दरबारी संस्कृति की जड़ें

नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को पिछले आठ सालों में एक चुनावी प्रभावशाली रथ में ऐसे परिवर्तित कर दिया है कि अभी से लोग कहते हैं दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में कि मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं दिखने लगी हैं। किसी भी देश में जब एक ही राजनीतिक दल सत्ता में रहता है

Update: 2022-10-02 10:03 GMT

तवलीन सिंह: नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को पिछले आठ सालों में एक चुनावी प्रभावशाली रथ में ऐसे परिवर्तित कर दिया है कि अभी से लोग कहते हैं दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में कि मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं दिखने लगी हैं। किसी भी देश में जब एक ही राजनीतिक दल सत्ता में रहता है एक दशक से ज्यादा, उस देश में लोकतंत्र की जगह तानाशाही लेने लगती है।

तानाशाही मेरी उम्र के पत्रकारों ने देखी है अपनी आंखों से इमरजेंसी के दौर में, लेकिन उस वक्त भी जब इंदिरा गांधी ने सारे बड़े राजनेताओं को जेल में डाल रखा था, इमरजेंसी का सख्त विरोध दिखता था देश में। न मीडिया का मुंह पूरी तरह बंद कर पाई थीं इंदिरा गांधी और न ही अपने राजनीतिक विरोधियों को चुप करा सकी थीं। ऊपर-ऊपर से जो शांति दिखती थी, वह इतनी खोखली थी कि अचानक कहीं न कहीं लोग निकल कर आ जाते थे इंदिराजी की नीतियों का विरोध करने।

इंदिराजी का पूरी तरह साथ दिया था सिर्फ उनके दरबारियों ने। दरबारियों की कमी नहीं थी। ऐसे कई लोग थे उस दौर में, जो दिन भर कोशिश करते थे किसी तरह या तो इंदिराजी के दरबार में जाकर माथा टेकने की या उनके बेटे के कदमों में जाकर गिरने की। दरबारी सभ्यता इतनी मजबूत थी कि ऐसी कई महिलाएं थीं, जो दिन भर कोशिश करती थीं अपने बच्चों को किसी तरह सोनिया गांधी के बच्चों से मिलाने की।

आपातकाल के इस दौर में गांधी परिवार के दरबार की नींव का पत्थर रखा गया था। तबसे आज तक दरबार चलता आया है और इसलिए मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे लोग ही हैं, जो ऊंचाइयों तक हमेशा पहुंच जाते हैं। अशोक गहलोत को भी वफादार दरबारी माना जाता था। इनकी वफादारी पर इतना भरोसा था कांग्रेस के प्रथम परिवार को कि सोनिया गांधी ने जब आदेश दिया गहलोत साहब को कि राजस्थान छोड़ कर उनको कांग्रेस का अध्यक्ष बनना होगा, तो किसी ने सोचा ही नहीं होगा कि ये वफादार दरबारी कभी बगावत कर सकता है।

ऐसा जब हुआ तो ऐसी खलबली मच गई दिल्ली में कि जिनको राजनीति में रुचि नहीं है, उनको भी मालूम हो गया था कि सोनिया गांधी बहुत गुस्से में थीं गहलोत के साथ। सोनियाजी ने अपने घर बुलाए कमलनाथ जैसे बचे-खुचे महारथी। कहते हैं कि इन लोगों से मिलने के बाद फैसला लिया गया कि दिग्विजय सिंह को भारत जोड़ो यात्रा से वापस बुला कर गांधी परिवार के समर्थन से अध्यक्ष के चुनाव में उतारा जाएगा। फिर वे पीछे हटे और सामने आए खड़गे।

फैसला शायद बदला गया, क्योंकि गांधी परिवार को वफादार सिपाही की जरूरत है। मगर क्या इससे ज्यादा जरूरत कांग्रेस को नहीं है एक काबिल और जवान अध्यक्ष की? लगता नहीं है कि अस्सी वर्ष के खड़गे कांग्रेस को पुनर्जीवित कर पाएंगे और मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती सिर्फ कांग्रेस दे सकती है। बिहार के मुख्यमंत्री खूब घूम रहे हैं इन दिनों विपक्षी राजनेताओं के घरों में।

हर दूसरे दिन उनकी मुस्कुराती हुई तस्वीरें छपती हैं अखबारों में किसी न किसी विपक्षी राजनेता के साथ, लेकिन उनका यह अभियान बिना कांग्रेस के सफल नहीं हो सकता है। कांग्रेस बेशक आज इतनी कमजोर है कि कई राजनीतिक पंडितों ने इसका अंतिम संस्कार भी कर दिया हैं, लेकिन किसी को भूलना नहीं चाहिए कि अब भी भारतीय जनता पार्टी के बाद सबसे से ज्यादा वोट कांग्रेस को मिलते हैं, बावजूद इसके कि पिछले आठ सालों में तकरीबन हर चुनाव हार चुकी है।

यह भी सच है कि जो नया अध्यक्ष चुनने का प्रयास किया जा रहा है वह एक खेल है, एक दिखावा। कांग्रेस की रगों में गांधी परिवार की गुलामी कूट-कूट कर भरी गई है इंदिरा गांधी के दौर से और इस काम को दिल लगा कर आगे बढ़ाया है उनकी बहू ने।

पिछले आठ वर्षों में सोनियाजी के पास कई मौके थे कांग्रेस की जड़ों को मजबूत करने के, लेकिन ऐसा करने के बदले उनकी पूरी ऊर्जा लगी रही है अपने बच्चों के हाथ मजबूत करने में। जब 2019 के आम चुनाव में लगने लगा कि बेटे से मोर्चा संभाला नहीं जा रहा है, तो अपनी बेटी को उतारा मैदान में और खूब वाहवाही हुई उनके दरबारियों से कि प्रियंका तुरुप का पत्ता साबित होंगी।

जब दूसरी बार मोदी प्रधानमंत्री बने, तो इस तुरुप के पत्ते को चलाया गया उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में योगी का गढ़ गिराने के लिए। खूब कोशिश की प्रियंका ने, लेकिन इतनी बुरी तरह कांग्रेस हारी कि चार सौ सीटों में से कांग्रेस के पास आज सिर्फ दो सीटें हैं। परिवार-प्रेम लेकिन अब भी इतना है कांग्रेस में कि अब तुरुप का पत्ता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को माना जा रहा है। कहते हैं कि हजारों लोग निकल कर आ रहे हैं इस यात्रा का समर्थन करने।

कहते हैं कि पांच महीनों बाद जब राहुलजी कश्मीर पहुंचेंगे तो उनका कद इतना ऊंचा हो गया होगा कि मोदी के असली प्रतिद्वंद्वी बन कर दिखाएंगे। कांग्रेस की समस्या यह है कि आज भी अपनी दरबारी सभ्यता से निकल नहीं पा रही है। आज भी इस दल के जो मुट्ठी भर 'वरिष्ठ' राजनेता हैं, हिम्मत दिखा कर बोल नहीं पाते हैं कि जब तक दरबारी सभ्यता बदल नहीं जाती है कांग्रेस में, तब तक प्रभावशाली भूमिका अदा करने की कोई संभावना नहीं है, इस दल के लिए अध्यक्ष चाहे कोई भी बने।


Tags:    

Similar News

मुक्ति
-->