लक्षित हत्या आतंकियों की नई रणनीति : दंश झेल रहे कश्मीरी पंडितों की कौन सुने, आसानी से बन जाते हैं निशाना
उसका साथ दें एवं कश्मीर को आतंकवाद एवं अलगाववाद से मुक्ति के सहयोगी बने रहें।
स्वतंत्रता दिवस के ठीक अगले दिन दक्षिण कश्मीर के शोपियां में आतंकवादियों द्वारा दो कश्मीरी हिंदू भाइयों पर अंधाधुंध गोलीबारी ने फिर वहां गैर मुस्लिमों के वर्तमान और भविष्य को लेकर कई प्रश्न खड़े किए हैं। दोनों भाई अपने बाग में काम कर रहे थे कि आतंकवादियों ने उन पर हमला कर दिया, जिसमें सुनील कुमार चल बसे और पितांबर नाथ का शोपियां के जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है। ऐसा नहीं है कि इस बात की आशंका पहले नहीं थी।
ध्यान रखने की बात है कि 1990 के दशक में पलायन की पूरी परिस्थिति होते हुए भी इन कश्मीरी पंडित परिवारों ने वहीं रहने का निर्णय किया था। उस गांव में केवल तीन हिंदू परिवार हैं। यानी वे पलायन करने के बाद वापस आकर बसे नहीं हैं। जाहिर है, इन तीन दशकों से ज्यादा समय में इन परिवारों ने वहां बहुत कुछ झेला होगा। जिस कश्मीरी फ्रीडम फाइटर्स नामक आतंकवादी संगठन ने बयान जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है, उसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है। माना जा रहा है कि यह अन्य कई संगठनों के ही छद्म नाम हैं, जिनका उद्देश्य कश्मीर का संपूर्ण इस्लामीकरण तथा भारत से अलगाव है।
जिस तरह कश्मीर में घर-घर तिरंगा अभियान गांव-गांव तक पहुंचा, जगह-जगह तिरंगा यात्रा निकाली गई, यह सब अलगाववादियों, आतंकवादियों सहित सीमा पार के उनके प्रायोजकों के लिए सहन करना संभव नहीं है। तिरंगे का अर्थ भारत के प्रति लगाव और राष्ट्रवाद की भावना का संचार है। जम्मू-कश्मीर को हर हाल में भारत से अलग करने के षड्यंत्रों में लगी शक्तियों के लिए पहला सबसे बड़ा आघात पांच अगस्त, 2019 को लगा था, जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया गया। तब आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान की बौखलाहट स्पष्ट रूप से सामने आई थी। ऐसा लगा था जैसे पाकिस्तान के सामने अपने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है।
कश्मीर में आज यह स्थिति तो है नहीं कि पहले की तरह हुर्रियत नेता आह्वान करें और लोग सड़कों पर उतर जाएं या पत्थरबाजी हो। इसलिए आतंकवादी आसान निशाना ढूंढते हैं। लंबे समय से वहां रहने वाले हिंदू परिवार जीवन रक्षा को लेकर अवश्य ही थोड़ा निश्चिंत मानसिकता में जी रहे होंगे। उसमें उन पर गोलियां चलाना इनके लिए आसान था। इसी वर्ष देखें, तो यह गैर मुस्लिमों यानी कश्मीरी हिंदुओं पर सातवां हमला था।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) ने फिर पहले के जैसा ही बयान दिया है कि कश्मीर ऐसी जगह है, जहां पर्यटक सुरक्षित हैं, पर कश्मीरी हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। इसलिए कश्मीरी हिंदुओं को यहां से पलायन करना चाहिए। यह बात सही है कि केपीएसएस उन कश्मीरी हिंदुओं का संगठन है, जिन्होंने वहां आतंकवादी हिंसा के समय में भी पलायन नहीं किया था। तो क्या यही एकमात्र चारा है? क्या कश्मीरी हिंदुओं का पलायन उनकी सुरक्षा और कश्मीर की सुरक्षा की गारंटी है?
ध्यान रखिए, कि चोटीगाम में पिछले चार अप्रैल को दवा विक्रेता बालकृष्ण पर उसके घर के बाहर ही गोलियां बरसाई गई थीं, जिसमें गंभीर रूप से घायल हो गए थे। आतंकवादियों के लिए अब पहले की तरह बड़ी वारदात करना संभव नहीं रहा। अलगाववादियों के लिए पहले की तरह भारत विरोधी जुलूस निकालना असंभव है। पत्थरबाजी लगभग खत्म है। आतंकी हमलों की संख्या घटी है। बड़े हथियार और बारूदी सुरंगों के बड़े जाल कश्मीर में नहीं दिखते। तो यह सब बहुत बड़े बदलाव हैं।
यही नहीं, एक समय के दुर्दांत आतंकवादियों और अलगाववादियों बिट्टा कराटे, यासीन मलिक, मसर्रत आलम आदि को जेल में डाला जा चुका है। उन्हें अपने अपराधों की सजा मिलनी सुनिश्चित हो रही है। ऐसे नाजुक समय में यही कहा जा सकता है कि कश्मीरी पंडितों या अन्य संगठनों का दायित्व बनता है कि सरकार पर दबाव बनाते हुए भी वे उसका साथ दें एवं कश्मीर को आतंकवाद एवं अलगाववाद से मुक्ति के सहयोगी बने रहें।
सोर्स: अमर उजाला