अच्छाइयों के दास

अक्सर लोग कहते मिल जाते हैं कि ‘मैं दूसरों के लिए अच्छा क्यों करूं। अच्छाई करने से मुझे क्या मिलेगा।’ दरअसल, ऐसा कहने के पीछे उनके मन में बैठा कोई न कोई कड़वा अनुभव होता है।

Update: 2022-06-08 04:54 GMT

सरस्वती रमेश: अक्सर लोग कहते मिल जाते हैं कि 'मैं दूसरों के लिए अच्छा क्यों करूं। अच्छाई करने से मुझे क्या मिलेगा।' दरअसल, ऐसा कहने के पीछे उनके मन में बैठा कोई न कोई कड़वा अनुभव होता है। पर शायद उन्हें यह पता नहीं होता कि हमारी अच्छाई ही हमारी सबसे बड़ी ताकत होती है। जब हम कुछ अच्छा करते हैं, तो हमारे भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।

हमारा अवचेतन मन उस ऊर्जा को ग्रहण करता रहता है। मन में बैठे समस्त नकारात्मक भाव धीरे-धीरे विलुप्त हो जाते हैं। हमारे अंदर प्रेम, ईमानदारी, समरसता, भाईचारा जैसे गुणों का विकास होने लगता है। मतलब, अच्छाई का वितान इतना वृहद है कि उसमें संसार भर के गुण समा सकते हैं।

विचित्र है कि कई बार दूसरों के लिए कुछ करने वालों को घर-परिवार, समाज से फटकार सुनने को मिल जाती है। मगर फटकार या कुछ बुरा सुनने से उनकी अच्छाई छोटी नहीं हो जाती। हमारे एक पत्रकार मित्र हैं। दफ्तर से देर रात लौटते हैं। अक्सर ही उन्हें कोई जरूरतमंद रास्ते में मिल जाता है। वह उसकी मदद करने से पीछे नहीं हटते।


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