Russia Ukraine War : भारत की रूस नीति व्यावहारिकता और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है

प्रतिबंधों का असर न केवल रूस बल्कि यूरोपीय देशों पर भी पड़ेगा

Update: 2022-03-25 04:30 GMT
यूक्रेन संकट (Ukraine Crisis) पर रूस (Russia) की निंदा के लिए अमेरिका (America) के नेतृत्व में चल रहे कैंपेन में शामिल नहीं होकर भारत ने एक सुविचारित नीति को दुनिया के सामने रखा है. यह एक अत्यंत जटिल स्थिति से निपटने के लिए लिया गया निर्णय है, जिसमें कई और मोड़ आने बाकी हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्पष्ट तरीके से भारत ने अपनी बात को रखा और अपने सिद्धांतों के साथ संतुलन बिठाकर राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते में भी सफल रहा.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का रूस पर भारत के रुख 'अस्थिर' कहना सच्चाई से बहुत दूर है. बाइडेन की ओर से सोमवार को अमेरिकी व्यापारियों की एक सभा से पहले की गई यह टिप्पणी खुद को एक निर्णायक नेता के रूप में पेश करने और रूस पर अमेरिकी सहयोगियों के बीच मतभेदों को कम करने का एक प्रयास भी हो सकता है.
भारत ने रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर मतदान से बार-बार परहेज किया
कुछ समय पहले तक, अमेरिका के भीतर बाइडेन के राजनीतिक स्टॉक्स में तेजी से गिरावट देखने को मिली. इसने डेमोक्रेटिक पार्टी में नेतृत्व करने की उनकी क्षमता और नवंबर में होने वाले अमेरिकी मध्यावधि चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी के भाग्य पर गंभीर संदेह खड़ा कर दिया है. लेकिन यूक्रेन ने बाइडेन को एक निर्णायक नेता के रूप में पेश करने के लिए डेमोक्रेट्स को एक अवसर प्रदान किया, जो न केवल अपने नाटो सहयोगियों को बल्कि यूरोप के बाहर सहयोगियों को रूस के खिलाफ साथ आकर काम करने के लिए प्रेरित करने में कामयाब रहा.
3 मार्च को क्वॉड नेताओं की आपात बैठक के दौरान, भारत ने रूस की निंदा करने और उसे अलग-थलग करने में दूसरों के साथ शामिल होने से इनकार कर दिया. इसके बजाय भारत ने इस समूह को इंडो-पेसिफिक पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया, जहां पर चीन की बढ़ती आक्रामकता देशों के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई है.
लेकिन रूस की निंदा करने से इनकार करने के बावजूद, भारत संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए कीव और मॉस्को, दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाकर चल रहा है. साथ ही क्षेत्रीय अखंडता और देश की संप्रभुता के प्रति सम्मान को अभिव्यक्त करने में सफल रहा है. हालांकि, भारत ने रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर मतदान से बार-बार परहेज किया है, लेकिन उसने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सम्मान पर जोर दिया है. भारत ने शुरू से ही हिंसा और शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान किया है और सभी पक्षों से उभरते संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए बातचीत करने का आग्रह किया है.
भारत का रूस के साथ दशकों से घनिष्ठ और मजबूत संबंध रहा है
भारत का रूस के साथ दशकों से घनिष्ठ और मजबूत संबंध रहा है. हाल के वर्षों में अन्य देशों से अपनी सैन्य खरीद में विविधता लाने के भारत के फैसले के बावजूद, मास्को दिल्ली का प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता बना है, लेकिन भारत ने न केवल रूस विरोधी गुट में शामिल होने से इनकार कर दिया है, बल्कि और आगे बढ़ते हुए पश्चिम द्वारा मास्को पर गंभीर प्रतिबंध लगाने के प्रयासों के बीच रूसी तेल खरीदा है. रूसी तेल शायद भारत की आवश्यकताओं का केवल एक प्रतिशत ही पूरा करेगा, लेकिन अपने अलगाव के दौरान मास्को से इसे खरीदने का निर्णय न केवल दिल्ली को संकट के दौरान अपने मित्र के साथ खड़े होने का अवसर देता है और यह भी दर्शाता है कि भारत संप्रभु निर्णय लेने के अपने अधिकारों से समझौता नहीं करेगा.
हाल के वर्षों में, अमेरिका के साथ भारत के संबंध मजबूत हुए हैं और आज, यह भारत की विदेश नीति में सबसे महत्वपूर्ण संबंध है. दोनों पक्ष परस्पर लाभ के लिए व्यापक क्षेत्रों में एक- दूसरे के साथ सहयोग करते रहे हैं, लेकिन दिल्ली-वॉशिंगटन संबंधों के बीच गर्माहट के लिए भारत के साथ रूस के संबंधों को दांव पर नहीं लगाया जा सकता है. भारत ने कई मौकों पर स्पष्ट किया है कि न तो अमेरिका और न ही कोई अन्य देश दिल्ली के अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के फैसले पर हावी हो सकता है. रूस को अलग-थलग न करने का भारतीय निर्णय नैतिक प्रेरणा से नहीं आया है, बल्कि यह व्यावहारिकता से अधिक प्रेरित है.
सीमाओं पर चल रहे सैन्य गतिरोध को देखते हुए चीन के साथ उसके तनाव को देखते हुए, भारतीय नेतृत्व इस समय अपने मुख्य हथियार आपूर्तिकर्ता के साथ संबंधों को खतरे में डालने का जोखिम नहीं उठा सकता है. रूस ने अतीत में, भारत को हथियारों की आपूर्ति नहीं करने के चीनी अनुरोध को ठुकरा दिया था, जब दोनों एक सैन्य गतिरोध में शामिल थे, लेकिन मॉस्को ने विनम्रता से बीजिंग को मना कर दिया था और स्पष्ट कर दिया था कि वह भारत को सैन्य आपूर्ति जारी रखेगा.

प्रतिबंधों का असर न केवल रूस बल्कि यूरोपीय देशों पर भी पड़ेगा

भारत की स्थिति को "अस्थिर" बताते हुए बाइडेन की सार्वजनिक अभिव्यक्ति के बावजूद, उनके प्रशासन के कई वरिष्ठ सदस्यों ने भारतीय स्थिति की समझ दिखाई है. यह अन्य क्वॉड सदस्यों जापान और ऑस्ट्रेलिया की भी स्थिति रही है, जिनके प्रधानमंत्री हाल ही में भारत आए थे. यद्यपि यूरोपीय संघ के कुछ सदस्यों ने रूस के खिलाफ भारत की ओर से आलोचना न किए जाने पर निराशा जताई, भारत के अधिकांश अन्य यूरोपीय सहयोगी भारतीय तर्क को स्वीकार करते दिखाई दे रहे हैं.
हालांकि, दुनिया के नेताओं की अधिकांश ऊर्जा हाल के हफ्तों में रूस को संकट के लिए दंडित करने में खर्च की गई है, अगर युद्ध और भी अधिक समय तक जारी रहा तो इसका नकारात्मक प्रभाव न केवल रूसी क्षेत्र के भीतर बल्कि यूरोप के अन्य हिस्सों समेत पूरी दुनिया पर पड़ेगा. एक बार जब प्रतिबंधों का असर न केवल रूस बल्कि यूरोपीय देशों और महाद्वीप के बाहर अन्य राष्ट्रों पर पड़ना शुरू होगा तो एक महत्वपूर्ण प्रश्न उभरकर सामने आएगा, क्या यूक्रेन युद्ध आवश्यक था और इसका उद्देश्य क्या था?
इनके साथ, एक और प्रासंगिक प्रश्न हो सकता है – क्या रूस के खिलाफ आर्थिक साधनों को हथियार की तरह प्रयोग एक अच्छी मिसाल कायम करेगा, भविष्य में यह दूसरों के खिलाफ भी इस्तेमाल किया जा सकता है? इन सवालों के जवाब के तलाशने पर रूस एकमात्र दोषी पक्ष नहीं हो सकता है, जिन देशों ने देखा कि क्या होने वाला है और उन्होंने यूक्रेन के विनाश को रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किया, ये दोष उन्हें भी लेना चाहिए, क्योंकि यूरोप का भू-राजनीतिक परिदृश्य अच्छे के लिए बदलता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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