनाओं और अधिक ताप वहन करने में सक्षम बैटरियों का विकास इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़ी उभरती तकनीक इस क्षेत्र में नए विकल्प हो सकते हैं।

मेथेनाल और डाइमिथाइल के उत्पादन एवं उपयोग को बढ़ावा देने के लिए मेथेनाल मिशन शुरू किया जा रहा है। इसके लिए सेंटर आफ एक्सीलेंस स्थापित किए जाएंगे। पेट्रोल और डीजल की तुलना में मेथेनाल कम ऊर्जा देता है, पर यह परिवहन तथा ऊर्जा क्षेत्र और रसोई गैस में एलपीजी (आंशिक रूप से), केरोसीन में पेट्रोल तथा डीजल और लकड़ी के कोयले को प्रतिस्थापित कर सकता है। स्वच्छ पर्यावरण और जीवाश्म र्इंधन पर निर्भरता कम करने में इस मिशन की भूमिका अहम हो सकती है।

क्वांटम तकनीक को बढ़ावा देने के लिए शुरू किए जा रहे मिशन के अंतर्गत क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कम्युनिकेशन, क्वांटम मौसम विज्ञान, सेंसिंग और संवर्धित इमेजिंग शामिल होगी। इसके अलावा, पिछले वर्ष शुरू किए गए साइबर फिजिकल प्रणालियों के राष्ट्रीय मिशन को भी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग लागू करने में जुटा है।

छत्तीस सौ करोड़ रुपए की लागत से शुरू किया गया यह मिशन समाज की बढ़ती प्रौद्योगिकी जरूरतों को पूरा करने और नई पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। क्वांटम मिशन प्रौद्योगिकियों का प्रभावी उपयोग करने में केंद्रीय मंत्रालयों, सरकारी विभागों, राज्य सरकारों और उद्योगों को विभिन्न परियोजनाओं और योजनाओं के संचालन में मदद करेगा।

पूरे देश की डिजिटल मैपिंग के लिए एक अन्य मिशन तैयार किया गया है। इसके अंतर्गत उपग्रह चित्रों और ड्रोन की मदद से मानचित्र तैयार किए जाएंगे। ये मानचित्र बड़े पैमाने पर बनाए जाएंगे। अगले दो सालों में पूरे देश की मैपिंग की जाएगी और इस तरह बने मानचित्र विभिन्न विकास परियोजनाओं में मददगार हो सकते हैं। पर आज जरूरत इस बात की है कि छात्र तथा युवा विकसित होकर न केवल विभिन्न क्षेत्रों में पेशवर बनें, बल्कि रचनात्मक उद्यमी बन कर दूसरों को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराएं। रचनात्मक नेताओं का अनुपात जितना ऊंचा होगा, 'विकसित भारत' के स्वप्न की सफलता की संभावना उतनी ही अधिक होगी। हमें किसी भी मिशन में सफल होने के लिए अदम्य उत्साह तथा विफलताओं का सामना करने और उनसे सीखने के साहस की आवश्यकता होती है।


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