जनता से रिश्ता वेबडेसक | दुनिया में कोरोना टीके के प्रति बढ़ता विश्वास सुखद और स्वागतयोग्य है। बाजार-अनुसंधान कंपनी यूगोव के साथ मिलकर इंपीरियल कॉलेज, लंदन ने एक उपयोगी सर्वेक्षण किया है, जिसके नतीजे कोरोना टीके की पैरोकारी कर रहे हैं। दुनिया के अनेक इलाकों में टीके के प्रति समर्थन पिछले महीनों में बढ़ा है। इंपीरियल कॉलेज, लंदन की व्यवहार वैज्ञानिक सारा जोन्स कहती हैं, 'पहली बार जब महामारी शुरू हुई, तब से मैं समझ सकती हूं कि वैक्सीन के प्रति आशावाद कोरोना वायरस की तुलना में अधिक तेजी से फैल रहा है।' यह सर्वेक्षण दुनिया के 15 देशों में नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच चला है। यूरोप, एशिया व ऑस्ट्रेलिया में लगभग 13,500 लोगों ने इसमें अपना मत जाहिर किया है। नवंबर में जब कुछ देशों में वैक्सीन को मंजूरी मिलने की प्रक्रिया शुरू हुई थी, तब सिर्फ 40 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा था कि उन्हें सप्ताह भर के अंदर कोविड का टीका दिया जाए, तो वे जरूर लेंगे। आधे से ज्यादा लोग टीके के साइड इफेक्ट को लेकर चिंतित थे। दुनिया के अनेक देशों में टीकाकरण अभियान जब आगे बढ़ा, तब जनवरी में आधे से अधिक उत्तरदाता वैक्सीन लेने के लिए तैयार नजर आए। जिन लोगों ने नवंबर में यह कहा था कि वे टीके के दुष्प्रभावों के बारे में चिंतित हैं, उनका अनुपात घटकर अब 47 प्रतिशत हो गया।
सर्वेक्षण का यह इशारा है कि ब्रिटेन एक ऐसा देश है, जहां सबसे अधिक 78 प्रतिशत लोग टीका लेना चाहते हैं। कुछ देशों में टीका लेने के इच्छुक लोगों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, स्पेन में टीका लेने के इच्छुक उत्तरदाताओं का अनुपात नवंबर 2020 में 28 प्रतिशत से बढ़कर जनवरी मध्य तक 52 प्रतिशत हो गया है। यद्यपि वैश्विक स्तर पर स्थिति तेजी से सकारात्मक होती दिख रही है, लेकिन कुछ विकसित देशों के परिणाम चिंता भी जगाते हैं। विकसित देश फ्रांस में 44 प्रतिशत लोग अभी भी टीके के लिए तैयार नहीं हैं। यही नहीं, तकनीक के मामले में मिसाल जापान के लोगों से जब पूछा गया कि वे टीके पर कितना भरोसा करते हैं, तब जापान में 66 प्रतिशत उत्तरदाताओं का जवाब था कि वे थोड़ा या बिल्कुल भरोसा नहीं करते। खैर, टीके पर अविश्वास का अपना एक इतिहास रहा है, जो कहीं न कहीं कोरोना के मामले में भी आडे़ आ रहा है। बेशक, दुनिया के अनेक ऐसे हिस्से होंगे, जहां कोरोना संक्रमण खतरनाक या चिंताजनक स्तर तक नहीं पहुंचा होगा, वहां वाकई टीकाकरण में मुश्किल आएगी। जाहिर है, यह सर्वेक्षण मात्र एक इशारा है। इसे पूरी दुनिया के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता। निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में आने वाले दिनों में सर्वेक्षण करना चाहिए। महज चंद विकसित देशों के आंकड़ों से पूरा परिदृश्य स्पष्ट नहीं हो सकता। अभी कोरोना टीके का पूरा प्रभाव सामने नहीं आया है, जब उसकी सफलता के आंकडे़ आगामी महीनों में आने लगेंगे, तब टीका लेने के लिए तैयार लोगों की संख्या भी बढे़गी। जो टीके बने हैं, उनमें भी गुणवत्ता वृद्धि की गति बनी रहनी चाहिए। भारत जैसे देश में भी कोरोना टीके के नतीजे का सामने आना जरूरी है। भारत अब टीके की दूसरी खुराक के दौर में पहुंच गया है। दूसरी खुराक के बाद के आंकड़ों को सामने रखा जाना चाहिए, तभी टीके का वास्तविक असर और भविष्य का पता चलेगा।