नफरत के बीज

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय के साथ भेदभाव, उत्पीड़न और उनके उपासना स्थलों में तोड़फोड़ की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। कराची शहर के एक हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ की घटना इसका ताजा उदाहरण है।

Update: 2022-06-11 03:17 GMT

Written by जनसत्ता: पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय के साथ भेदभाव, उत्पीड़न और उनके उपासना स्थलों में तोड़फोड़ की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। कराची शहर के एक हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ की घटना इसका ताजा उदाहरण है।

हालांकि कराची पुलिस ने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिलाया है, पर इससे वहां के उपद्रवी और नफरत फैलाने वाले लोगों पर कितना अंकुश लग पाएगा, कहना मुश्किल है। कुछ दिनों पहले भी एक मंदिर में इसी तरह तोड़-फोड़ की गई थी। करीब दो साल पहले एक गुरद्वारे पर हमला किया गया था। ताजा मामले में भारत सरकार ने सख्त एतराज जताया है।

हालांकि पाकिस्तान सरकार का दावा है कि वह किसी भी धर्म के विरुद्ध अपमानजनक गतिविधि के विरुद्ध सख्त है। पर अगर यह सही है, तो फिर वहां ऐसी घटनाओं पर विराम क्यों नहीं लग पाता। वहां ईशनिंदा कानून है, जिसके तहत अगर कोई इस्लाम के खिलाफ कुछ बोलता है, तो उसे सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है, फांसी तक की सजा सुना दी जाती है। कई मामलों में तो ईशनिंदा करने वालों की हत्या कर दी गई। फिर दूसरे धर्मों के उपासना स्थलों के निरादर पर ढुलमुल रवैया क्यों होना चाहिए?

इन दिनों चूंकि पैगंबर मोहम्मद को लेकर की गई एक आपत्तिजनक टिप्पणी के विरोध में सारा इस्लामी जगत खड़ा हो गया है। पाकिस्तान भी उसमें शरीक है, वहां के उपद्रवियों को इससे शह मिली और प्रतिक्रिया में हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ कर अपना आक्रोश जाहिर किया। मगर भारत सरकार ने संबंधित मामले में भड़काऊ बयान देने वालों के खिलाफ कड़ा कदम उठाया है, उन पर मामला दर्ज कर लिया गया है।

इसके बावजूद अगर पाकिस्तान में उग्र प्रतिक्रिया सामने आती है, तो इसे किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। जब भी किसी देश में अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाया जाता है, तो वे स्वाभाविक ही दहशत में आ जाते हैं। वे खुद को उस देश में सुरक्षित महसूस नहीं करते। यही स्थिति इस समय पाकिस्तान में रह रहे हिंदू समुदाय की है।

ऐसा कोई भी समाज सभ्य नहीं कहा जा सकता, जो अपने यहां रह रहे अल्पसंख्यकों को सुरक्षित वातावरण न दे सके। उन पर धौंस जमा कर, उनमें दहशत भर कर अपनी श्रेष्ठता साबित करने का प्रयास करे। पाकिस्तान बेशक कहता और दिखाने की कोशिश करता है कि वह अल्पसंख्यक समुदाय की आस्था पर किसी भी प्रकार चोट पहुंचने नहीं दे सकता, पर हकीकत यही है कि वहां आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं।

धार्मिक उन्माद किसी भी देश की तरक्की की राह का रोड़ा होता है। मगर विचित्र है कि हर देश शायद इस तकाजे को भुला बैठा है। धार्मिक आधार पर लोगों को उकसा कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले हर जगह दिखते हैं। पाकिस्तान तो यों भी धर्म के आधार पर बना राष्ट्र है, वहां धर्म से अलग शायद कुछ सोचना भी मुश्किल लगता है। ऐसे में अगर कहीं इस्लाम के खिलाफ कुछ होता है, तो अक्सर वहां उग्र प्रतिक्रिया दिखती है।

भारत को तो वहां के कट्टरपंथी अपना घोषित दुश्मन मानते हैं, इसलिए यहां अगर गलती से भी किसी का इस्लाम के खिलाफ कोई बयान आ जाता है या मुसलिम समुदाय पर ज्यादती की शिकायत मिलती है, तो वहां फौरन प्रतिक्रिया होती है। यह विवेक उपद्रवियों में होता भी कहां है कि किसी समुदाय के एक व्यक्ति ने अगर किसी पिनक में कुछ कह दिया, तो उसकी सजा पूरे समुदाय को क्यों मिलनी चाहिए।


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