खेती की बात : एमएसपी वाली फसलें अब मुख्यधारा में नहीं, किसानों की आमदनी बढ़ाने की हकीकत

कृषि क्षेत्र की संरचना में नाटकीय बदलाव हो रहे हैं। इन बदलावों का विश्लेषण और उपयुक्त नीतिगत ढांचा तैयार

Update: 2022-04-14 05:45 GMT
टीवी मोहनदास पाई निशा होला।
कृषि क्षेत्र की संरचना में नाटकीय बदलाव हो रहे हैं। इन बदलावों का विश्लेषण और उपयुक्त नीतिगत ढांचा तैयार करने से यह क्षेत्र तेजी से विकसित होगा और देश भर के लाखों किसानों की आजीविका में सुधार होगा। कृषि क्षेत्र का सकल मूल्य उत्पादन (जीवीओ) वित्त वर्ष 2012 में 19 लाख करोड़ रुपये था, जो दस फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक दर (सीएजीआर) से करीब दोगुना होकर वित्त वर्ष 2019 में 37.2 लाख करोड़ रुपये हो गया। हालांकि विभिन्न उपक्षेत्रों की वृद्धि में व्यापक अंतर है।
इसी अवधि में जहां फसलों के जीवीओ में 6.3 फीसदी की सीएजीआर के साथ 8.1 लाख करोड़ रुपये से 12.5 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई, वहीं अन्य उप-क्षेत्र इससे तेजी से बढ़ रहे हैं। विभिन्न कृषि उप-क्षेत्रों के जीवीओ और विकास दर के अध्ययन से पता चलता है कि कृषि क्षेत्र की संरचना में फसलों की हिस्सेदारी लगातार घट रही है। वित्त वर्ष 2012 में, फसलों का जीवीओ 8.2 लाख करोड़ रुपये था, जो कि कृषि क्षेत्र के कुल जीवीओ का 43 फीसदी था। वित्त वर्ष 2019 में यह 10 प्रतिशत घटकर 33.8 फीसदी हो गया है।
फलों और सब्जियों के 11.2 फीसदी, मसालों के 13 फीसदी, पशुधन के 13 फीसदी और मत्स्यपालन और एक्वाकल्चर के 17.6 फीसदी जैसे प्रमुख समूहों के सीएजीआर की तुलना में फसलों का सीएजीआर सबसे कम है यानी 6.3 फीसदी। अगर वृद्धि दर में यह अंतर जारी रहता है, तो वित्त वर्ष 2025 तक कृषि क्षेत्र में फसलों की हिस्सेदारी घटकर 27.5 फीसदी रह जाएगी। वित्त वर्ष 2019 में पशुधन उप-क्षेत्र का जीवीओ लगभग फसलों के बराबर ही 11.5 लाख करोड़ रुपये का है, जबकि फसलों की तुलना में यह दोगुना तेजी से यानी 13 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।
इस दर से पशुधन जीवीओ वित्त वर्ष 2025 में 23.9 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है, जो फसलों से ज्यादा होगा। फलों और सब्जियों का क्षेत्र काफी बड़ा है, वित्त वर्ष 2019 में इसका जीवीओ छह लाख करोड़ रुपये था और यह 11 फीसदी सीएजीआर की तेजी से बढ़ रहा है। अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 तक इस क्षेत्र का जीवीओ 11 लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा। मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर सबसे तेजी से 17.6 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं और वित्त वर्ष 2025 तक इसके छह लाख करोड़ रुपये को पार करने का अनुमान है।
ये रुझान भारतीयों की भोजन की आदतों में बदलाव का संकेत देते हैं, और यह भी बताते हैं कि किसानों की आय का एक बड़ा हिस्सा गैर-फसल उप-क्षेत्रों से आ रहा है। ये गैर-फसल उप-क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे हैं, वित्त वर्ष 2019 में कृषि में इस क्षेत्र की 66.2 फीसदी हिस्सेदारी थी, और इनके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं है। बताया जाता है कि इन उपक्षेत्रों के किसान अंतिम मूल्य का केवल 30-35 फीसदी ही अर्जित करते हैं। यहां बाजार संपर्क को सुगम बनाकर किसानों की आय बढ़ाने के लिए नीतिगत उपायों की गुंजाइश बहुत ज्यादा है।
अनाज उत्पादन 8.2 फीसदी सीएजीआर की दर से बढ़ रहा है, वित्त वर्ष 2019 में 5.86 लाख करोड़ रुपये जीवीओ के साथ यह सबसे बड़ा खंड है और इसमें 12.6 लाख करोड़ रुपये के जीवीओ के साथ संपूर्ण फसल समूह का लगभग आधा हिस्सा शामिल है। अनाज सहित अधिकांश फसलों के लिए एमएसपी है, जो किसानों को न्यूनतम आय की गारंटी देता है। किसानों को कथित तौर पर एमएसपी के कारण कुल मूल्य का 80-85 फीसदी प्राप्त होता है, जो अंतिम बाजार मूल्य के करीब होता है। स्पष्ट रूप से फसलें कृषि क्षेत्र का एक छोटा खंड बनती जा रही हैं।
भारत में कुल कृषि क्षेत्र का जीवीओ सात साल में 10 फीसदी सीएजीआर के साथ बढ़ा, जबकि फसलों में सीएजीआर दर 6.3 फीसदी रही और गैर-फसल क्षेत्रों में 12.4 फीसदी की संयुक्त सीएजीआर दर से वृद्धि हुई, जो कि फसलों की तुलना में दोगुना है। कृषि क्षेत्र की संरचना में इस नाटकीय परिवर्तन के लिए एक व्यापक नीतिगत प्रतिक्रिया की आवश्यकता है, जो कृषि क्षेत्र को सिर्फ फसलों तक सीमित न करके आगे विकास की अनुमति दे। इसके लिए बागवानी और पशुधन पर अधिक निवेश और ध्यान देने की जरूरत है।
अंतिम कीमत में किसानों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए बाजार संपर्क में सुधार होना चाहिए। कृषि-तकनीक स्टार्टअप के माध्यम से किसानों और अन्य कृषि उत्पादकों के बीच बाजारों के साथ बेहतर जुड़ाव की सुविधा तेजी से बढ़ते क्षेत्रों को तेजी से आय और मूल्यवर्धन में सक्षम बनाएगी। इन प्लेटफार्मों में रीयल-टाइम मार्केट इंटेलिजेंस, मूल्य पूर्वानुमान, फसल तैयारी के बाद हस्तक्षेप और भंडारण क्षमताएं, सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंच का प्रस्ताव, प्रतिस्पर्धी वित्तपोषण और बीमा शामिल हैं।
इनके उपयोग से किसानों को 20 से 25 फीसदी अधिक आय, सीओडी और यूपीआई के जरिये त्वरित भुगतान, फसल की कम बर्बादी और अन्य महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हुए। विभिन्न राज्यों में कृषि की संरचना का पता लगाने के लिए कृषि क्षेत्रों का अध्ययन आवश्यक है। प्रत्येक राज्य में किसानों की आजीविका में सुधार के लिए एक राज्य-विशिष्ट रणनीति लागू की जानी चाहिए। जैसे, पंजाब में फसल उगाने वाले किसानों की संख्या अधिक है। दूसरी तरफ, कर्नाटक में कृषि जीवीओ में फसलों का हिस्सा 34 फीसदी है। भारत को निर्यातोन्मुखी रणनीति की जरूरत है। इससे हमारे कृषि क्षेत्र को निर्यात की ओर उन्मुख करने के साथ किसानों को विश्व बाजार पर कब्जा करने का अवसर मिलेगा।
आज भारत से लगभग 50 अरब डॉलर का कृषि निर्यात होता है। भारत को वैश्विक बाजारों में फलों, सब्जियों और अन्य उत्पादों के लिए एक ब्रांड बनाना चाहिए और आवश्यक आपूर्ति शृंखलाएं बनानी चाहिए। आज हमारे देश में एमएसपी पर ज्यादा जोर है, जबकि एमएसपी वाली फसलों का जीवीओ कम है (धान और गेहूं की जीवीओ में हिस्सेदारी 16 फीसदी से भी कम है), जिससे किसान तेज विकास के लिए उपलब्ध कई अवसरों से वंचित रह जाते हैं। उचित नीतिगत कदम उठाकर भारत इस क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, किसानों को राष्ट्रीय औसत के करीब आय पाने में सक्षम बना सकता है, और मूल्य को अधिकतम करने के लिए अलग रणनीतियों को आगे बढ़ा सकता है। (-मोहनदास पई एरियन कैपिटल के चेयरमैन और निशा होला सी-कैम्प की टेक्नोलॉजी फेलो हैं।)
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