Russia-Ukraine War: युद्ध क्षेत्र में फंसे लोग कैसे निकलें सुरक्षित बाहर, रूस-यूक्रेन दोनों पर लग रहे युद्धविराम में सहयोग न करने के आरोप

रूस-यूक्रेन दोनों पर लग रहे युद्धविराम में सहयोग न करने के आरोप

Update: 2022-03-08 17:29 GMT
यह न केवल चिंताजनक है, बल्कि निराशाजनक भी कि रूस और यूक्रेन में बातचीत का सिलसिला कायम रहने एवं उनकी ओर से युद्धविराम को लेकर सहमति जताने के बाद भी उस पर सही ढंग से अमल नहीं हो रहा है। इसके चलते लड़ाई वाले शहरों में न केवल यूक्रेन के लोग फंसे हुए हैं, बल्कि भारतीयों समेत अन्य अनेक देशों के नागरिक भी। उनके सामने न केवल खाने-पीने का संकट है, बल्कि जान बचाने का भी।
सच्चाई जो भी हो, इसमें संदेह नहीं कि वहां तमाम निर्दोष-निहत्थे लोगों की जान खतरे में है। इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि कहीं-कहीं यूक्रेन के लड़ाके विदेशी नागरिकों को बाहर निकालने में अड़ंगे डाल रहे हैं। शायद इसी कारण भारतीय प्रधानमंत्री को पहले यूक्रेन और फिर रूस के राष्ट्रपति से बात करनी पड़ी। वास्तव में इसकी चिंता रूस और यूक्रेन के साथ-साथ अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों को भी करनी चाहिए कि युद्ध क्षेत्र में फंसे लोग सुरक्षित बाहर निकलें। यह देखना दयनीय है कि ये देश यूक्रेन में हो रही तबाही पर चिंता तो जता रहे हैं, लेकिन इसके लिए कुछ नहीं कर रहे हैं कि वहां युद्धविराम प्रभावी तरीके से लागू हो, ताकि जान-माल की क्षति को रोका जा सके। वे शांति प्रयासों को बल देने के बजाय यूक्रेन को हथियार उपलब्ध कराने में लगे हुए हैं।
क्या यह विचित्र नहीं कि भारत, इजरायल, तुर्की आदि तो युद्धविराम और बातचीत से समस्या समाधान के लिए पहल कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन की ओर से ऐसा कोई प्रयत्न नहीं किया जा रहा है। यह तब है जब यूक्रेन में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और करीब 15 लाख लोग वहां से पलायन करने के लिए विवश हुए हैं। इस भीषण मानवीय त्रसदी के बीच इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अमेरिका और उसके साथी देश रूस की सुरक्षा चिंताओं को समझने के बजाय उसे उकसाने वाले काम करने में लगे हुए हैं।
वे भले ही यूक्रेन की सीधी मदद करने से इन्कार कर रहे हों, लेकिन उसे हथियार देकर संघर्ष को भड़काने का ही काम कर रहे हैं। इस पर भी गौर करें कि यूरोपीय देश रूस पर प्रतिबंध भी लगा रहे हैं और उससे तेल एवं गैस की खरीद भी कर रहे हैं। आखिर यह एक किस्म का पाखंड नहीं तो और क्या है?
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय 
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