Russia Ukraine War : क्या कारण है कि रूस की सेना यूक्रेन में फेल नजर आ रही है?

करीब डेढ़ महीने का वक्त बीत चुका है

Update: 2022-04-13 07:07 GMT
प्रवीण कुमार।
करीब डेढ़ महीने का वक्त बीत चुका है. बावजूद इसके यूक्रेन (Ukraine) रूस के खिलाफ युद्ध के मैदान में शिद्दत से डटा हुआ है. और अब तो विदेशी मीडिया रिपोर्ट्स में भी इस तरह के दावे किए जाने लगे हैं कि जिस युद्ध को क्रेमलिन 'विशेष सैन्य अभियान' कहता आ रहा है वह अब कमजोर पड़ने लगा है. पश्चिमी देशों के सैन्य विश्लेषक भी इस बात को लेकर आश्चर्यचकित हैं कि आखिर रूस (Russia) की सेना कैसे कमजोर पड़ गई है. नाटो (NATO) के ताजा अनुमानों को अगर सही मानें तो रूसी सेना के करीब 15,000 सैनिक घायल अवस्था में हैं. इन घायल सैनिकों का तेजी से ड्यूटी पर लौटना यानि फिर से मोर्चा संभालना मुमकिन नहीं है.
मृतकों की संख्या लगभग दोगुनी है. इसका अर्थ यह हुआ कि रूस ने बीते डेढ़ महीने के संघर्ष में लगभग 45,000 सैनिकों को खो दिया है. रूसी युद्धक वाहनों की बात करें तो करीब 2500 वाहनों को या तो नष्ट कर दिया गया है या यूक्रेन ने उसे कब्जा लिया है. इसमें 450 मुख्य युद्धक टैंक और 825 बख्तरबंद लड़ाकू वाहन, पैदल सेना से लड़ने वाले वाहन और बख्तरबंद वाहन शामिल हैं. हालांकि ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि रूस युद्ध में कमजोर पड़ गया है. हां, एक बात जरूर है कि यूक्रेन को कब्जे में लेने के लिए रूस जैसे ताकतवर देश को डेढ़ महीने का वक्त लग जाए, चौंकाता जरूर है. कुछ तो ऐसी बात यूक्रेनी युद्धवीरों में जरूर है जो रूसी सेना के हौसले को पस्त कर रखा है.
फेल तो नहीं हो गया वन मैन, वन प्लान?
ऐसा लगता है कि यूक्रेन को लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की राष्ट्रवादी सोच ने रणनीतिक तौर पर फ़ैसला लेने की उनकी क्षमता को धुंधला कर दिया है. शुरुआती दौर से ही यूक्रेन पर हमले को राष्ट्रपति पुतिन युद्ध नहीं, बल्कि विशेष सैन्य अभियान कहते आ रहे हैं. 24 फरवरी को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तो पुतिन को शायद इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि जीतने में उन्हें इतना लंबा वक्त लग जाएगा. ऐसा लगता है कि राजनीतिज्ञों और सेना की एजेंसियों, यहां तक कि सेना के जवानों और अफसरों के बीच भी अभियान को लेकर संवादहीनता की स्थिति रही है.
इस बात से भी इनकार नहीं है कि सेना ने युद्ध की योजना एक ऐसे विशेष अभियान के रूप में की थी, जिसके बारे में कम ही लोगों को जानकारी हो. सीधी बात करें तो यह पुतिन का 'वन मैन, वन प्लान' जैसा है. युद्ध की रणनीति बनाई जाती है तो उसमें बहुत लोगों की भूमिका होती है और एक-दो नहीं दर्जनों प्लान के साथ मोर्चे पर सेना को तैनात किया जाता है. अगर यह बात सच है कि रूसी सेना यूक्रेन में फेल होती नजर आ रही है, तो इसके पीछे पुतिन के 'वन मैन, वन प्लान' को बड़ी वजह के तौर पर देखा जा सकता है.
मौसम और जमीनी हालात रूसी सेना के प्रतिकूल
रूस एक विशाल देश है. यहां अलग-अलग जगहों पर मौसम और जमीनी हालात बिल्कुल अलग-अलग हैं. रॉयल यूनाइटेड सर्विसेस इंस्टीट्यूट में रिसर्च फेलो एमिली फेरिस की मानें तो यूक्रेन में मौजूद रूसी सेना लॉजिस्टिक्स से जुड़ी दिक्कतों को झेल रही है. सेना को हथियार, गोला-बारूद, ईंधन, रसद, यूनिफॉर्म आदि की सप्लाई चाहिए. इसके साथ ही थके और घायल सैनिकों की जगह नए सैनिक चाहिए.
किसी और सेना के मुक़ाबले रूस अपने सैनिकों और हथियारों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने और रसद की आपूर्ति के लिए ट्रेनों का इस्तेमाल करता है. ऐसे भी सेना के लिए रेल ट्रांसपोर्टेशन सबसे बेहतर जरिया माना जाता है. लेकिन किसी दूसरे देश पर हमले की परिस्थिति में इसका इस्तेमाल कितना हो पाएगा, इसकी गारंटी नहीं होती है. हकीकत ये है कि रेल गाड़ियों से आ रही सप्लाई को सैनिकों तक पहुंचाने के लिए रूस के पास अधिक ट्रक नहीं हैं. इस वजह से रूसी सेना के लिए यूक्रेन में भीतर तक घुस पाना मुश्किल हो रहा है.
ऐसे में अगर ये ट्रक बेकार हो गए या फिर दुश्मन ने नष्ट कर दिया जैसा कि यूक्रेनी सेना खूब कर रही है तो रूस के लिए मुश्किल और बढ़ जाएगी. यूक्रेन के उत्तरी हिस्से में दलदल की समस्या काफी गंभीर है. दलदल में फंसकर रूसी सेना के कई ट्रक ख़राब हुए हैं. इसके अलावा एक और बड़ी समस्या यह भी है कि कई ट्रकों का मेंटेनेंस भी बेहतर तरीके से नहीं हो पा रहा है. अगर ट्रकों के टायर पुराने हो गए होंगे तो वो यूक्रेन के मौसम को झेल नहीं पाएंगे और फट जाएंगे. तो इन सारी वजहों से दुश्मन की जमीन पर रूसी सेना की सप्लाई चेन प्रतिकूल परिस्थिति से गुजर रही है और इसका सीधा असर युद्ध में रूसी सेना के मनोबल को कमजोर कर रहा है.
यूक्रेन के नागरिकों का साहस बड़ा फैक्टर
रूस और यूक्रेन की सेनाओं के मनोबल में बड़ा अंतर है. यूक्रेन के लोग अपने देश के अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं, वो अपने देश को संप्रभु राष्ट्र के तौर पर देखते रहना चाहते हैं. यूक्रेन के नागरिक अपनी सरकार और राष्ट्रपति के साथ खड़े हैं. यही वजह है कि जिन आम नागरिकों के पास मिलिट्री का कोई अनुभव नहीं है वो भी हथियार उठाकर अपने शहर और कस्बों की सुरक्षा के लिए रूसी सेना पर घात लगाकर बैठ गए हैं. किसी भी देश के नागरिक अपने अस्तित्व के लिए शायद इसी तरह लड़ते. वो अपनी मातृभूमि और परिवार की रक्षा इसी तरह से करते हैं. उनका साहस, शानदार और चौंकाने वाला दोनों है.
अगर रूस की बात करें तो ज्यादातर रूसी सैनिक स्कूल से अभी-अभी पासआउट युवा हैं. उन्हें लगा था कि वो सिर्फ एक युद्ध अभ्यास पर जा रहे हैं, लेकिन यहां तो उनका सामना एक भीषण युद्ध से हो गया है. कहने का मतलब यह है कि ज्यादातर रूसी सैनिक इस तरह की लड़ाई के लिए शारीरिक व मानसिक तौर पर तैयार नहीं थे या उनके पास युद्ध का ज्यादा अनुभव नहीं था. दूसरी अहम बात यह है कि यूक्रेन के सैनिकों की संख्या रूस के सैनिकों की संख्या से बेशक कम है, लेकिन वो जमीन और अपने हथियारों का इस्तेमाल रूस से ज्यादा बेहतर तरीके से कर रहे हैं.
एक तरफ रूस है जो कतारों में सैनिकों और सैन्य वाहनों को रखता है, जो धीमी गति से एक साथ आगे बढ़ते हैं. तो दूसरी तरफ यूक्रेन के सैनिक छापामार तरीके से युद्ध कर रहे हैं. 'हिट एंड रन' की युद्ध नीति अपना रहे हैं, चुपके से एंटी-टैंक मिसाइल को फायर करते हैं और रूस की जवाबी कार्रवाई से पहले ही निकल जाते हैं. दरअसल, इस लड़ाई से पहले अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के नाटो ट्रेनर्स यूक्रेन में लंबा वक्त गुजार चुके हैं. ऐसे में वो यूक्रेन के सैनिकों को रक्षात्मक युद्ध में तेजी लाने के बारे में और मिसाइल सिस्टम का बेहतर इस्तेमाल करने के बारे में निर्देश दे चुके हैं.
साइबर अटैक की रूसी योजना का फेल हो जाना
रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध की जो रणनीति बनाई थी, उसमें ये भी तय हुआ था कि रूसी साइबर अटैक की वजह से यूक्रेन के संचार तंत्र पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बजाय इसके यूक्रेन ने युद्ध के मोर्चे पर प्रभावी तालमेल बनाए रखने में बड़ी कामयाबी हासिल की है. यूक्रेन की सरकार कीव में पूरी तरह से सक्रिय दिख रही है. वहीं रूस के पास किसी भी तरह का यूनीफाइड मिलिट्री लीडरशिप नहीं है. अलग-अलग युद्ध के मोर्चे के बीच भी तालमेल की कमी है.
रक्षा विशेषज्ञ जस्टिन क्रंप की मानें तो यूक्रेन ने लोकल और ग्लोबल दोनों ही स्तरों पर बढ़त हासिल करने के लिए सूचना के क्षेत्र का जबरदस्त इस्तेमाल किया है. यूक्रेनी सरकार ने पूरी दुनिया में युद्ध के नैरेटिव पर सफलतापूर्वक नियंत्रण हासिल किया है. इन वजहों से भी रूसी सैनिकों के मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि रूस के पास दुनिया की सबसे ताकतवर सेना है. ये अलग बात है कि अभी तक रूस ने यूक्रेन में अपनी ताकत का अहसास कराया नहीं है. युद्ध की मीडिया रिपोर्टिंग दो पक्षों में बंटी सी दिख रही है, लिहाजा जमीनी हकीकत या तो दबाई जा रही है या फिर देरी से निकल कर आम लोगों तक पहुंच रही है. नाटो का पूरा तंत्र सक्रिय है और ज्यादातर पश्चिमी मीडिया यूक्रेन के पक्ष में रिपोर्ट करता दिख रहा है.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि रूसी सेना के लिए यूक्रेन के अंदर की भौगोलिक परिस्थिति बहुत अनुकूल नहीं है. लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में रूसी सैनिकों की मौजूदगी बताती है कि युद्ध यूक्रेन के पक्ष में नहीं है. पुतिन वन मैन की तरह व्यवहार जरूर कर रहे हैं, लेकिन युद्ध की प्लानिंग को लेकर उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं है. सच तो यह है कि पुतिन का मकसद यूक्रेन को पूरी तरह से कब्जाना नहीं है, बल्कि नाटो देशों को यह संदेश देना है कि वह रूस की सीमा से प्यार करने की जुर्रत न करें. और इतना काम पुतिन सफलतापूर्वक कर चुके हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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