खुदकुशी की दर

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े चिंता पैदा करने वाले हैं। कोरोना काल में दिहाड़ी मजदूरों, कारोबारियों, किसानों आदि की खुदकुशी की दर में अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज हुई।

Update: 2021-11-01 00:47 GMT

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े चिंता पैदा करने वाले हैं। कोरोना काल में दिहाड़ी मजदूरों, कारोबारियों, किसानों आदि की खुदकुशी की दर में अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज हुई। दिहाड़ी मजदूरों ने सबसे अधिक 24.6 प्रतिशत खुदकुशी की। उसके बाद दूसरे स्थान पर घरेलू महिलाओं और तीसरे स्थान पर कारोबारियों की खुदकुशी के आंकड़े दर्ज हुए। इसकी कुछ वजहें स्पष्ट हैं। कोरोना काल में लंबे समय तक काम-धंधे बंद रहे, जिसकी वजह से लाखों की संख्या में दिहाड़ी मजदूरों के सामने जीविकोपार्जन का संकट खड़ा हो गया।

पहली लहर के दौरान जब बंदी घोषित हुई तो तमाम महानगरों और औद्योगिक शहरों से दिहाड़ी मजदूरों, कल-कारखानों में कच्चे-पक्के काम करने वालों और रेहड़ी-पटरी पर कारोबार करने वाले जत्थे में अपने पैतृक स्थानों की ओर लौटते देखे गए। हालांकि सरकारों ने अपील की थी कि किसी को भी पलायन करने की जरूरत नहीं, उनके भोजन का प्रबंध किया जाएगा, मगर उसका बहुत असर उन पर नहीं पड़ा था। कामकाज छिन जाने की वजह से ऐसे बहुत सारे लोगों ने मौत को गले लगा लिया। इसी तरह अनेक छोटे कारोबारियों के काम-धंधे बंद हो गए। उन पर पहले ही कर्ज का बोझ अधिक था, बंदी की वजह से काम बंद हुआ तो कमाई भी बंद हो गई। कर्ज चुकाना, परिवार का खर्च, बच्चों की फीस आदि का प्रबंध करना बहुतों के लिए मुश्किल काम हो गया। ऐसे में उन्होंने अपना जीवन समाप्त कर लेना बेहतर विकल्प समझा।
महिलाओं के मामले में दो तरह के तथ्य उजागर हुए। कई महिलाएं कोरोना काल में पतियों की नौकरी चली जाने, काम-धंधे बंद हो जाने, कमाई न हो पाने की वजह से घर का खर्च, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई आदि का तनाव नहीं झेल पार्इं। दूसरे, कई महिलाओं को बंदी के दौरान अपने पतियों से प्रताड़नी झेलनी पड़ी थी, जिसे वे सहन नहीं कर पार्इं। किसानों की आत्महत्या के मामले में भी उन पर कर्ज का बोझ बड़ी वजह था। हालांकि किसान पहले भी इस वजह से खुदकुशी करते आ रहे थे, मगर कोरोना काल में कर्ज न चुका पाने के अलावा फसलों की बिक्री आदि प्रभावित होने की वजह से भी उनका मानसिक तनाव बढ़ा। महाराष्ट्र में नगदी फसल बोने वाले किसानों की खुदकुशी के आंकड़े सालों से चिंता का विषय बने हुए हैं, मगर कोरोना काल में इस दर में बढ़ोतरी ने इस चिंता को और बढ़ा दिया।
वजहें जो हों, पर एक कल्याणकारी शासन-व्यवस्था में किसी भी रूप में अगर इतने बड़े पैमाने पर नागरिक खुदकुशी को विवश होते हैं, तो स्वाभविक ही सरकार और व्यवस्था पर सवाल उठेंगे। कोरोना काल में लोगों के सामने खड़े हुए आर्थिक संकट की वजह से लाखों लोगों के सामने दो जून के भोजन का सवाल पैदा कर दिया। जो निजी कंपनियों में काम करते थे, उनकी तनख्वाहें कम हो गर्इं या उनमें से बहुतों को हटा दिया गया, छोटे-मोटे रोजगार वाले अब तक पैरों पर खड़े होने की ताकत नहीं बटोर पाए हैं। इसके बरक्स सरकारी नौकरी करने वालों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। बहुत सारे विभागों, संस्थानों में काम करने वाले लोगों को महीनों से वेतन नहीं मिल पा रहा। ऐसे में अर्थव्यवस्था के धीरे-धीरे पटरी पर लौटने के दावे बहुत भरोसा नहीं पैदा कर पा रहे। फिर सरकार की तरफ से कोई ऐसी कारगर योजना भी बनती नहीं दिख रही, जिससे लोगों को आर्थिक तंगी की वजह से खुदकुशी को विवश होने से रोका जा सके।

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