सू की पर शिकंजा: म्यांमार में तख्तापलट भारत के लिए चिंता

सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली।

Update: 2021-02-03 13:12 GMT

ऐसे वक्त में जब म्यांमार के नवंबर में हुए चुनाव में भारी मतों से जीती आंग सान सू की, की पार्टी सत्ता संभालने जा रही थी, सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली। साथ ही देश में एक साल के लिये आपातकाल की घोषणा कर दी है। सेना ने सू की समेत कई शीर्ष नेताओं को हिरासत में लेकर मुख्य स्थानों पर सेना की तैनाती कर दी है। टीवी-रेडियो के प्रसारण बंद करके इंटरनेट पर रोक लगायी गई है। जिस संविधान के तहत दस साल पहले सत्ता का हस्तांतरण जनता की चुनी सरकार को किया गया था, उसी संविधान का सेना ने उल्लंघन किया है। 

म्यांमार के लोग पांच दशक के सैन्य शासन के दौरान जिस दमनकारी भय से मुक्त हुए थे, वह और गहरा हो गया है। दरअसल, सू की के नेतृत्व में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी यानी एनएलडी को बीते सोमवार दूसरा कार्यकाल आरंभ करना था लेकिन इससे पहले कि संसद का पहला सत्र शुरू होता, उससे कुछ घंटे पहले ही सू की समेत पार्टी के कई शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

पर्दे के पीछे सेना का खेल जारी था। उसी ने यह संविधान बनाया और 25 फीसदी सीटें सेना के लोगों के लिये आरक्षित भी कर दी थी। इतना ही नहीं, म्यांमार के तमाम महत्वपूर्ण मंत्रालयों मसलन गृह, रक्षा व सीमाओं से जुड़े मंत्रालयों पर भी सेना का ही नियंत्रण रहता है। दरअसल, नवंबर में हुए चुनाव के बाद एनएलडी के अस्सी फीसदी से अधिक मत हासिल करने और सेना समर्थित राजनीतिक दल की पराजय के बाद सेना को भय था कि कहीं सू की संविधान में संशोधन करके और ताकतवर न हो जाये। इसके साथ ही सू की सरकार में म्यांमार की अर्थव्यवस्था के दरवाजे दुनिया के लिये खोलने के फैसले से भी सैन्य तानाशाह नाराज चल रहे थे, जो कि बंद अर्थव्यवस्था के पक्षधर रहे हैं। वे खुले कारोबार को देश के लिये खतरे के रूप में देखते हैं।


दरअसल, आजादी के बाद से ही म्यांमार की सत्ता में पकड़ रखने वाली सेना को म्यांमार में लोकतंत्र की बयार रास नहीं आती। यही वजह है कि सेना समर्थित विपक्षी पार्टी की हार के बाद धांधली के आरोप लगाकर सेना ने तख्तापलट कर दिया। हालांकि, सेना कोई भी धांधली के सबूत नहीं दे सकी।  हाल के दिनों में कोरोना महामारी और चुनावों में अल्पसंख्यक समुदाय के रोहिंग्याओं को मताधिकार से वंचित रखने को लेकर हो रही आलोचनाओं के बीच अवसर पाकर सेना ने तख्तापलट किया है। भारत समेत अमेरिका आदि देशों ने म्यांमार में लोकतंत्र का गला घोटने पर चिंता जतायी है।
ऐसे में सैन्य सत्ता से अाजिज आ चुके म्यांमार के लोगों का आक्रोश भी सामने आयेगा। वे आंग सू की को सेना के लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में देखते हैं। आशंकाएं जतायी जा रही हैं कि तख्तापलट में पर्दे के पीछे चीन की भूमिका हो सकती है। चीन अपनी पहुंच म्यांमार के रास्ते अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा तक बनाना चाहता है। वैसे भी चीन को तानाशाही सत्ताएं रास आती हैं।
 आशंकाएं हैं कि म्यांमार में जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे चीन की भूमिका है। दरअसल, हाल के वर्षों में चीन ने म्यांमार में खनन, आधारभूत संरचना तथा गैस पाइप लाइन आदि परियोजनाओं में भारी निवेश किया है। सैन्य शासन के दौरान चीन को अपनी मनमानी करने का अवसर मिलता है। विगत में भी सैन्य शासकों से चीन के मधुर रिश्ते रहे हैं। हाल के बयानों में चीन ने सेना प्रमुख को देश का मित्र बताया है। भारत की चौतरफा घेराबंदी करने वाला चीन जानता था कि सू की के रहते वह अपने भारत विरोधी एजेंडे को क्रियान्वित नहीं कर सकता। निस्संदेह हालिया घटनाक्रम भारत के लिये चिंता की बात है क्योंकि भारत की लंबी सीमा म्यांमार से लगती है। भारत विरोधी अलगाववादी संगठन म्यांमार सीमा पर सक्रिय रहते हैं, जिन्हें चीन से भी मदद मिलती रही है। 


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