दूसरी तरफ द्रमुक ने कोविड-19 से प्रभावित राशन कार्ड धारकों को चार हजार रुपये राहत देने, स्थानीय लोगों को नौकरी में 75 फीसदी आरक्षण देने, विभिन्न कर्जों की माफी और आध्यात्मिक यात्रा पर जाने के लिए अनुदान के प्रावधान की घोषणा की है। अम्मा उनवगम की तर्ज पर 500 कलाईंगर भोजनालयों की स्थापना की जाएगी। द्रमुक ने श्रमिकों के लिए रैन बसेरों का भी वादा किया है। मगर जहां तक द्रमुक की बात है, एम के स्टालिन के नेतृत्व में पार्टी के लिए 'करो या मरो' की स्थिति है, क्योंकि इस चुनाव में विफल होना उसे महंगा पड़ेगा। द्रमुक दस साल से सत्ता से बाहर है, इसलिए, स्टालिन के लिए सत्ता हासिल करने का यह आखिरी मौका हो सकता है, क्योंकि इस चुनाव में हारने पर पार्टी के भीतर परेशानी पैदा होगी। इसके अलावा द्रमुक की हार से अन्नाद्रमुक और मजबूत बनकर उभरेगी। इसलिए स्टालिन ने पार्टी के निवर्तमान
विधायकों पर भरोसा बनाए रखा है और उनमें से अधिकांश को फिर से पार्टी का टिकट दिया है।
जैसी की उम्मीद थी, स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन को इस बार चुनाव के मैदान में उतारा गया है। वह चेपक-ट्रिप्लिकेन निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, जो राजधानी चेन्नई में द्रमुक का गढ़ है। वर्ष 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव में द्रमुक के कद्दावर नेता जे अंबाझगन ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। यही नहीं, द्रमुक के संस्थापक और उदयनिधि के दादा करुणानिधि भी अतीत में तीन बार यहां से चुनाव जीते थे। द्रमुक ने अपने सहयोगियों को कम सीटों के लिए मना लिया है और सीट बंटवारे को सुचारू ढंग से पूरा किया है। कांग्रेस को 25 सीटें दी गईं, जबकि अन्य सहयोगी दलों को एक से छह के बीच सीटें दी गई हैं। दिलचस्प है कि वाइको की पार्टी एमडीएमके सहित कई गठबंधन सहयोगी द्रमुक के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ेंगे। द्रमुक कार्यकर्ता जीत के प्रति आश्वस्त हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अन्नाद्रमुक के अंदरूनी कलह के चलते दिनाकरन की पार्टी एएमएमके द्वारा वोटों के बंटवारे से द्रमुक को फायदा होगा।
दूसरी तरफ अन्नाद्रमुक तीसरी बार सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है, जो कि तमिलनाडु के हालिया इतिहास में कभी नहीं हुआ। हालांकि मुश्किलों के बावजूद पार्टी के नेता पार्टी को एकजुट रखने में कामयाब रहे हैं। आशंका थी कि शशिकला अन्नाद्रमुक के लिए परेशानी खड़ी करेंगी, पर उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है, जिससे अन्नाद्रमुक को फायदा होगा। अन्नाद्रमुक ने भी कई निवर्तमान विधायकों और मंत्रियों को मैदान में उतारा है। हालांकि अन्नाद्रमुक को कार्यकर्ताओं और वफादार वोट बैंक का समर्थन हासिल है, पर विश्लेषकों का मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के साथ गठबंधन करना उसको महंगा पड़ा था। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन में भाजपा को बीस सीटें दी गई हैं, इसलिए यह देखना होगा कि क्या अन्नाद्रमुक के लिए यह फैसला महंगा साबित होता है या नहीं। हालांकि भाजपा के प्रति सहानुभूति रखने वालों का मानना है कि भाजपा के साथ गठबंधन से अन्नाद्रमुक को अतिरिक्त फायदा होगा, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में तमिलनाडु में हिंदू वोट बैंक बढ़े हैं।
लेकिन अन्नाद्रमुक विजयकांत की पार्टी डीएमडीके के साथ लंबे समय तक बातचीत के बावजूद गठबंधन नहीं कर सकी। अब डीएमडीके ने दिनाकरन की पार्टी एएमएमके के साथ गठबंधन किया है। दिनाकरन के नेतृत्व में एएमएमके गठबंधन ने डीएमडीके को 60 सीटें दी हैं। ऐसी संभावना है कि एएमएमके और डीएमडीके के बीच गठबंधन से अन्नाद्रमुक के वोट बैंक पर बुरा असर पड़ेगा। इस बीच, पहली बार राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ रही कमल हासन की पार्टी एमएनएम अन्नाद्रमुक और द्रमुक, दोनों का खेल बिगाड़ सकती है। हालांकि एमएनएम सत्ता में तो नहीं आएगी, पर यह कुछ विधानसभा क्षेत्रों में अन्नाद्रमुक और द्रमुक की जीत-हार का फैसला कर सकती है। उम्मीद है कि उसके कुछ प्रत्याशी जीत भी सकते हैं। जहां तक राष्ट्रीय पार्टियों की बात है, कांग्रेस अपना पुनरुत्थान करना चाहती है, तो भाजपा तमिलनाडु विधानसभा में सफलता हासिल करना चाहती है। कांग्रेस ने अनुभवी और जाने-माने चेहरों को मैदान में उतारा है, जबकि भाजपा की उम्मीदवार सूची में प्रमुख नाम कम हैं और ज्यादातर नए लोग हैं, जिनमें अभिनेत्री खुशबू सुंदर और द्रमुक विधायक शरवनन को भी पार्टी ने टिकट दिया है।
इस बीच, चुनावी पंडितों ने भविष्यवाणी की है कि सरकार गठन के लिए किसी भी पार्टी के लिए पूर्ण बहुमत हासिल करना मुश्किल होगा और 2021 में पहली बार तमिलनाडु को गठबंधन सरकार मिल सकती है। कुल मिलाकर, आगामी चुनाव का परिणाम तमिलनाडु और वहां के राजनीतिक दलों का भविष्य न केवल पांच वर्षों के लिए, बल्कि उससे ज्यादा समय तक के लिए तय करेगा।