टू फिंगर टेस्ट तत्काल रुके

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर रेप सरवाइवर्स का टू फिंगर टेस्ट किए जाने पर सख्त एतराज करते हुए कहा कि ऐसा करने वालों को कदाचार का दोषी माना जाएगा। हैरत की बात है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार रोके जाने के बावजूद देश में यह प्रचलन बना हुआ है।

Update: 2022-11-02 06:04 GMT

नवभारतटाइम्स: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर रेप सरवाइवर्स का टू फिंगर टेस्ट किए जाने पर सख्त एतराज करते हुए कहा कि ऐसा करने वालों को कदाचार का दोषी माना जाएगा। हैरत की बात है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार रोके जाने के बावजूद देश में यह प्रचलन बना हुआ है। टू फिंगर टेस्ट में महिला के प्राइवेट पार्ट में दो उंगलियां डालकर देखा जाता है कि कहीं वह यौन संबंधों की आदी तो नहीं। लेकिन यह तरीका न केवल अवैज्ञानिक और अनावश्यक है बल्कि महिला की निजता और गरिमा का भी हनन करता है।

साल 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कह दिया था कि टू फिंगर टेस्ट रेप सरवाइवर महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है। इसके बाद 2013 में ही यौन अपराध कानूनों में संशोधन हुआ, जिसमें एक तरफ रेप का दायरा बढ़ाते हुए पुरुष जननांगों के अतिरिक्त पेनिट्रेशन के अन्य तरीकों को संज्ञान में लिया गया तो दूसरी तरफ यह भी साफ किया गया कि सहमति के सवाल पर विचार करते हुए महिला के यौन व्यवहार की पृष्ठभूमि कोई मायने नहीं रखती। 2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी विस्तृत गाइडलाइन जारी करते हुए कहा था कि टू फिंगर टेस्ट नहीं होना चाहिए क्योंकि यौन हिंसा के मामलों में इसका कोई मतलब नहीं बनता। बावजूद इन सबके, देश में यह न केवल जारी है बल्कि कानूनी प्रक्रिया में भी इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है।

स्वाभाविक ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर गहरी नाराजगी जताते हुए संबंधित लोगों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके बाद यह टेस्ट बंद हो जाएगा। असल में इस प्रचलन के जारी रहने के पीछे कोई एक नहीं बल्कि कई तरह के कारकों की मिली-जुली भूमिका हो सकती है। एक तो भारत जैसे बड़े देश में गांवों कस्बों के स्तर तक फैले डॉक्टरों का एक वर्ग सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से अनजान रह जाए यह असंभव नहीं। दूसरी बात मेडिकल कॉलेजों से यह तरीका सीखकर निकले डॉक्टरों के लिए यह स्वाभाविक नहीं कि वे बरसों से अपनाए जा रहे इस उपाय को फील्ड से बाहर के लोगों के कहने पर तत्काल छोड़ दें। तीसरी बात यह कि पितृसत्तात्मक सोच अपने समाज में इतनी गहराई तक जड़ जमाए हुए है कि उसका प्रभाव जाते-जाते ही जाएगा।

इनमें से कोई भी कारण ऐसा नहीं है, जिससे इस प्रचलन का बचाव होता हो। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों के पाठ्यक्रम से इस टेस्ट को हटाने सहित वे तमाम उपाय अपनाने की बात कही है, जिससे टू फिंगर टेस्ट पर पूरी तरह रोक लग सके। जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के शब्दों और भावनाओं के अनुरूप शासन और समाज के सभी संबधित अंग इस पर अमल सुनिश्चित करने के प्रयासों में सक्रिय भागीदारी करें।


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