देवबंद में समाजवादी पार्टी ने चली नई चाल: हिन्दू वोटों को विभाजित कर यूपी में शासन का प्लान
देवबंद में समाजवादी पार्टी ने चली नई चाल
संदीपन शर्मा।
एक अफवाह रातों-रात चुनाव का रुख बदल देती है. मगर जैसा आप सोच रहे हैं उस तरह से नहीं. पश्चिमी यूपी (Western UP) में 26 जनवरी की रात ये अफवाह फैल गई कि समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने माविया अली को देवबंद से अपना उम्मीदवार घोषित किया है. सहारनपुर-देवबंद रोड पर समाजवादी पार्टी का चुनाव कार्यालय चलाने वाले राव कारी साजिद का कहना है कि इस अफवाह के कारण निर्वाचन क्षेत्र (Constituency) में बड़ा बदलाव आ गया.
लेकिन इससे पहले कि हम देवबंद से माविया अली के संभावित समाजवादी पार्टी उम्मीदवार बनने पर चर्चा करें आइए देवबंद के बारे में कुछ बातें समझते हैं. देवबंद में इस्लामी मदरसा दारुल उलूम है. दुनिया के लिए देवबंद बड़े पैमाने पर सुन्नी इस्लामी आंदोलन का केंद्र रहा है. ये समुदाय के लिए फतवा जारी करने वाले रूढ़िवादी मौलवियों का घर है. चुनाव के हिसाब से देखें तो देवबंद को आप मुसलमानों के लिए एक सुरक्षित सीट कह सकते हैं: यहां कुल लगभग साढ़े तीन लाख मतदाताओं में से करीब एक लाख बीस हजार मुसलमान हैं. राव साजिद कहते हैं कि जब मुसलमानों ने सुना कि वहां से उनके समुदाय के ही एक व्यक्ति को टिकट दिया गया है तो वे चिंतित हो उठे.
2017 में सपा और बसपा दोनों ने देवबंद से मुस्लिम उम्मीदवार उतारा
देवबंद के 40 साल के एक बढ़ई मोहम्मद गुलफाम का कहना है कि माविया अली के सपा उम्मीदवार होने की बात सुनकर मुसलमान बहुजन समाज पार्टी (BSP) का रुख करने लगे. राव साजिद कहते हैं, "कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने समाजवादी पार्टी प्रमुख को फोन किया और कहा कि वे देवबंद से एक हिन्दू उम्मीदवार चाहते हैं." नतीजा यह रहा कि एसपी ने जल्द ही इस अफवाह पर विराम लगा दिया. उसने देवबंद से अपने उम्मीदवार के रूप में एक राजपूत कार्तिक राणा के नाम की घोषणा कर दी.
राव साजिद और गुलफाम का कहना है कि देवबंद के मुसलमान अब जश्न मना रहे हैं. आप सोच रहे होंगे कि इस्लामिक मदरसा की सीट से भला मुसलमान क्यों अपने समुदाय के किसी उम्मीदवार का विरोध करेंगे? और वे क्यों चाहेंगे कि एक हिंदू विधायक उनका प्रतिनिधित्व करे? इसका उत्तर देवबंद निर्वाचन क्षेत्र के इतिहास से मिलता है.
2017 में सपा और बसपा दोनों ने देवबंद से मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. लिहाजा इससे सांप्रदायिक आधार पर चुनाव का ध्रुवीकरण हो गया और बीजेपी के बृजेश सिंह 30,000 से अधिक मतों से जीत गए. विजेता को लगभग एक लाख वोट मिले (देवबंद में मुसलमानों की कुल संख्या से कम); सपा प्रत्याशी माविया अली 55,000 से अधिक मतों के साथ काफी पीछे तीसरे स्थान पर रहे.
मुसलमान अपना वोट बटने देंगे?
इस चुनाव में सपा और बसपा दोनों ने ही हिन्दू उम्मीदवारों को खड़ा किया है. कारी ने भविष्यवाणी की, "अब देवबंद में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोई संभावना नहीं है. मुस्लिम सपा उम्मीदवार कार्तिक राणा को वोट देंगे और हिंदू वोट सभी उम्मीदवारों के बीच बंट जाएगा." साजिद, एक राव रंगर मुस्लिम हैं जिनके पूर्वज हिंदू थे. उनका तर्क है कि जब तक मुसलमानों को शांति से रहने दिया जाता है वो हिन्दू समुदाय की छाया में रहकर भी खुश हैं. वे कहते हैं, "हमें मुस्लिम उम्मीदवार नहीं चाहिए. हम ऐसा उम्मीदवार चाहते हैं जो मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करे."
यह भावना पूरे क्षेत्र के लोगों में है. सपा के पक्ष में मुस्लिम वोटर जम कर वोट करने वाले हैं. कई निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरी पार्टियों ने मुसलमानों को टिकट दिया है लेकिन उनके नाम तक मुस्लिम वोटरों को याद नहीं हैं.
AIMIM ने मशहूर मदनी परिवार के सदस्य मौलाना उमैर मदनी को देवबंद से अपना उम्मीदवार बनाया है. मौलाना उमैर मदनी के चाचा मौलाना महमूद मदनी जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हैं और उनके दादा अरशद मदनी दारुल उलूम देवबंद के प्रिंसिपल हैं. कांग्रेस उम्मीदवार, जिसका नाम कम ही लोग जानते हैं, भी एक मुस्लिम हैं. लेकिन, मुसलमानों का कहना है कि वे AIMIM, कांग्रेस या मदनी परिवार को वोट देकर अपना वोट बंटने नहीं देंगे.
समाजवादी पार्टी ने इस बार मुस्लिम उम्मीदवारों को कम टिकट दिए हैं
देवबंद के मुसलमानों की सोच पूरे पश्चिम यूपी में व्यावहारिकता पर आधारित रणनीति की ओर इशारा करती है. ज्यादातर जगहों पर मुसलमानों ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर अपनी दावेदारी छोड़ दी है (क्योंकि वे वोटों के ध्रुवीकरण में हार जाते थे) और ऐसे हिन्दू उम्मीदवारों को ही समर्थन देने का मन बनाया है जो अलग-अलग समुदाय के वोट से जीतने का माद्दा रखते हैं. उदाहरण के लिए देवबंद में सपा का मानना है कि कार्तिक राणा को मुसलमानों और राजपूतों (लगभग 35,000) और कुछ अन्य जाति समूहों का समर्थन मिलेगा. राव साजिद कहते हैं कि यह गठबंधन बीजेपी को आसानी से हरा देगा. समाजवादी पार्टी के पारंपरिक यादव-मुस्लिम वोट बैंक में हिन्दुओं के वोट मिलने से बीजेपी की हिन्दुत्व की अपील का असर भी कम हो जाएगा.
(राव कारी साजिद (बीच में) और मोहम्मद गुलफाम (दाएं) यह सुनकर परेशान हो गए कि एसपी ने देवबंद से एक मुस्लिम को मैदान में उतारा है)
बगल की बेहट सीट पर समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से आए प्रभावशाली मुस्लिम नेता इमरान मसूद को टिकट नहीं दिया. मसूद आसानी से एसपी की टिकट पर बेहट से जीत जाते क्योंकि वहां 50 फीसदी से ज्यादा वोटर मुस्लिम हैं. लेकिन, मसूद को सपा का टिकट नहीं दिया गया क्योंकि पार्टी को डर था कि उनकी कट्टर छवि सहारनपुर के बाकी नौ निर्वाचन क्षेत्रों में वोटों का धार्मिक स्तर पर ध्रुवीकरण कर देगी.
आंकड़ों से भी साफ है कि समाजवादी पार्टी ने इस बार मुस्लिम उम्मीदवारों को कम टिकट दिए हैं. पहले दो चरणों के मतदान में सपा के टिकट पर केवल 23 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं. मुजफ्फरनगर के मीरापुर जैसी कुछ पारंपरिक मुस्लिम सीटों पर पार्टी ने अपने सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल के हिन्दू उम्मीदवारों को खड़ा करवाया है. इसकी तुलना में बसपा ने 40 मुसलमानों को टिकट दिया है.
मुसलमानों को कम टिकट देने और मुस्लिम गढ़ों से हिंदू उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की रणनीति समाजवादी पार्टी का एक नया प्रयोग है. इसकी सफलता कई चीजों पर निर्भर करेगी- बसपा मुस्लिम वोटों को विभाजित करने में कितना सक्षम है और बीजेपी को बाहर रखने के लिए हिन्दू मतदाता दूसरों के साथ मिलकर किस तरह वोटिंग करते हैं. मगर एक बात तो साफ है कि मुसलमानों को लग गया है कि वर्तमान में उनका बलिदान आने वाले समय में उनकी मदद करेगा. वे आश्वस्त हैं कि हिन्दू वोटों को विभाजित करने की समाजवादी पार्टी की रणनीति से बीजेपी की स्थिति कमजोर हो जाएगी.