चुनौतियों से पार पाती भारतीय अर्थव्यवस्था पर अब भी बहुत कुछ करना बाकी
भारतीय अर्थव्यवस्था पर अब भी बहुत कुछ करना बाकी
डा. जयंतीलाल भंडारी: इस समय वैश्विक मंदी की आहट का भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर हो रहा है, जैसे कि सेंसेक्स में बड़ी गिरावट आई है, डालर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है और ब्याज की बढ़ती दरों एवं पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के कारण महंगाई का ग्राफ बढ़ा हुआ दिखाई दे रहा है। इसके बावजूद पिछले सात-आठ वर्षों में हुए आर्थिक सुधारों और नवाचार के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के माहौल में भी गतिशील बनी हुई है। इसकी गवाही हाल में प्रकाशित विभिन्न प्रमुख वैश्विक संगठनों की रिपोर्ट भी दे रही हैं। गत 15 जून को इंस्टीट्यूट फार मैनेजमेंट डेवलपमेंट के वार्षिक वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक-2022 में भारत ने एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज सुधार का तमगा प्राप्त किया। वैश्विक रैंकिंग में भी भारत ने छह पायदान की जोरदार छलांग लगाई है। 63 देशों के इस सूचकांक में भारत 43वें से 37वें स्थान पर आ गया है। मुख्य रूप से आर्थिक मोर्चे पर प्रदर्शन में सुधार से प्रतिस्पर्धा के मामले में भारत की स्थिति सुधरी है।
यह महत्वपूर्ण है कि पिछले दिनों जब अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों द्वारा दुनिया के कई देशों की रेटिंग घटाकर नकारात्मक की गई, तब भारत की रेटिंग में सुधार का संतोषजनक परिदृश्य दिखाई दे रहा है। दुनिया की तीनों बड़ी रेटिंग एजेंसियों फिच, मूडीज और एसएंडपी की नजर में भारत की लंबी अवधि का आर्थिक परिदृश्य अब स्थिर हो गया है। फिच ने पिछले दो वर्षों से भारत को लगातार दी जा रही नकारात्मक रेटिंग को सुधारकर स्थिर रेटिंग में उन्नत किया है। फिच ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने कोरोना महामारी के बाद जोरदार वापसी की है। आर्थिक और वित्तीय सुधार लागू किए हैं। बुनियादी ढांचे में बड़ा निवेश किया है। इन सबसे निर्यात, निवेश और विकास दर बढ़ने में मदद मिल रही है। अमेरिकी संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि कोरोना की तीन लहरों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था ने जोरदार तरीके से वापसी की है। इसमें भारत के कोरोना टीकाकरण अभियान की भी खूब प्रशंसा की गई है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि पिछले एक दशक में देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में नवाचार, डिजिटल एवं टिकाऊ व्यापार और कारोबारी सुगमता के लिए उठाए गए कदमों की प्रभावी भूमिका रही है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग द्वारा प्रकाशित डिजिटल एवं टिकाऊ व्यापार सुविधा वैश्विक सर्वेक्षण रिपोर्ट-2021 में डिजिटल सुविधाओं के मद्देनजर भारत की ऊंची रैंकिंग निर्धारित की गई है। भारत में डिजिटल कारोबार सुविधाएं बढ़ने और भारत के कारोबारी सुगमता में आगे बढ़ने का स्पष्ट संकेत वर्ल्ड बैंक द्वारा प्रकाशित ईज आफ डूइंग बिजनेस-2020 से भी मिलता है। इसके मुताबिक भारत 190 देशों की सूची में 63वें स्थान पर पहुंच गया है। भारत ने कारोबारी सुगमता की विश्व रैंकिंग में 2019 की तुलना में 14 स्थान की छलांग लगाई है।
विश्व बैंक ने भारत को कारोबार का माहौल सुधारने के मामले में नौवां सर्वश्रेष्ठ देश बताया है। इसी कारण कोविड महामारी और यूक्रेन संकट की चुनौतियों के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की 8.7 फीसद की विकास दर, देश में लगातार बढ़ रहे यूनिकार्न, 31.45 करोड़ टन का रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन, बढ़ता विदेश व्यापार, नए प्रभावी व्यापार समझौते, करीब 600 अरब डालर के विदेशी मुद्रा भंडार आदि के कारण निर्यात बढ़े हैं और एफडीआइ का प्रवाह तेजी से बढ़ा है।
वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का उत्पाद निर्यात करीब 419 अरब डालर और सेवा निर्यात करीब 249 अरब डालर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचना इसका संकेत है कि अब भारत निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था की डगर पर आगे बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन के अनुसार भारत की ओर विदेशी निवेशकों के बढ़ते विश्वास के कारण भारत की एफडीआइ रैंकिंग बढ़ी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने 83.57 अरब डालर का रिकार्ड एफडीआइ प्राप्त किया। अब चालू वित्त वर्ष 2022-23 में भी निर्यात और एफडीआइ बढ़ने की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। जिस तरह विकासशील और विकसित देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार संबंधों का नया अध्याय लिखा गया है, उसके कारण भारत की आर्थिक और कारोबारी संभावनाएं तेजी से आगे बढ़ी हैं।
नि:संदेह हमें कारोबार सुगमता, नवाचार एवं प्रतिस्पर्धा के वर्तमान स्तर एवं विभिन्न वैश्विक रैंकिंग में आगे बढ़ते कदमों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। अभी विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक सुधार की जरूरत है। जैसे कि देश में रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर खर्च बढ़ाना होगा। वर्तमान एफडीआइ और निर्यात नीति को और अधिक उदार बनाना होगा। इसी तरह आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया को सफल बनाना होगा। यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इजरायल के साथ वार्ता करके मुक्त व्यापार समझौता करना होगा। देश को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना होगा। देश में श्रमिकों की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए उन्हें कौशल विकास प्रशिक्षण से दक्ष बनाना होगा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के आगे बढऩे की रफ्तार और बढ़ेगी और देश के आर्थिक-सामाजिक और रोजगार विकास का नया अध्याय लिखा जा सकेगा।
(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)