आत्मनिर्भरता का लक्ष्य और चुनौतियां
विनिर्माण क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता हासिल करना बड़ी चुनौती है। हालांकि वर्ष 2021-22 में भारत का निर्यात चार सौ अरब डालर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया, लेकिन भारत का आयात भी इस वर्ष पांच सौ नवासी अरब डालर के स्तर पर है।
जयंतीलाल भंडारी: विनिर्माण क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता हासिल करना बड़ी चुनौती है। हालांकि वर्ष 2021-22 में भारत का निर्यात चार सौ अरब डालर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया, लेकिन भारत का आयात भी इस वर्ष पांच सौ नवासी अरब डालर के स्तर पर है। यानी एक सौ नवासी अरब डालर का व्यापार घाटा है।
कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी चुनौतियों के बीच वैश्विक व्यवस्था में भारत की अहमियत बढ़ती जा रही है। लेकिन इन मौजूदा चुनौतियों के बीच अब आत्मनिर्भरता के रास्ते पर बढ़ कर ही देश ऊंचाइयां हासिल कर सकता है। अब भारत के लिए आत्मनिर्भरता केवल आकर्षक नारा ही नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे वास्तविक रूप में साकार होता दिखना भी चाहिए। देश के समक्ष इस समय जो बड़ी चुनौतियां हैं, उनमें एक अर्थव्यवस्था पर बाहरी दबावों का जोखिम कम करना भी है। इसके लिए रक्षा क्षेत्र के साथ-साथ विनिर्माण, प्रौद्योगिकी विकास और कृषि उत्पादन सहित विविध क्षेत्रों में देश को आत्मनिर्भर बनाना होगा।
निश्चित रूप से रूस-यूक्रेन संकट के मद्देनजर भारत के लिए यह सबक भी है कि चीन और पाकिस्तान से लगातार मिल रही रक्षा चुनौतियों के बीच भारत को दुनिया में सामरिक रूप से शक्तिशाली देश के तौर पर अपनी पहचान बनाना होगी। गौरतलब है कि हिंद-प्रशांत सुरक्षा पर दस मार्च को अमेरिकी कांग्रेस में सांसदों ने कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच तनाव चार दशकों में सबसे खराब स्तर पर पहुंच गया है। सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता बढ़ती जा रही है।
ऐसे में भारत को अपनी रक्षा तैयारियां मजबूत करना जरूरी है। इसके अलावा 13 मार्च को केंद्र सरकार की सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) की बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर अत्याधुनिक सुरक्षा तकनीक के इस्तेमाल और रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के काम को प्राथमिकता देने के निर्देश दिए गए थे।
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिहाज से भारत के सामने स्थितियां चुनौतीपूर्ण भले हों, पर संसाधनों की कमी नहीं हैं। इस क्षेत्र में भारत और भारतीयों की क्षमता का दुनियाभर में लोहा माना जाता है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए हमें कितना आगे जाना होगा, इसका अनुमान स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की ताजा रिपोर्ट से लगाया जा सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक हथियार खरीद के मामले में भारत और सऊदी अरब दुनिया में शीर्ष पर हैं। भारत कुल वैश्विक हथियारों का ग्यारह फीसद हथियार खरीदता है। हालांकि हमारे आयुध कारखाने विशालकाय हैं, लेकिन रक्षा उत्पादन में हिस्सेदारी महज दस फीसदी पर ही टिकी है। स्थिति यह है कि अभी तो भारत सैनिकों की वर्दियों के लिए भी दूसरे देशों पर निर्भर है। लेकिन यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत से रक्षा निर्यात भी लगातार बढ़ रहे हैं। हथियार निर्यात के मामले में भारत दुनिया में चौबीसवें स्थान पर है। वर्ष 2019-20 में भारत का रक्षा निर्यात नौ हजार करोड़ रुपए था। इसे 2024-25 तक बढ़ा कर पैंतीस हजार हजार करोड़ रुपए करने का लक्ष्य रखा गया है।
एक संतोषजनक बात यह भी है कि भारत का रक्षा बजट लगातार बढ़ रहा है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार आम बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए सवा पांच लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया। यह बजट पिछले वर्ष के मुकाबले सैंतालीस हजार करोड़ रुपए अधिक है। चूंकि भारत के रक्षा तकनीकी विशेषज्ञों ने कई तरह के कौशल हासिल कर लिए हैं, इसलिए भारत लड़ाकू विमानों सहित रक्षा क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेजी से बढ़ सकता है।
विनिर्माण क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता हासिल करना बड़ी चुनौती है। हालांकि वर्ष 2021-22 में भारत का निर्यात चार सौ अरब डालर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया, लेकिन भारत का आयात भी इस वर्ष पांच सौ नवासी अरब डालर के स्तर पर है। यानी एक सौ नवासी अरब डालर का व्यापार घाटा है। यदि हम उत्पाद निर्यात के नए आंकड़ों का विश्लेषण करें, तो पाते हैं कि निर्यातकों ने आपूर्ति से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद वित्त वर्ष 2021-22 में औसतन तेंतीस अरब डालर से अधिक के उत्पाद हर महीने निर्यात किए।
खासतौर पर पेट्रोलियम उत्पादों, इलेक्ट्रानिक और इंजीनियरिंग उत्पाद, चमड़ा, काफी, प्लास्टिक, परिधान, मांस, दूध से बने उत्पाद, समुद्री उत्पाद और तंबाकू आदि की निर्यात बढ़ाने में अहम भूमिका रही है। इंजीनियरिंग सामान, परिधान आदि का निर्यात बढ़ने से यह धारणा भी बदल रही है कि भारत प्राथमिक जिंसों का ही बड़ा निर्यातक है। अब भारत अधिक से अधिक मूल्यवर्धित और उच्च गुणवत्ता वाले सामान भी निर्यात कर रहा है।
देश का व्यापार घाटा कम करने के लिए 2022-23 के बजट में कई प्रावधान किए गए। गौरतलब है कि वित्तमंत्री ने बजट में विशेष आर्थिक क्षेत्र यानी सेज के वर्तमान स्वरूप को बदलने की बात कही थी। सेज में उपलब्ध संसाधनों का पूरा उपयोग करते हुए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों के लिए विनिर्माण तेज किया जा सकेगा। जहां उत्पादन से जुड़ी विशेष प्रोत्साहन (पीएलआइ) योजना की सफलता से चीन से आयात किए जाने वाले कच्चे माल के विकल्प तैयार हो सकेंगे, वहीं औद्योगिक उत्पादों का निर्यात भी बढ़ सकेगा।
देश में अभी भी दवा, मोबाइल, चिकित्सा उपकरण, वाहन और बिजली उद्योग काफी हद तक चीन से आयातित कच्चे माल पर ही निर्भर हैं। सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत नवंबर 2020 से तेरह औद्योगिक क्षेत्रों के लिए पीएलआइ योजना को करीब दो लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहनों के साथ आगे बढ़ाया है। वर्ष 2022-23 के बजट में भी पीएलआइ योजना के लिए प्रोत्साहन सुनिश्चित किए हैं। निसंदेह देश में विशेष आर्थिक क्षेत्रों की नई भूमिका, मेक इन इंडिया अभियान की सफलता और पीएलआइ योजना का सशक्त तरीके से क्रियान्वयन जरूरी है।
रिकार्ड खाद्यान्न पैदावार और उसका निर्यात निश्चित रूप से देश की नई आर्थिक शक्ति बन सकता है। लेकिन दलहन और तिलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की चुनौती सामने है। अभी देश में कुल जरूरत का करीब साठ फीसद खाद्य तेल आयात किया जाता है। ऐसे में कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने के अधिक प्रयास करने होंगे। तभी देश के पास खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार होगा और दुनिया के कई देशों को कृषि निर्यात बढ़ाए जा सकेंगे। देश में कृषि क्षेत्र के तहत दलहन और तिलहन उत्पादन के साथ-साथ खाद्य तेल के उत्पादन में आत्मनिर्भरता को उच्च प्राथमिकता दी जानी होगी।
अब बात आती है ऊर्जा क्षेत्र की। ऊर्जा क्षेत्र में भी देश को आत्मनिर्भरता के लिए तेजी से काम करना होगा। एक ओर देश में जहां कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाना होगा, वहीं कच्चे तेल के विकल्प भी तलाशने होंगे। देश को रोजाना करीब पचास लाख बैरल पेट्रोलियम पदार्थों की जरूरत होती है। चूंकि भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरत का करीब पिच्यासी फीसद आयात करता है। इस आयात का करीब साठ फीसद हिस्सा खाड़ी देशों इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात आदि से आता है।
कच्चे तेल के वैश्विक दाम में तेजी के बीच तेल कंपनियों की एथनाल मिश्रण कार्यक्रम में दिलचस्पी और बढ़ानी होगी। मालूम हो कि देश के पास करीब तीन सौ अरब बैरल का विशाल तेल भंडार है, लेकिन हम उसका पर्याप्त दोहन नहीं कर पा रहे हैं। वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की वर्तमान कीमतों की तुलना में चार-पांच गुना कम लागत पर ही कच्चे तेल का दोहन किया जा सकता है। इसके अलावा देश में बिजली चलित वाहनों के उपयोग को भी बढ़ावा देना होगा। इस दिशा में नवाचारी उद्योग बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे में मौजूदा चुनौतियों और संकटों के बीच आत्मनिर्भरत बनने का लक्ष्य एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए।