शिक्षक दिवस विशेष : शिक्षा का धर्म अपनाएं शिक्षक

Update: 2023-09-04 12:36 GMT
 
शिक्षक का काम विद्यार्थियों को सिर्फ पाठ्यक्रम पढ़ाना ही नहीं, बल्कि उनके शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक विकास के लिए कार्य करना भी है। अभी हाल में ही दो घटनाओं ने अध्यापक के रोल पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिए, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक स्कूल शिक्षिका ने छात्रों से कक्षा के अंदर एक मुस्लिम बच्चे को थप्पड़ मारने को कहा गया था। वहीं दूसरे घटनाक्रम में कश्मीर में कठुआ जिले के एक सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक ने छात्र की इस बात पर जमकर पिटाई कर दी कि उसने ब्लैक बोर्ड पर जय श्री राम लिखा था। जब शिक्षा के क्षेत्र में धर्म व जाति के नाम पर शिक्षकों के द्वारा विद्यार्थियों को जांचा व परखा जाएगा तो सोचिए समाज में कैसी पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी जन्म लेगी? वैसे भी वर्तमान में युवा पीढ़ी के मन में ऐसे घृणित बीच बोए जा रहे हैं जिनसे बनने वाला पौधा किसी भी हाल में खुशहाल समाज की नींव नहीं रख सकता। छोटी छोटी बातों पर युवाओं का दो गुटों के बीच मनमुटाव का रूप लेकर हिंसक हो जाना या किसी भी राय प्रभावित करने वाले ग्रुप के बहकावे में आकर तर्कहीन विचार का अनुसरण करना आम हो गया है। इस परिस्थिति में विद्यार्थियों के मानसिक विकास में एक अध्यापक की बहुत बड़ी भूमिका होती है। लेकिन अगर अध्यापक का रोल ही तर्कसंगत न हो तो समाज किससे आशा करेगा? सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सोशल मीडिया के अधिक प्रसार से पहले बच्चा अपनी मां के बाद शिक्षक से ही ज्ञान प्राप्त करते थे।
लेकिन इंटरनेट आधारित विभिन्न माध्यमों के प्रचार-प्रसार के कारण विद्यार्थियों की निर्भरता उन पर अधिक हो गई है। सूचना की अधिकता के कारण स्टूडेंट्स के मन में बढ़ती शंका ने ही कई समस्याओं को जन्म दे दिया है। इस बिंदु को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ तर्कसंगत शिक्षण की ओर भी ध्यान देना पड़ेगा। अध्यापकों को यह समझना पड़ेगा कि आज वे उस युवा पीढ़ी को शिक्षित कर रहे हैं जो तकनीक के माध्यम से सोचती, समझती और संचालित होती है। इस पीढ़ी में क्रिटिकल सोच को विकसित करने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर है ताकि उनकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाया जा सके। शिक्षा के क्षेत्र में प्रेरणा व रुचि का सिद्धांत बहुत कारगर है, क्योंकि वर्तमान में विभिन्न क्रियाकलापों से बच्चों और उनके माता-पिता पर गैर जरूरी बोझ डाला जा रहा है, जबकि जरूरी है कि बचपन से ही उनकी रुचि को समझकर अध्यापक उन्हें उसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित करें, ताकि उनकी रुचि को सही दिशा में लगाकर उनकी मंजिल तक पहुंचाया जा सके। शिक्षकों को चाहिए कि छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं की जानकारी से लेकर शिक्षण कार्य करें ताकि शिक्षा में कम होती रुचि वाले बच्चों की भागीदारी को बढ़ाया जा सके। आज सबसे बड़ी चुनौती बच्चों के मानसिक विकास को गति देने की है क्योंकि दिखावटी क्रियाकलापों से उनकी रुचि, सोच व विचार अत्यधिक प्रभावित हो रहे हैं।
डा. निधि शर्मा
स्वतंत्र लेखिका
शिक्षक दिवस तक सीमित न हो महिमा
शिक्षक का हर मानव के जीवन में विशेष स्थान होता है। यह शिक्षक ही है जो किसी मनुष्य को इनसान बनाता है। शिक्षक का स्थान मानव जीवन में भगवान और माता-पिता से भी ऊपर है। यही वजह है कि शिक्षक के बारे में जितना भी कहा जाए, कम ही है। तभी तो स्वयं कबीर दास जी इस विषय पर कहते हैं : ‘सब धरती कागज करूं, लिखनी सब बनराय। सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय॥’ इसका अर्थ यह है कि यदि सम्पूर्ण पृथ्वी को कागज के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए, साथ ही सातों समुद्र की स्याही बना ली जाए और क्यों न सभी जंगलों की कलम भी बना ली जाए, लेकिन इसके बावजूद शिक्षक की महिमा का संपूर्ण गुणगान किया जा सके, यह मुमकिन नहीं है। भारत में प्राचीन काल से ही गुरु-शिष्य की परंपरा का बहुत अधिक महत्व रहा है। हमारी संस्कृति के निर्माण में गुरु-शिष्य परंपरा का बहुत अधिक योगदान है। मानव के जीवन निर्माण के सभी स्तंभों में शिक्षक सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है।
शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ-साथ उसके चरित्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कहा जाता है कि इनसान की सबसे पहली गुरु उसकी मां होती है, जो अपने बच्चों को जीवन प्रदान करने के साथ-साथ जीवन के आधार का ज्ञान भी देती है। इसके बाद अन्य शिक्षकों का स्थान होता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना बहुत ही विशाल और कठिन कार्य है। व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना उसी प्रकार का कार्य है, जैसे कोई कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य करता है। भारत में भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस अर्थात 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। उन्होंने अपने छात्रों से अपने जन्म दिवस पर शिक्षक दिवस मनाने की इच्छा जताई थी। पूर्व राष्ट्रपति डा. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही किताबें पढऩे के शौकीन थे और स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित थे।
डा. राधाकृष्णन का निधन चेन्नई में 17 अप्रैल 1975 को हुआ था। भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में ही उनके जन्म दिवस पर भारत में शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत हुई। भारत में सबसे पहले शिक्षक दिवस 5 सितंबर 1962 को मनाया गया था। वैसे तो विश्व भर में 100 से भी अधिक देशों में शिक्षक दिवस मनाया जाता है, मगर अन्य देशों में यह दिवस अलग-अलग दिन पर मनाया जाता है। भारत में यह दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में मनाया जाता है। इस दिन विश्व के सभी शिक्षकों को उनके बहुमूल्य योगदान के लिए याद किया जाता है। गुरु की भूमिका प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण रहती है, लेकिन आज के समय में शिक्षक के दायित्व को कुछ लोग भ्रष्ट आचरण से कलंकित कर रहे हैं। बेहतर समाज के भविष्य के लिए यह संकट व चुनौती है। इससे पार पाना होगा क्योंकि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता। गुरु की महिमा केवल शिक्षक दिवस तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।
प्रो. मनोज डोगरा
शिक्षाविद

By: divyahimachal

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