By: divyahimachal
कठिन डगर पर सुक्खू सरकार की परीक्षा कम से कम राहत कार्यों की दृष्टि से प्रशंसनीय मुकाम तक पहुंच गई। बाढ़ के तांडव में सत्तर हजार लोगों का बचाव कार्य अपनी दुरुहता के बीच हतोत्साहित करने का मंजर पैदा कर चुका था, लेकिन बादलों के बीच बचाव के झरोखे निकाल कर मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने मानवता की जरूरत और प्रशासनिक क्षमता की अपनी शक्ति का भरपूर प्रदर्शन किया। यह ऐसा अनूठा आपदा प्रबंधन है जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री ने आपदाग्रस्त क्षेत्रों के तकलीफदेह माहौल में किया। मानो राजधानी बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों की निगरानी में शिमला से निकल कर मंडी, कुल्लू, लाहुल-स्पीति व किन्नौर में घूम रही हो। चंद घंटों में बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों से साठ हजार के करीब लोगों एवं पर्यटकों को मुसीबत से निकालकर, फिर से जिंदगी के सफर से जोड़ देना पूरे देश के लिए नजीर बनेगा। यह इसलिए भी कि जहां सारी उपलब्धियां, क्षमताएं व शक्तियां डूब रही हों, वहां मुख्यमंत्री का साहसिक अंदाज पूरे प्रदेश का मनोबल सशक्त कर रहा था तथा तैयारियों से कहीं आगे नेतृत्व कर रहा था।
लाहुल के चंद्रताल से और बातल में बर्फ में फंसे करीब 255 पर्यटकों को सडक़ मार्ग से लोसर पहुंचाना, तो किसी फिल्म के निर्देशन की तरह इतिहास की एक यादगार घटना बन गया। खास बात यह कि मुख्यमंत्री ने बचाव के राज्य स्तरीय खाके में न केवल सरकारी मशीनरी को अहम बनाया, बल्कि सरकार के हर ओहदे को पे्ररणादायक भी बनाया। यहां जिक्र खास तौर पर 65 वर्षीय बागबानी मंत्री जगत सिंह नेगी तथा मुख्य संसदीय सचिव संजय अवस्थी का होगा, जिन्होंने सरकार के आदर्शों में ग्राउंड जीरो से सारा बचाव कार्य चलाया। यह बड़ी शिद्दत से हुआ रेस्क्यू आपरेशन है, जिसने प्रदेश की छवि, मौसम की बेरुखी और पर्यटकों की निराशा के घोर बादलों को छांटते हुए इतिहास रचा। हिमाचल में मौसम के बिगड़े मिजाज में फंसे कई पर्यटक भले ही तौबा कर लें, लेकिन यह एहसास लेकर लौट जरूर रहे हैं कि बचाव के हर कदम पर प्रदेश सरकार का मरहम राहत देता रहा। सरकारों की पहचान संकट की घड़ी में और निर्णायक भूमिका में होती और यह दक्षता सिद्ध करके सुखविंदर सुक्खू ने न केवल राज्य की योग्यता बढ़ाई, बल्कि सरकार का परचम भी फहराया। मौसम ने जिस हिमाचल को असहाय बनाकर फंसा दिया था, उससे मुक्त होने की मुद्रा परिलक्षित हुई है, तो यह कारनामा प्रदेश के आत्मबल को सुदृढ़ करता है।
बावजूद इसके कि सरकार ने मानवीय आधार पर लोगों को सुरक्षित बचाने में काफी हद तक सफलता हासिल कर ली, अब घावों को भरने के लिए केंद्र की उदारता की प्रतीक्षा बढ़ रही है। खुशी की बात यह है कि केंद्र से वित्तीय मदद के रूप में 180.40 करोड़ की पहली किस्त जारी हो गई है। एक अनुमान के अनुसार अब तक की बारिश ने ही करीब दस हजार करोड़ के घाव प्रदेश को दिए हैं। साधन विहीन राज्य के लिए यह नुकसान इसके बूते और सामथ्र्य से बाहर है। ऐसे में केंद्र से तुरंत एक बड़ा बाढ़ राहत पैकेज मिलना चाहिए ताकि जनजीवन तीव्रता से सामान्य हो सके तथा ये घाव धीरे-धीरे भरने शुरू हो जाएं। खतरा यह है कि मानसून की शुरुआती चोट ने ही प्रगति, कनेक्टिविटी तथा जनजीवन को नाकाबिल बनाने की हद पार की है, तो बरसात के अगले दौर का सतर्कता के साथ मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय नीति चाहिए। हिमाचल के कहर को राष्ट्रीय आपदा घोषित करके ही पर्वतीय परिवेश को न्याय मिलेगा। इसलिए संसद में भाजपा के तमाम सांसदों विशेष तौर पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर से गुजारिश है कि वे राहत का विशेष पैकेज प्रदेश को दिलाएं। यहां नेता प्रतिपक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की भी प्रशंसा की जानी चाहिए, क्योंकि वह भी राहत के मोर्चे पर जनसंवेदना को स्पर्श करते हुए, केंद्र को प्रादेशिक नुकसान का हाल बता रहे हैं।