शिक्षक को चांटा!

जब हम नियमानुसार कार्य नहीं करते तो अनियंत्रित व्यवस्था के कारण इस प्रकार की दुर्घटनाएं संभव होती हैं

Update: 2021-12-23 04:25 GMT

किसी भी वस्तु, व्यक्ति या व्यवस्था पर नियंत्रण या कंट्रोल न होने के कारण घटना या दुर्घटना होती है। फिर चाहे वह नियंत्रण व्यक्तियों, संस्थानों, समाजों, प्रशासनिक व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था या वित्तीय व्यवस्था पर हो। अनियंत्रित व्यवस्था तथा लचर प्रणाली से असफलता ही प्राप्त होती है। मूल रूप से शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थी का कार्य पढ़ना तथा ज्ञान ग्रहण करना होता है, वहीं पर शिक्षकों का कर्त्तव्य शिक्षण-प्रशिक्षण के माध्यम से विद्यार्थियों के पोषण से संबंधित है। शिक्षक तथा विद्यार्थी का यह संबंध प्रेम तथा मान-सम्मान, नैतिक जि़म्मेदारी एवं आपसी विश्वास पर आधारित है। जहां गुरुकुल शिक्षण पद्धति में नियम बहुत कठोर होते थे, वहीं पर बीसवीं शताब्दी के अंत तक भी शिक्षकों का अनुशासन के नियमों के अंतर्गत विद्यार्थियों पर नियंत्रण रहता था। विद्यार्थियों को गुरु या शिक्षक के दिशा-निर्देश एवं आदेशानुसार शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्य करना पड़ता था। शिक्षक का आदेश सर्वोपरि होता था तथा शिक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक एवं सामाजिक व्यवस्था शिक्षक पर कोई प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं करती थी। जहां व्यक्तियों, परिवारों, समाजों तथा व्यवस्थाओं में नियंत्रण समाप्त हो जाता है, वहीं पर अव्यवस्था एवं अनुशासनहीनता जन्म लेती है। संस्थाओं को नियंत्रण करने के लिए तथा उनके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नियम निर्धारित होते हैं। नीति संहिता में नियमों का पालन करना सभी के लिए आवश्यक होता है। जब हम नियमानुसार कार्य नहीं करते तो अनियंत्रित व्यवस्था के कारण इस प्रकार की दुर्घटनाएं संभव होती हैं।

ऐसे में संस्थाएं सुचारू रूप से न चलकर अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल नहीं हो पाती हंै। शिक्षण संस्थानों एवं शिक्षण व्यवस्थाओं का उद्देश्य श्रेष्ठ मानवीय उपकरणों का निर्माण करना है। वर्तमान में शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता के अनेक मामले सामने आते हैं जहां पर विद्यार्थी अपनी सीमा में न रहकर शिक्षकों तथा शिक्षा व्यवस्था को अनैतिक कृत्यों से चुनौती देते देखे जा सकते हैं। इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में विद्यार्थियों के आचरण, संस्कारों, परिवारों तथा समाजों का परिचय मिलता है। कई बार वर्तमान व्यवस्था की असफलताओं का आक्रोश भी विद्यार्थियों के व्यवहार में प्रतिबिंबित होता है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009 की धारा-17 के अनुसार विद्यार्थी पर अध्यापक द्वारा किसी भी तरह का शारीरिक दंड, मानसिक प्रताड़ना तथा भेदभाव कानूनी दृष्टि से प्रतिबंधित तथा दंडनीय अपराध है, परंतु यदि विद्यार्थी ही अपने शिक्षक पर हाथ उठाए तो शैक्षिक और सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप क्या दंड होना चाहिए, ये विचारणीय प्रश्न है। पिछले दिनों हमीरपुर जिला की एक पाठशाला में अध्यापक द्वारा विद्यार्थी को कक्षा में मोबाइल का उपयोग न करने की नसीहत देने के कारण उसे विद्यार्थी की बदतमीजी तथा उद्दंडता का शिकार होना पड़ा। भविष्य निर्माता शिक्षक की प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है। अभिभावकों-छात्रों पर यह जिम्मेदारी है।
प्रो. सुरेश शर्मा
लेखक घुमारवीं से हैं
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