अफगानिस्तान में तालिबान: कैसे महफूज होगा बचपन? कितनी खुशहाल होगी बच्चों की जिंदगी
युद्ध को हमेशा से ही मानवजाति ही नहीं बल्कि पूरी प्रकृति के लिए विनाशक मानक जाता है
डॉ. अंजलि दीक्षित। युद्ध को हमेशा से ही मानवजाति ही नहीं बल्कि पूरी प्रकृति के लिए विनाशक मानक जाता है। किन्तु 'बच्चे और सशस्त्र संघर्ष' के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि अफ़ग़ानिस्तान में पिछले दो वर्षों के दौरान, हज़ारों लड़के-लड़कियां हताहत हुए हैं।
दरअसल, बच्चे भविष्य होते हैं। उनकी परवरिश से तय होता है कि वो देश को कैसे रचते हैं, उसे कैसे सुंदर बनाते हैं। कला, साइंस, मेडिकल, इंजीनियरिंग में जाने का रुझान प्राथमिक शिक्षा से बनता है, लेकिन अगर कोरे कागज जैसे इन्हीं बच्चों के हाथ में बंदूक थमा दी जाए तो यह कल्पना करना मुश्किल नहीं कि वो क्या बनेंगे?
अफगानिस्तान पर कब्जा करने की कहानी के पीछे तालिबान के सैन्य लड़ाकों की बड़ी भूमिका है। तालिबान ने इन लड़ाकों को जरूरी शिक्षा के बजाए जंग के मैदान में लड़ने की तालीम देकर तैयार किया है। इसकी तस्दीक ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) की रिपोर्ट भी करती है। इस मानवाधिकार संगठन का दावा है कि अफगानिस्तातान में तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों को धता बताते हुए बच्चों को अपनी सेना में शामिल किया है। आतंकी गुट बड़ी संख्या में बच्चों को अपनी सेना में शामिल कर लिया है।
अफगानिस्तान में बच्चों की बदहाली सामने लाती रिपोर्ट
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिसर्च बताती है कि तालिबान बच्चों को इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) यानी विस्फोटक तैयार करने और उसे लगाने सहित तमाम यानी विस्फोटक तैयार करने और उसे लगाने सहित तमाम सैन्य अभियानों के लिए ट्रेनिंग देकर तैनात करता रहा है।
अफगानिस्तान के कुंदुज़ प्रांत में तालिबान ने 13 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों को सैन्य प्रशिक्षण देने के लिए मदरसों या इस्लामी धार्मिक स्कूलों का इस्तेमाल किया है। इनमें से कई को जंग के मैदान में तैनात कर दिया जाता है।
तालिबान खास उम्र के बच्चों को भर्ती करते और उन्हें ट्रेनिंग देते हैं। लड़कों को छह साल की उम्र से ही शिक्षा देना शुरू कर दिया जाता है, और ये बच्चे सात साल तक तालिबान शिक्षकों के अधीन धार्मिक विषयों का अध्ययन जारी रखते हैं।
तालिबान द्वारा भर्ती किए गए लड़कों के रिश्तेदारों के अनुसार, जब वे 13 वर्ष के के होते हैं, तब तक तालिबान प्रशिक्षित बच्चे सैन्य कौशल सीख चुके होते हैं, जिसमें हथियारों का इस्तेमाल, विस्फोटक बनाना, लगाना शामिल है।
क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय कानून?
अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून, या युद्ध के कानून, जंग के लिए 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की भर्ती या उपयोग पर रोक लगाते हैं। "पंद्रह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सशस्त्र बलों या समूहों में भर्ती करना अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) के रोम संविधि के तहत एक युद्ध अपराध है। यह अफगानिस्तान पर भी लागू होता है, जो लोग युद्ध अपराधों के लिए प्रतिबद्ध हैं, इस किस्म का आदेश देते हैं, सहायता करते हैं, या कमान की जिम्मेदारी संभालते हैं उन पर आईसीसी या राष्ट्रीय अदालतों में मुकदमा चलाया जा सकता है।
सशस्त्र संघर्ष में बच्चों की भागीदारी पर बाल अधिकारों पर कन्वेंशन के लिए वैकल्पिक प्रोटोकॉल है, जिसे अफगानिस्तान ने 2003 में स्वीकार किया था। इसमें कहा गया है कि गैर-राज्य सशस्त्र समूह किसी भी परिस्थिति में लोगों की भर्ती नहीं कर सकते हैं। 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। यह वैकल्पिक प्रोटोकॉल सरकारों पर भी लागू होता। सैन्य बलों का भी दायित्व है कि वे बच्चों को विशेष सम्मान और ध्यान दें।
वर्तमान में अफगानिस्तान में बच्चों की स्थति बहुत ख़राब होने वाली है। यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा एच। फोर कहती हैं-
"आज, अफगानिस्तान में लगभग 10 मिलियन (एक करोड़) बच्चों को जीवित रहने के लिए मानवीय सहायता की आवश्यकता है। इस साल अनुमानित 10 लाख बच्चों के गंभीर तीव्र कुपोषण से पीड़ित होने का अनुमान है और बिना इलाज के उनकी मृत्यु हो सकती है।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक का ये बयान काफी ज्यादा चिंता पैदा कर रहा है। तालिबान के कब्जे के बाद सिर्फ एक हफ्ते में ही लाखों बच्चे खतरे की रेखा के नीचे आ गए हैं। अफगानिस्तान में इस वक्त स्थिति ये है कि एटीएम पूरी तरह से खाली हो चुके हैं, लोगों के खाने पर लाले पड़ गए हैं, सरकार और प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं हैं। हजारों सरकारी अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए छिपे हुए हैं तो हजारों अधिकारी फरार हो चुके हैं।
आंकड़े और रिपोर्ट्स के बीच भी एक सच है
यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 42 लाख बच्चे स्कूल से बाहर हो चुके हैं, जिनमें 22 लाख लड़कियां हैं। वहीं, यूनाइटेड नेशंस ने अपनी रिपोर्ट में कहता है-
इस साल जनवरी महीने से अफगानिस्तान में 2 हजार से ज्यादा बच्चों के साथ गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन हुए हैं और ये वो मामले हैं, जो रिकॉर्ड में आए है। वहीं यूनाइटेड नेशंस ने कहा है कि करीब 4 लाख 35 हजार बच्चों के विस्थापित होने का रिकॉर्ड दर्ज किया गया है।
यूनाइटेड नेशंस की एजेंसी यूनिसेफ कहती है-
आने वाले वक्त में अफगानिस्तान में बच्चों की स्थिति काफी ज्यादा दयनीय होने वाली है और बच्चों को काफी ज्यादा मानवीय सहायता की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि, राजनीतिक परिवर्तन की वजह से बच्चों के सामने विनाशकारी परिणाम सामने आने वाले हैं, बच्चियों की स्थिति तो नर्क के समान होने वाली है और कोविड-19 महामारी का अलग विनाशकारी लहर चलेगा। किन्तु अब अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आइसीसी) ने यहां युद्ध अपराधों की जांच शुरू कर दी है। इन मामलों में वे तालिबानी कंमाडर भी दोषी माने जाएंगे, जिनके नेतृत्व में निर्दोष लोगों पर अत्याचार हो रहा है।
यद्दपि तालिबान ने घोषणा की है की वह 'इस्लामिक अमीरात ओफ़ अफगानिस्तान' का गठन करेगा ओर अपने हर नागरिक की भलाई के लिए काम करेगा, परन्तु इस बात पर कितना भरोसा किया जाएगा इस पर एक प्रश्न चिन्ह है। फ़िलहाल तो विश्व को अभी भी इन बच्चों के प्रति संवेदनशील होना होगा नहीं तो, पूरा विश्व ऐसे ही नए तालिबान हर देश में बनते देखेगा।
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