तालिबानी हठ

समावेशी सरकार बनाने की पाकिस्तानी सलाह को भी उसने एक तरह से ठुकरा दिया है।

Update: 2021-09-22 16:56 GMT

पाकिस्तान के तालिबानी हठ के कारण दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की इस सप्ताह न्यूयॉर्क में प्रस्तावित विदेश मंत्रियों की बैठक रद्द कर दी गई है। पाकिस्तान बैठक में तालिबानी प्रतिनिधि को शामिल करने पर जोर दे रहा था। काबुल में तालिबान द्वारा बनाई गई अंतरिम सरकार को किसी भी देश द्वारा औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी गई है और पाकिस्तान हर मुमकिन कोशिश में लगा है कि तालिबान को मान्यता मिल जाए। अगर सार्क की प्रस्तावित बैठक में तालिबान के प्रतिनिधि को शामिल कर लिया जाता, तो जाहिर है, इससे सार्क को भले ही कोई लाभ नहीं होता, लेकिन यह तालिबान और पाकिस्तान की कामयाबी में दर्ज हो जाता। पाकिस्तान को कतई इस बात की चिंता नहीं है कि सार्क देशों की किसी भी स्तर पर बैठक कितनी जरूरी है, उसे केवल अपने निहित स्वार्थ से मतलब है और तालिबान ने किसी भी तरह का लचीलापन दिखाने से इनकार कर दिया है। समावेशी सरकार बनाने की पाकिस्तानी सलाह को भी उसने एक तरह से ठुकरा दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में तालिबान की वैधता पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि वह समावेशी नहीं है। इसके बाद यह साफ हो गया था कि गैर-लचीले तालिबान के लिए विश्व मंचों पर राह आसान नहीं है। जब संयुक्त राष्ट्र में ही ज्यादातर देश तालिबान को वैधता देना नहीं चाहते, तो सार्क में उसे कैसे वैधता दी जाए? तालिबान को तो सब कुछ चालाकी और बल के जोर पर हासिल हुआ है, तो उसे कोई परवाह नहीं है, लेकिन कम से कम पाकिस्तान को अपने भले-बुरे का विचार करना चाहिए। आज अगर सार्क उपयोगी या सक्रिय रहता, तो पाकिस्तान को ही सर्वाधिक लाभ होता। खुद पाकिस्तान अलग-थलग पड़ता जा रहा है। तालिबानी सोच से अत्यधिक लगाव के चलते वह असुरक्षित होता जा रहा है। पहले न्यूजीलैंड और फिर इंग्लैंड की क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान का दौरा रद्द कर दिया है। पाकिस्तान को स्वयं अपने यहां सुरक्षा और सद्भाव का माहौल बनाना चाहिए, वरना तालिबान के साथ खुद उसकी विश्वसनीयता भी छीजती चली जाएगी।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका को एक साथ लाने वाला समूह अपने 19वें वार्षिक शिखर सम्मेलन के बाद से मरणासन्न ही रहा है। पाकिस्तान के व्यवहार ने सार्क को बाधित किया है। यह संगठन भारत या किसी अन्य देश के वर्चस्व या मनमानी के आधार पर नहीं, बल्कि आम सहमति के सिद्धांत पर काम करता है। दक्षेस सचिवालय द्वारा आठ देशों के विदेश मंत्रालयों को संदेश मिला है कि 25 सितंबर को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में सभी सदस्य राष्ट्रों में सहमति की कमी के कारण बैठक नहीं होगी। सर्वज्ञात है कि सार्क या दक्षेस का इस्तेमाल पाकिस्तान हमेशा भारत के खिलाफ विवादित विषय उठाने के लिए करता रहा है। भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव न्यूयॉर्क में सार्क के विदेश मंत्रियों की बैठकों में पहले भी परिलक्षित हुआ है। साल 2019 में पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे में बदलाव के विरोध में दक्षेस बैठक में अपने भारतीय समकक्ष के भाषण का बहिष्कार किया था। खैर, इस बार बैठक को पहले ही रद्द करने से पाकिस्तान को झटका लगा है, लेकिन क्या वह सकारात्मक दृष्टि से विचार करेगा?
क्रेडिट बाय लाइव हिंदुस्तान 
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